तो गणेश जी को इसलिए अर्पित करनी चाहिए दुर्वा घास, शीघ्र होंगे प्रसन्न

1
906

एक समय की बात है कि सृष्टि में अनलासुर नाम का असुर उत्पात मचा रहा था। उसके उत्पात से त्राहि-त्राहि मची हुई थी। उसके उत्पात से न सिर्फ मनुष्य त्रस्त थे, बल्कि देवता भी भयभीत रहते थे। वह सम्पूर्ण सृष्टि में आसुरी वृत्तियों का विस्तार करने लगा था। ऐसे में उसका वध करने के उद्देश्य से देवराज इंद्र उससे कई बार युद्ध किया, लेकिन हर बार देवराज इंद्र देव को पराजित होना पड़ा।

देवता भयभीत होकर भगवान शिव के पास आए और अपनी व्यथा सुनाई। देवताओं की पीड़ा सुनकर भगवान शिव ने कहा कि देवताओं, तुम्हारे कष्टों का निवारण मात्र गणेश जी कर सकते हैं। उनका पेट बहुत विशाल है और वह अनलासुर को निगल जाएंगे। तब सभी देवताओं ने गणेश जी की स्तुति की। देवताओं की स्तुति से गणेश प्रसन्न हो गए और उन्होंने अनलासुर का पीछा किया। उन्होंने अनलासुर को पकड़कर निगल लिया। जिससे गणेश जी के पेट में बहुत तेज जलन होने लगी।

Advertisment

गणेश जी के पेट की ज्वाला को शांत करने के लिए देवताओं ने तमाम उपाय किए, लेकिन गणेश जी के पेट की ज्वाला शांत नहीं हुई। अनलासुर का शाब्दिक अर्थ है, आग का असुर। जब कश्यप ऋषि को इसका ज्ञान हुआ तो वे उसी क्षण कैलाश आ गए और 21 दुर्वा एकत्रित करके गणेश जी को खिलाई। जिससे गणेश जी के पेट की जलन शांत हो गई। तभी से गणेश जी के पूजन में दुर्वा चढ़ाई जाती है। दुर्वा ग्रहण करके गणेश जी बहुत प्रसन्न होते है। इस कथा का वर्णन पुराणों में मिलता है, जो कि हमें स्पष्ट करता है, गणेश जी को दुर्वा अर्पित करने कारण।

यह भी पढ़ें – इस मंत्र से प्रसन्न होते है गणेश जी, देते हैं अतुल्य धन-सम्पदा

यह भी पढ़ें –सिद्धिदाता हैं गजानन, श्रद्धा से नमन करो तो पूर्ण होती हैं मनोकामनाएं

यह भी पढ़ें – जानिये रत्न धारण करने के मंत्र

यह भी पढ़ें –भगवती दुर्गा की उत्पत्ति की रहस्य कथा और नव दुर्गा के अनुपम स्वरूप

यह भी पढ़ें –नवदुर्गा के स्वरूप साधक के मन में करते हैं चेतना का संचार

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here