विनायक राव पेशवा ने कराया था गणेश बाग का निर्माण

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चित्रकूट। बेजोड वास्तुकला की वजह से देश भर में मिनी खजुराहो के नाम से विख्यात भगवान श्रीराम की तपोभूमि चित्रकूट में मराठा शासक बाजीराव पेशवा के वंशज विनायक राव पेशवा द्वारा बनवाया गया ’गणेश बाग’ समेत कई ऐतिहासिक,धार्मिक और पौराणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण प्राचीन धरोहरें पुरातत्व विभाग की उपेक्षा और अनदेखी से धवस्त होने की कगार पर है।अपेक्षित प्रचार-प्रसार न होने की वजह से धर्म नगरी की ऐतिहासिक धरोहरे आज भी देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों की निगाहों से दूर है।

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मुम्बई में हुई बेसिन संधि के बाद करवी (चित्रकूट) की जागीर मराठों को मिली थी।इसके बाद मराठा शासक बाजीराव पेशवा के वंशज विनायक राव पेशवा द्वारा खजुराहों की तर्ज पर गणेश बाग का निमार्ण कराया गया था।शिल्पकारी के उद्भुत और बेजोड नमूना होने के कारण चित्रकूट के गणेश बाग को उत्तर-प्रदेश और मध्य प्रदेश के सीमावर्ती जिलों में मिनी खजुराहो के नाम से भी जाना जाता है। यहां की सात खंडों की बावली भी दर्शनीय है। भारतीय वास्तुकला की अनमोल धरोहर गणेश बाग का निर्माण लगभग 1828 ई. में पेशवा नरेश विनायक राव पेशवा ने कराया था। उन्होंने यहां गणेश बाग के साथ पुरानी कोतवाली किला, गोल तालाब और नारायण बाग भी बनवाया था। गणेश बाग लगभग एक किलोमीटर वर्ग क्षेत्रफल में बना है। गणेश बाग की दीवारों को बारीक-बरीक काट कर देवी देवताओं की मूर्तियों को गढ़ा गया है। एक खूबसूरत तालाब के किनारे बनाए गए इस षठकोणी पंच मंदिर में नागर शैली के दर्शन होते हैं।

 

मंदिर की बाहरी दीवारों पर की गई चित्रकारी में कहीं सात अश्वों के रथ पर सवार सूर्यदेव हैं, कहीं विष्णु हैं तो कहीं अन्य देवी देवताओं का समूह है। मंदिर में प्रयोग नागर शैली के कारण ही गणेश बाग को मिनी खजुराहो की संज्ञा दी जाती है। नागर शैली की विशेषता है कि ऊंची जगत बनाकर मूर्ति बनाई जाती है। यहां के मंदिर और खजुराहो के मंदिर में बनी मूर्तियां एक जैसी हैं। गणेश बाग में एक आकर्षक बाबली भी है जो सात खंड की है। इसमें छह खंड पानी में डूबे रहते हैं जब एक खंड ही खुला है। इसकी भव्यता दर्शाती है कि बावली भी अपने में एक अलग रही होगी। इसी के बगल में एक चहार दीवारी है जिसे राजा ने घुड़ सवारी के लिए बननाया था।लेकिन शासन-प्रशासन एवं पुरातत्व विभाग की अनदेखी और उपेक्षा के चलते बावली और मैदान की दीवारे नेस्तनाबूत होने लगी है।

वहीं खजाने की लालच में अराजकतत्वों द्वारा गणेशबाग में खुदाई कर गई इमारतों और बेशकीमती मूर्तियों की नुकसान पहुंचाया जा चुका है।इसके बाद भी इस प्राचीन धरोहर की सुरक्षा एवं संरक्षण के प्रति पुरातत्व विभाग गंभीर नजर नही आ रहा है। इतिहासकार रमेश चैरसिया और पर्यावरण चिंतक अरूण कुमार गुप्ता बताते है कि गणेश बाग पर्यटन के नजरिये से चित्रकूट की शान है। पुरातत्व विभाग इसके संरक्षण का दावा तो करता है लेकिन इसके हालात देखकर ऐसा नहीं लगता।

इतिहासकार श्री चैरसिया बताते हैं कि राजा छत्रपाल से पेशवा बाजीराव प्रथम को बुंदेलखंड का तिहाई भाग उपहार में मिला तो मराठों ने यहां अपनी जड़ें जमानी शुरू कीं। मराठों ने बुंदेलखंड में कई किले, बावड़ी व मंदिर निर्मित कराए। गणेश बाग का मंदिर इनमें से एक है।पर्यटन विकास के लिए संघर्ष करने वाले बुंदेलीसेना के जिलाध्यक्ष अजीत सिंह,समाजसेवी केशव शिवहरे और पंकज अग्रवाल बताते है कि गणेश बाग वास्तुकला का अदभुत नमूना है। खूबसूरत तालाब के पास दो मंजिला मंदिर की बाहरी दीवारों पर की गई पच्चीकारी में सात अश्वों के रथ पर सवार सूर्यदेव, कहीं विष्णु भगवान हैं तो कई देवों के समूह दिखते हैं जो हूबहू खजुराहों की शिल्पकला की तर्ज पर बनाया गया हैं।

मराठा  शासक रहे विनायक राव पेशवा की वंशज श्रीमती जयश्री जोग के मुताबिक मिनी खजुराहो के नाम से विख्यात गणेश बाग का निर्माण लगभग 18 वीं-19 वीं शताब्दी में विनायक राव पेशवा द्वारा करवाया गसा था। मंदिर का आंतरिक हिस्सा खजुराहो की कला और शैली जैसा ही है। इसीलिए इसे मिनी खजुराहो कहा जाता है।वहीं चित्रकूट के जिलाधिकारी विशाख जी का कहना है कि जिले की पुरातात्विक महत्व की धरोहरों को संरक्षित करना शासन-प्रशासन की प्राथमिकता है।उन्होने बताया कि शासन को जिले की महत्वपूर्ण धरोहरों की सूची और उनके विकास की कार्ययोजना बनाकर भेजी गई है।जल्द ही मिनी खजुराहों के नाम से विख्यात गणेश बाग समेत जिले के सभी महत्वपूर्ण स्थलों का सुंदरीकरण करा पर्यटन विकास से जोडा जायेगा।

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