श्रीभीमेश्वर ज्योतिर्लिंग की महिमा है अमोघ, पूरी होती है सब मनोकामनाएं

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श्रीभीमेश्वर ज्योतिर्लिंग गोहाटी के पास ब्रह्मपुत्र पहाड़ी पर अवस्थित है। इस ज्योतिर्लिंग की महिमा शास्त्रों में अमोघ बतायी गई है। इनके दर्शन-पूजन का फल कभी निष्फल नहीं जाता है। महादेव का यह स्वरूप भक्त की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करता है।

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इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना के विषय में शिवपुराण में विस्तृत रूप से कथा कही गई है। कथा के अनुसार प्राचीनकाल में भीम नामक एक महाप्रतापी राक्षस था। वह कामरूप प्रदेश में अपनी मां के साथ रहता था। वह महाबली राक्षस, राक्षसराज रावण के छोटे भाई कुम्भकर्ण का पुत्र था, लेकिन उसने अपने पिता कुम्भकर्ण को कभी भी नहीं देखा था।

उसके होश में आने से पूर्व ही भगवान राम ने कुम्भकर्ण का वध कर दिया था। जब वह युवा हुआ तो उसकी माता ने सारा वृत्तान्त उसे बताया। भगवान विष्णु के अवतार श्री राम के द्बारा उसके पिता के वध की बात सुनकर वह बहुत दुखी हुआ। इससे वह कुद्ध हो गया और भगवान श्री हरि के वध का उपाय सोचने लगा। उसने अभिष्ट वर की प्राप्ति के लिए एक हजार वर्ष तक कठोर तपस्या की तो उसके तप से प्रसन्न होकर परमपिता ब्रह्मा जी ने उसे लोक विजय होने का वर प्रदान किया। वर पाकर वह राक्षस प्राणियों को त्रास देने लगा। उसने इंद्रदेव और अन्य देवताओं को स्वर्ग से बाहर रहने को विवश कर दिया।

पूरे देवलोक पर भीम का अधिकार हो गया और उसने देवताओं की रक्षा के लिए आए श्री हरि को भी पराजित किया। इसके बाद असुर भीम ने कामरूप के परम शिवभक्त राजा सुदक्षिण पर आक्रमण किया और उन्हें मंत्रियों व अनुचरों के साथ बंदी बना लिया। इसके पश्चात उसने समस्त लोकों पर अपना अधिकार प्राप्त कर लिया। उसके अत्याचारों के चलते वेद, पुराण व स्मृतियों का लोप हो गया। वह किसी को कोई भी धार्मिक कृत्य नहीं करने देता था। इस तरह से दान, यज्ञ, तप , स्वाध्याय आदि सभी अच्छे कार्य प्रतिबंधित कर दिए गए। उसके अत्याचार से घबराकर ऋषि-मुनि भगवान शिव की शरण मंे आ गए। उनकी प्रार्थना सुनकर भगवान शंकर ने कहा कि मैं शीघ्र ही तुम्हारे कष्टों को दूर करूंगा। उस अत्याचारी भीम का संहार करूंगा।

उसने मेरे प्रिय भक्त कामरूप नरेश सुदक्षिण को भी बंदी बना लिया है । उसे अब जीवित रहने का अधिकार नहीं है। भगवान शिव से यह आश्वासन पाकर ऋषि-मुनि वापस लौट गए। इधर बंदीगृह में राजा सुदक्षिण अपने सामने पार्थिव शिवलिंग रखकर पूजन-अर्चन में लीन थ्ो। उन्हें पूजन-अर्चन करते देखकर असुर भीम ने पार्थिव शिवलिंग पर प्रहार किया, लेकिन तलवार का स्पर्श लिंग से नहीं हो पाया था कि भगवान शंकर वहां प्रकट हो गए और हुंकारमात्र से असुर को वहीं जलाकर भस्म कर दिया। भगवान शंकर की यह अद्भुत लीला देखकर ऋषियों ने वहां उनकी अर्चना की। देवता स्तुतिगान करने लगे। उन्होंने भगवान शिव से प्रार्थना की कि हे भोलेनाथ, आप जगत के कल्याण के लिए यहां निवास करें। यह क्ष्ोत्र शास्त्रों में अपवित्र बताया गया है, आपके निवास से यह परम पुण्य पवित्र क्ष्ोत्र बन जाएगा। भगवान शिव ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की और भगवान भोलनाथ भीमेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में अवस्थित हो गए।

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