उत्कलदेश का शक्तिपीठ: विरजा व विमला देवी हरती हैं कष्ट

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ड़ीसा की उत्कल शक्तिपीठ को लेकर दो मत है। पहला मत तो यह है कि पुरी में जगन्नाथजी के मंदिर के प्रांगण में ही स्थित विमला देवी का मंदिर ही शक्तिपीठ है। यहां देवी सती के शरीर की नाभि गिरी थी। यहां की शक्ति विमला और भैरव  जगन्नाथ हैं। दूसरा मत अनुसार याजपुरमें ब्रह्मकुंड के समीप स्थित विरजा देवी का मंदिर शक्तिपीठ है। कुछ विद्बान इसी को नाभि पीठ मानते हैं। मंदिर में विरजा देवी और उनके वाहन सिंह की मूर्ति है, देवी द्बिभुजा है। देवी के प्राकट्य के विषय में एक किंवदन्ती है कि सृष्टि के सृजनकर्ता ब्रह्मा जी ने पहले यहां यज्ञ किया था, उसी यज्ञकुण्ड से विरजा देवी का प्राकट्य हुआ था। याजपुर-हावड़ा- वाल्टेयर लाइन पर वैतरणी रोड स्टेशन से लगभग 18 किलोमीटर दूर है , स्टेशन से याजपुर तक के लिए बस की सुविधा है। याजपुर नाभि गया क्ष्ोत्र माना जाता है। यहां श्राद्ध, तर्पण आदि का विशेष महत्व है। उड़ीसा के चार मुख्य स्थानों-पुरी, भुवनेश्वर,कोणार्क और याजपुर में से यह एक मुख्य स्थान है। इसे चक्र क्षेत्र माना जाता है। यहां वैतरणी नदी है। वैतरणी नदी के घाट पर अनेक मंदिर हैं। जिनमें गणेश मंदिर और विष्णु मंदिर प्रसिद्ध है। वाराह भगवान का मंदिर यहां का सबसे अधिक प्रसिद्ध है। इमें भगवान यज्ञवाराह की मूर्ति है। घाट से लगभग दो किलोमीटर की दूरी प्रचीन गरुण स्तम्भ है, इसी के पास विरजा देवी मंदिर स्थित है।

तंत्रचूडामणि में पीठ निर्णय-अध्याय में यह श्लोक प्राप्त होता है-

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उत्कले नाभिदेशस्तु विरजाक्षेत्रमुच्यते।
विमला सा महादेवी जगन्नाथस्तु भैरव:।।

भावार्थ  सती का नाभि देश उत्कल गिरा था। समग्र उत्कल-देश ही सती का नाभिक्षेत्र है और इसे ही विरजाक्षेत्र कहते हैं। इस क्षेत्र में विमला के नाम से महादेवी और जगन्नाथ के नाम से भैरव निवास करते हैं। उत्कल (आधुनिक उड़ीसा) एक नगर या ग्राम का नाम नहीं है। यह एक देश या राज्य का नाम है।

कपिलपुराण में वर्णन मिलाता है-
वर्षाणां भारतं श्रेष्ठम देशानामुत्कल: स्मृत:।
उत्कलेन समो देशो देशो नास्ति महीतले।।
‘विरजा’ शब्द को ‘क्षेत्र’ शब्द का विशेषण के रूप में लेने पर ‘विगतानि रजांसि यस्य तत’ इस व्युत्पत्ति के अनुसार समग्र उत्कलदेशको ही मलविमुक्त क्षेत्र कहा जा सकता है। इस देश की महादेवी विमला हैं, जो समग्र उत्कलदेश की आराध्या हैं। उनके भैरव जगन्नाथ या पुरुषोत्तम समग्र उत्कलदेश के परमाराध्य देव हैं।

देवीपुराण या महाभागवतपुराण में 51 शक्तिपीठों के विषय में लिखा है-पीठानि चैकपञ्जाशदभवन्मुनिपुङ्गव।

इन 51 पीठों में से कामरूप को श्रेष्ठतम पीठ की मान्यता दी गयी हैं और उस पीठ का विशेष वर्णन भी किया गया है। ऐसे तो भिन्न-भिन्न पुराणों और तंत्रग्रन्थों में देवीपीठ, शक्तिपीठ, तंत्रपीठ, सिद्घपीठ आदि नामों से पीठों की संख्या अलग-अलग बतायी गयी है, लेकिन 51 पीठों की परम्परा का प्रसार तंत्रचूडामणि और ज्ञानार्णवतंत्र-इन दोनों ग्रन्थों द्वारा विशेष रूप से हुआ है। तंत्रचूडामणि में सती जी के भिन्न-भिन्न अङ्गï किन-किन स्थानों पर गिरे थे और इन स्थानों में सती जी किस नाम से भैरवी के रूप में और भगवान शिव किस नाम से भैरव के रूप में निवास करने लगे, उनका विवरण उपलब्ध है। इस क्रम अन्य शास्त्रों में भी उल्लेख है।

