विष्णु तीर्थ है तिरुचिरापल्ली: दक्षिण का कैलास माना जाता है

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vishnu teerth hai tiruchiraapallee: dakshin ka kailaas maana jaata haiविष्णु तीर्थ: तिरुचिरापल्ली::::: तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई ( मद्रास ) से करीब 320 किलोमीटर पश्चिम में पवित्र नदी कावेरी पर स्थित त्रिची अथात् तिरुचिरापल्ली अपने पर्वत, मंदिर और शिवालय के लिए प्रसिद्ध है। त्रिची का इतिहास
यह मुख्य रूप से चोलों द्वारा शासित था और बाद में पल्लवों और पांड्यों द्वारा कब्जा कर लिया गया था। 10वीं शताब्दी के दौरान चोलों ने तिरुचिरापल्ली पर आक्रमण किया। प्रारंभिक चोलों की राजधानी उरयूर पुरानी त्रिची के पास थी। चोल साम्राज्य के पतन के बाद यह मदुरई नायक राजवंश के सीधे नियंत्रण में आ गया। यह विजयनगर साम्राज्य के अंतर्गत रहा मदुरई के नायक शासकों ने अपनी राजधानी को मदुरई से तिरुचिरापल्ली में बदल दिया। त्रिची बाद के चोलों और नायक राजाओं के दिनों में और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शुरुआती दिनों में एक महत्वपूर्ण शहर था। यहाँ श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर ( विष्णु मंदिर ) है , यहां श्रीरंगनाथस्वामी का मंदिर कावेरी और कोलिडम नदियों के संगम के मध्य में एक द्वीप पर स्थित है। श्रीरंगम का यह मन्दिर श्री रंगनाथ स्वामी (श्री विष्णु) को समर्पित है, जहां सव्यंम् श्री विष्णु (भगवान् श्री हरि विष्णु शेषनाग शैय्या पर विराजे हुए ) हैं। यह द्रविण शैली में निर्मित है। श्रीरंगम, अपने श्री रंगनाथस्वामी मंदिर के लिए प्रसिद्ध है, जो हिन्दुओं (विशेष रूप से वैष्णवों) का एक प्रमुख तीर्थयात्रा गंतव्य और भारत के सबसे बड़े मंदिर परिसरों में से एक है। मंदिर की वेबसाइट के अनुसार, श्रीरंगम को दुनिया का सबसे बड़ा क्रियाशील हिन्दू मंदिर माना जा सकता है क्योंकि इसका क्षेत्रफल लगभग 6,31,000 वर्ग मी (156 एकड़) है जिसकी परिधि 4 किमी (10,710 फीट) है। श्रीरंगम सबसे बड़ा क्रियाशील मंदिर होने का दावा करता है क्योंकि अंगकोर वट दुनिया का सबसे बड़ा लेकिन गैर-क्रियाशील हिन्दू मंदिर है। श्रीरंगम मंदिर का परिसर 7 संकेंद्रित दीवारी अनुभागों और 21 गोपुरम से बना है। मंदिर के गोपुरम को ‘राजगोपुरम’ कहा जाता है और यह 236 फीट (72 मी) है जो एशिया में सबसे लम्बा है।

धार्मिक कथा

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कथा है कि एक शिवभक्त वृद्धा अपनी आसन्नप्रसवा पुत्री की देखभाल हेतु उसके ससुराल जा रही थी, परंतु रास्ते में नदी की बाढ़ के कारण वहां न पहुंच सकी, अत : वहीं किनारे बैठकर शिव – ध्यान में लीन रही। दूसरे दिन बाढ़ रुकने पर पुत्री के पास पहुंचने पर ज्ञात हुआ, स्वयं शिव ने वृद्ध मां के वेश में उस पुत्री की देखभाल की। इस प्रकार यहां की मान्यता है कि कल्याणकारी शिव इस नगर की रक्षा करते हैं। इस तीर्थस्थल का प्राचीन नाम त्रिशिरा पल्ली था। इसे रावण के पुत्र त्रिशिरा ने बसाया था। वह भी शिवभक्त था। इसे दक्षिण का कैलास कहा जाता है। त्रिची नगर के आसपास कावेरी नदी के साथ अनेक दर्शनीयस्थल हैं।

विष्णु तीर्थ: तिरुचिरापल्ली के दर्शनीय स्थल

  • श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर ( विष्णु मंदिर ) : यहां श्रीरंगनाथस्वामी का मंदिर कावेरी और कोलिडम नदियों के संगम के मध्य में एक द्वीप पर स्थित है। श्रीरंगनाथस्वामी मंदिर का विस्तार 266 बीघे का है। इतना विस्तार वाला मंदिर पूरे भारत में दूसरा नहीं है। श्रीरंगनाथस्वामी स्थल- मंदिर श्रृंखला में 21 कलात्मक गोपुरम बने हैं। वास्तुकला और शिल्पकला की दृष्टिकोण से भी यह अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। इसमें लगभग 1000 खंभे हैं। इसके अतिरिक्त दर्जन भर मूर्तियां यहां स्थापित हैं। यहां भगवान विष्णु को बहुत बड़ी प्रतिमा है।
  • जबुकेश्वर मंदिर: यहां पर जंबू वृक्ष के नीचे स्थित शिवलिंगम् की पूजा जलधारा से एक हाथी द्वारा की जाती थी, अब वहीं पर विशाल मंदिर बना है, जिसका नाम जंबुकेश्वर देवालय है। इसका विस्तार सौ से भी ज्यादा बीघे में है। आदि शंकराचार्य ने इसकी पूजा की है। इस शिवलिंग के चारों ओर जल भरा रहता है। उसे निकाल देने पर भी दुवारा जल भर जाता है। पंचतत्त्व लिंग में इसे जलतत्त्व माना जाता है।
  • रॉकफोर्ट गणेश मंदिर ‘ रॉकफोर्ट ‘ के नाम से मशहूर इस पहाड़ी पर श्रीगणेश का सुंदर मंदिर है। पहाड़ी की ऊंचाई करीब 85 मीटर है। शिखर तक पहुंचने के लिए पत्थरों को काटकर 418 सीढ़ियां बनाई गई हैं।मातृभूतेश्वर मंदिर : ठोस पत्थरों से बने किले के अंदर शिवालय है, जिसमें महादेव मातृभूतेश्वर की प्रतिमा है।
  • इरबीश्वरा मंदिर : त्रिची से 15 किलोमीटर दूर यह एक शिव मंदिर है, जो शिल्पकला का एक नमूना है।

यात्रामार्ग

तिरुचिरापल्ली पहुंचने के लिए रेल, सड़क तथा वायु मार्ग की सुविधा उपलब्ध है। यह एक रेल जंक्शन है।

जंबुकेश्वर आपोलिंगम् ( जलतत्त्वलिंग ): यहाँ आदिशंकराचार्य ने जंबुकेश्वर का पूजन – आराधन किया था { दक्षिण भारत के पंचतत्त्वलिंग}

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