औंढया श्रीनागनाथ मंदिर की महिमा है अद्भुत

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महाराष्ट्र का श्रीनागनाथ मंदिर विश्व प्रसिद्ध है। इसकी बहुत मान्यता है। यह पावन मंदिर औंढया नागनाथ से भी विख्यता है। महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में स्थित हिगोली जिले के औंढया नामक तहसील में स्थित है। यह नागनाथ का मंदिर अलौकित शिल्प व सौदर्य समेटे हुए है। पत्थरों से बना यह पांडव कालीन मंदिर सुदृढ़ व विशाल भी है। इसका सभामंडप आठ खंभों पर आधारित है।

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सभा मंडप गोल हैं। सभा मंडप व गर्भगृह समतल है। भगवान श्री नागनाथ जी की मुख्य लिंग मूर्ति आंतरिक छोटे गर्भ गृह में रखी हुई है। यहां पर महादेव के सामने नंदी नहीं हैं। मुख्य मंदिर के पीछे नंदीकेश्वर का मंदिर है। मुख्य मंदिर के चारों ओर 12 ज्योतिर्लिंगों के छोटे-छोटे मंदिर है। इसके अलावा वेद व्यास लिंग, भंडारेश्वर, चिंतामणेश्वर, नीलकंठेश्वर, गणपति, दत्तात्रेय, मुरली मनोहर, दशावतार आदि के अनेक मंदिर, मूर्तियां व तीर्थ हैं। मुख्य मंदिर के आंतरिक भाग में एक और ऋणमोचन तीर्थ है। दोनों तीर्थों का नाम सास-बहुत का तीर्थ पड़ गया है। इस नागनाथ तीर्थ में हर 12 वर्षों बाद कपिलाष्टमी के समय काशी गंगा का पदार्पण होता है।

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इस दिन तीर्थ कुंड का जल बिल्कुल निर्मल दिखाई देता है, जबकि अन्य समय में यह शैलयुक्त रहता है। मंदिर की दिव्यता सदैव देखते ही बनती है। एक समय में धर्मांध औरंगजेब ने इस मंदिर को तोड़ना चाहा था तो मंदिर से हजारों भ्रमर बाहर आकर औरंगजेब और उसके सैनिकों पर टूट पड़े थे। इस पर मंदिर तोड़ने का क्रम बीच में ही छोड़कर वहां से चला गया। मंदिर परिसर में आनंदी महाराज, तुपकारी आदि की समाधि विसोबा खेचर और नामदेव जी के भी स्मृति स्थान है। यहां श्री नामदेव से सम्बन्धित गुरु- शिष्य कथा भी स्थानीय स्तर पर विख्यात है।

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दंत कथाओं के अनुसार, कथा इस प्रकार है कि एक समय औंढया नागनाथ क्षेत्र में संत गौर कुंभार के घर में संत मंडली जमा हुई थी। शक सम्वत 1212 का समय था। तब संत गौरा कुंभारा ने सहज भाव से सभी संतों के सिर पर हाथ थपथपाया, जैसे मटके की परख की जाती है। अंत में संत कुंभार ने कहा कि सभी संतों का मटका पक्का है, लेकिन नामदेव जी कच्चे हैं। यह सुनकर श्री नामदेव जी को बहुत क्रोध हुआ। वहां उन्होंने भगवान विठोभा से संत गौरा कुंभार क बात बताई। इस पर श्री विठोभा जी ने कहा कि तुमने अभी किसी को गुरु नहीं माना है, इसलिए तुम्हारा ज्ञान कच्चा है। तब नामदेव को अपनी भूल का अहसास हुआ। वे तब औंढया नागनाथ मंदिर पहुंचे।

उन्होंने मंदिर में एक ऐसा दृष्य देखा कि वे आश्चर्यचकित हो उठे। विसोभा खेचर नाम का एक बूढ़ा शिव भक्त नागेश जी लिंग मूर्ति पर अपने पैर रखकर कराह रहा था। नामदेव से यह देखा नहीं गया। उन्होंने बूढ़े से कहा कि आप यह क्या कर रहे हैं। लिंग मूर्ति पर पैर रखकर सो रहे हैं। यहां से पैर को हटा दीजिए। इस पर विसोभा जी ने कहा कि मैं तो वृद्ध हूं, मुझ में पैरों को हटाने की शक्ति नहीं है। आप ही यह काम कर दीजिए। आपकी बहुत कृपा होगी। नामदेव जी ने उस वृद्ध का पैर लिंग मूर्ति से हटाकर दूसरी जगह रखा तो वहां भी लिंग मूर्ति दिखाई दी। जिस पर वृद्ध के पैर थे।

इस तरह नामदेव ने कई बार उस वृद्ध के पैर हटाए, लेकिन हर बार लिंग पर ही पैर दिखाई दिए। इस नामदेव ने उस वृद्ध को अपना गुरु स्वीकार कर उपदेश देने का कहा। इस पर वृद्ध ने कहा कि भगवान तो कण-कण में व्याप्त हैं। ऐसी कोई स्थान नहीं है, जहां पर भगवान नहीं हैं। इस प्रकार विसोभा खेचर के रूम में नामदेव जी को यहां गुरु प्राप्त हुआ था। औंढया नागनाथ में ही विसोबाजी की समाधि है, जो अब गुरु स्थान कहलाती है।

एक अन्य दंत कथा भी प्रचलित है कि एक समय की बात है क औंढया नागनाथ के मंदिर में नामदेव जी भजन कीर्त कर रहे थे। उसी समय ब्राह्मण वृंद रूद्र मंत्र पाठ कर रहे थे। श्री नामदेव जी के भजन से ब्राह्मणों के पूजन में बाधा आ रही थी। इस उन्होंने नामदेव जी को पूजन मंदिर के पीछे जाकर करने को कहा। श्री नामदेव जी ने मंदिर के पीछे जाकर पूजन किया तो मंदिर पीछे घूम गया। भगवान शंकर नामदेव का कीर्तन सुनने के लिए पीछे घूम गए। ब्राह्मणों को अपनी भूल का अहसास हुआ और क्षमा मांगी।

उल्लेखनीय है कि गुजरात का भगवान श्री नागेश्वरनाथ द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक है। भगवान श्री नागेश्वर का स्थान गुजरात के गोमती-द्बारका से वेटद्बारका जाते समय 24 किलोमीटर पूर्वोत्तर मार्ग पर है, मतांतर में दारुकावन को महाराष्ट्र में भी माना जाता है। महाराष्ट्र में औरंगाबाद से करीब दो किलोमीटर धौरंडी स्टेशन है, जहां से करीब बीस किलोमीटर दूर स्थित अवढा नागनाथ को नागेश ज्यातिर्लिंग माना जाता है। हालांकि अधिकांश धर्मामवम्बियों का मानना है कि गुजरात का द्बारका के निकट ही नागेश्वर ज्योतिर्लिंग है।

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