कालिकापुराण में चार दिशाओं में चार पीठों का उल्लेख है और उनमें औड्र नामक पीठ को प्रथम पीठ के रूप में ग्रहण किया गया है।
यह औड्रपीठ ही उड़ीसा है। इस पीठ के बारे में कहा गया है-
ओड्राख्यं प्रथमं पीठं द्वितीयं जालशैलकम।
तृतीयं पूर्णपीठं तु कामरूपं चतुर्थकम।।
ओड्रपीठं पश्चिमे तु तथैवोड्रेश्वरीं शिवाम।
कात्यायनीं जगन्नाथमोड्रेशं च प्रपूजयेत।।
(कालिकापुराण )
सम्प्रति श्रीजगन्नाथ पुरी में विराजमान महाप्रभु पुरुषोत्तम जगन्नाथ ही नि:संदेह तंत्रचूडामणि में उल्लिखित जगन्नाथ हैं और श्री जगन्नाथमंदिर के भीतरी आंगन में विराजमान विमला ही तंत्रोक्त विमला हैं। उत्कलदेश के याजपुर नगर में विरजादेवी विराजमान हैं और यह देवी उत्कलदेश की सर्वप्राचीन देवी हैं। इनका वर्णन ब्रह्मïपुराण में आया है। यथा-
विरजे विरजा माता ब्रह्मणी सम्प्रतिष्ठिता।
यस्या: संदर्शनान्मत्र्य: पुनात्यासप्तमं कुलम।।
कुब्जिकातंत्र, ज्ञानार्णवतंत्र तथा अष्टादशपीठ निर्णय आदि ग्रन्थों में भी विरजापीठ का उल्लेख पाया जाता है। कपिलपुराण में इस उत्कल देश को ‘कृष्णार्क-पार्वतीहरा’ कहा गया है अर्थात भगवान विष्णु, सूर्यदेव, पार्वती देवी और भगवान शिव-ये चार देव-देवी यहां नित्य निवास करते हैं। पार्वती क्षेत्र के प्रसंग में याजपुर नगर स्थित विरजा देवी की ही महिमा का वर्णन किया गया है। महाभारत, वनपर्व में पाण्डवों के वनवासप्रसंग में वैतरणीतीर स्थित विरजातीर्थ का उल्लेख है। वर्तमान याजपुर नगर पूर्वकाल में विरजा नाम से प्रसिद्ध था, यह  बात पुरातात्विक प्रमाणों से स्पष्ट है। अत: याजपुरस्थित विरजादेवी उत्कल की अधीश्वरी देवी हैं, यह सर्वमान्य है।

दूसरे पक्ष में सिद्घपीठों की संख्या 108 बतायी गयी है, इनमें विरजापीठ का नाम नहीं मिलता। उसके स्थान पर पीठ का नाम पुरुषोत्तम और पीठाधीश्वरी का नाम विमला बताया गया है,उदाहरणार्थ- ‘गङ्गयां मङ्गला नाम विमला पुरुषोत्तमे’ (मत्स्यपुराण) और ‘गयायां मङ्गला प्रोक्ता विमला पुरुषोत्तममे’ (देवीभागवत)। पुरी के श्रीजगन्नाथजी के मंदिर में अभी भी यह व्यवस्था है कि पुरुषोत्तम जगन्नाथ के प्रत्येक भोग के बाद वह भोग विमलादेवी को पुन: समर्पित किया जाता है और तब वह भोग महाप्रसाद बन जाता है। पुरी के अन्नभोग की यही विशेषता है।
शब्दार्थ की दृष्टिï से विरजा और विमला एक ही देवी हैं। इन दोनों देवियों का स्थानभेद और मूर्तिभेद केवल उपासना-निमित्तक है। कृपामयी परमेश्वरी दुर्गा या कात्यायनी विरजा और विमला उभय नामों से यथाक्रम याजपुर और पुरी में अवस्थान करती हुई समग्र उत्कलदेश को पावन करती हैं और जीवों के रज या मल (पाप) का नाश करती हैं। जो कोई भक्त पूर्ण श्रद्धाभाव से इन दोनों मंदिरों में दर्शन पूजन करता है। उसके सभी कष्टों को भगवती हर लेती है।

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