श्रेष्ठ धर्म-कर्म का महान फल देता है एकमुखी रुद्राक्ष

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कमुखी रुद्राक्ष दुर्लभ है। बहुत ही भाग्यशाली व्यक्ति को इस असली दुर्लभ रुद्राक्ष की प्राप्ति होती है। इसे विषय में महाभागवत पुराण में भी कहा गया है। एकमुखी रुद्राक्ष की महिमा का बखान किया गया है।

एकवक्त्रं तु रुद्राक्षं गृहे यस्य हि वर्तते।
तस्य गेहे वसेल्लक्ष्मी: सुस्थिरा मुनिसत्तम।।
न दौर्भाग्यं भवेत्तस्य नापमृत्यु: कदाचन।
बिभर्ति यस्तु तं कण्ठे बाहौ वा मुनिसत्तम।।
तस्य प्रसन्नो भगवान्शम्भुर्देव: सुदुर्लभ:।
कुरुते यत्परं धर्मकर्म तच्च महाफलम्।। 
भावार्थ- प्रसंगवश श्री महादेव जी नारद जी से कहते हैं- हे मुनिश्रेष्ठ, जिस मनुष्य के घर एकमुखी रुद्राक्ष रहता है, उसके घर में भलीभांति स्थिर होकर लक्ष्मी निवास करती हैं। मुनिश्रेष्ठ, जो मनुष्य कंठ में या भुजा पर इस एकमुखी रुद्राक्ष को धारण करता है, उसके दुर्भाग्य का उदय नहीं होता है और न तो उसकी अकाल मृत्यु होती है। अत्यन्त कठिनता से प्राप्त होने वाले भगवान शिव उस पर प्रसन्न हो जाते हैं। वह मनुष्य जो भी श्रेष्ठ धर्म और कर्म करता है, वह महान फलदायक होता है।

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