‘वामन द्वादशी पर विशेष’: बौनाभारी में हुआ था वामन अवतार…..

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‘वामन द्वादशी पर विशेष’
बौनाभारी में हुआ था वामन अवतार…..
-सच्चे मन से की गईं मनोकामनाएं होती हैं पूरी
सीतापुर: तीन पग में समस्त ब्रह्मांड को नापने वाले विष्णु भगवान ने वामन अवतार सीतापुर स्थित बौनाभारी गांव की धरती पर लिया था। बौनाभारी में स्थित विश्व का इकलौता वामन भगवान का सिद्ध मंदिर है। राजा बलि ने वामन भगवान को सिर्फ तीन गज भूमि दान में दी थी। बौनाभारी गांव ही वह स्थान है, जहां वामन भगवान ने विराट स्वरूप धारण कर राजा बलि को छल लिया था। मंदिर के पुजारी कृष्णकिशोर तिवारी बताते हैं पुराण में स्पष्ट रूप से लिखा है कि गोमती नदी के उत्तर में नौ किलोमीटर की दूरी पर वामन भगवान का मंदिर है और यहां से इतनी ही दूरी पर गोमती नदी है। यहां वामन भगवान की मूर्ति विराजमान है। उनकी कृपा से ही गांव का नाम बौनाभारी पड़ा। गांव पर भगवान की ऐसी कृपा बरसती है कि पूरा गांव सम्पन्न है। यहां मंदिर के साथ गांव के सारे मकान पक्के हैं। इतिहास में जाने पर पता चलता है कि 1852 में गांव जंगल में तब्दील था। तभी कुछ ग्रामीण यहां रहने को आये। उन्हें जंगल की सफाई करते समय एक पंचवटी वृक्ष के नीचे वामन भगवान की मूर्ति मिली। उनके पैरों के पास राजा बलि प्रार्थना की मुद्रा में विराजमान थे। यहीं कुछ चावल, तिल व लखौरी की ईंटें भी मिली थीं। साथ ही राजा बलि के हवन कुंड के अवशेष भी मिले थे। इन्हीं ईटो से ग्रामीणों ने मंदिर का निर्माण शुरू किया था।ग्रामीणों के आस्था के चलते आज मंदिर परिसर भव्य स्वरूप ले चुका है। सैकड़ों साल से वामन द्वादशी के आसपास मंदिर परिसर में इच्छा धारी नाग नागिन का जोड़े के मिलते हैं दर्शन हैं, इनके दर्शन करने वाले खुद को सौभाग्यशाली समझें। इनका स्थान पंचवटी वृक्ष के नीचे अलग से बना है।

“वामन भगवान का जन्मोत्सव”

प्रत्येक वर्ष की तरह इस बार भी वामन द्वादशी पर वामन भगवान का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया जा रहा है। इस मौके पर यहां शुक्रवार और शनिवार को दो दिवसीय कार्यक्रम मनाया जा रहा है। इसमें ग्रामीणों के साथ दूरदराज के भी लोग शामिल होते हैं।

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“यह है इतिहास”-

सृष्टि पर अधिपत्य ‘करने के लिए राजा बलि यज्ञ कर रहे थे। इधर इंद्र को चिंता सता रही थी कि यदि राजा बलि यज्ञ में सफल हो जाते हैं तो कहीं उनके हाथ से स्वर्ग लोक न निकल जाए। इस पर वे जगत के पालनहाल भगवान विष्णु की शरण में गए और प्रार्थना की। वामन देव के रूप में अवतरित भगवान विष्णु तब राजा बलि के पास गए। राजा बलि चूंकि दानवीर थे, इसलिए उन्होंने वामन देव से दान मांगने का अनुरोध किया। इस पर वहां मौजूद दैत्यगुरु शुक्राचार्य ने राजा बलि को सचेत किया कि वह ऐसा न करें, क्योंकि वह अपनी दिव्य दृष्टि से भगवान वामन को पहचान गए थे, लेकिन राजा बलि ने उनकी बात को अनसुना करते हुए वामन देव से दान मांगने को कहा। इस पर वामन भगवान ने उनसे कहा कि पहले आप इसके लिए संकल्प लो कि जो मैं मांगूगा, वह दोगे। तब राजा बलि ने संकल्प लेने के लिए पात्र उठाया तो उस संकल्प पात्र की नली में शुक्राचार्य भौरा बन कर बैठ गए, ताकि इससे जल न गिरे और राजा बलि संकल्प न ले सकें। इस पर वामन देव ने एक तिनका उठाया और उस पात्र की नली में डाला, इससे शुक्राचार्य की एक आंख फूट गई और वह पात्र से बाहर आ गए। तब राजा बलि ने संकल्प लिया तो वामन देव ने उनसे तीन पग भूमि मांगी। इस पर राजा बलि ने कहा- महाराज, आप मुझसे राजपाठ और वैभव मांग सकते थे, मात्र तीन पग भूमि ही क्यों मांगी, तब वामन देव ने अपना स्वरूप विराट किया और एक पग में आकाश व दूसरे पग में धरती व पाताल नाप लिया और राजा बलि से पूछा कि तीसरा पग अब कहां रखूं। इस राजा बलि ने स्वयं को आगे करते हुए कहा कि महाराज तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख सकते हैं। जैसे ही भगवान वामन ने तीसरा पग राजा बलि के सिर पर रखा वे पाताल लोक को चले गए।

“इसलिए नहीं करना चाहिए अभिमान”:

भगवान विष्णु को जब यह लगा कि राजा बलि को दानवीर होने का अभिमान हो गया है, तब उन्होंने उनके अभिमान को चूर किया, इसलिए किसी भी मनुष्य को अपनी श्रेष्ठता का अभिमान नहीं करना चाहिए।

..लेखक-शोभित मिश्र

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