ये तारीखें गवाह रहीं श्रीराम मंदिर विध्वंस और श्रीराम मंदिर निर्माण के संघर्ष की 

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1528- मुगल बादशाह बाबर के आदेश पर उसके सेनापति मीर बाकी ने मस्जिद बनवाई थी।
1859- ब्रिटिश सरकार ने विवादित भूमि के बाह्य व आंतरिक परिसर के बीच के एक दीवार खड़ी कर दी थी। हिंदुओं व मुस्लिमों को क्रमश: पूजा व नमाज की अनुमति ब्रिटिश सरकार की ओर से प्रदान की गई थी।
19 जनवरी 1985- राम चबूतरे पर निर्मोही अखाड़े के महंत रघुवर दास ने फैजाबाद के उपजिलाधीश के यहां मुकदमा किया। बाद में दो अपीलें हुई, जिसमें मंदिर बनाने की इजाजत नहीं मिली।
1934- बकरीद के अवसर पर गोवध की अफवाह से अयोध्या में साम्प्रदायिक दंगे हुए। जिसमें बाबरी मस्जिद क्षतिग्रस्त हो गई। जिसकी मरम्मत ब्रिटिश सरकार ने करवाई।
22-23 दिसम्बर 1949- बाबरी मस्जिद के मुख्य गुम्बद के भीतर अवैध रूप से भगवान श्री राम की मूर्तियां रखी गईं।


29 दिसम्बर 1949- मस्जिद में मूर्तियां रख दिए जाने के बाद जिला मजिस्ट्रेट केके नायर ने मूर्तियों को नहीं हटवाया। मस्जिद में ताला जड़ अयोध्या नगर पालिका के तत्कालीन अध्यक्ष बाबू प्रियदत्त राम को मस्जिद का रिसीवर नियुक्त किया गया।

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16 जनवरी 195०- गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद के सिविल जज की अदालत में मुकदमा दायर कर ढ़ाचे के केंद्रीय गुम्बद के नीचे मूर्तियों की पूजा करने की अनुमति मांगी।
17 दिसम्बर 1959- रामानंद सम्प्रदाय की ओर से निर्मोही अखाड़े के छह व्यक्तियों ने मुकदमा दायर कर विवादित स्थान पर अपना दावा प्रस्तुत किया। साथ ही रिसीवर प्रियदत्त राम को हटाकर स्वयं पूजा की अनुमति मांगी।
18 दिसम्बर 1961- उत्तर प्रदेश के केंद्रीय सुन्नी वफ्फ बोर्ड ने मुकदमा दायर कर कहा कि विवादित ढ़ाचा/ प्रार्थना की जगह मुस्लिमों की है। जिसे उन्हें दिया जाए। मुकदमें में यह भी था कि मूर्तियों को मस्जिद से हटा दिया जाए।
8 दिसम्बर 1984- विश्व हिन्दु परिषद ने दिल्ली में सम्मेलन कर अयोध्या में श्री राम जन्म भूमि स्थल की मुक्ति और मस्जिद का ताला खुलवाने के लिए आंदोलन करने का निर्णय किया।
1 फरवरी 1986- फैजाबाद के जिला न्यायाधीश केएम पांडेय ने स्थानीय अधिवक्त उमेश पांडेय की अर्जी पर बाबरी मस्जिद का ताला खोलने का आदेश दे दिया। इसके खिलाफ बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में एक याचिका दाखिल की।


1 जुलाई 1989- इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश देवकी नंदन अग्रवाल ने रामलला की तरफ से फैजाबाद की अदालत में मुकदमा दायर किया।
1० जुलाई 1989- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार के अनुरोध पर इस सम्बन्ध में सभी मामले अपनी लखनऊ खंडपीठ में स्थानांतरित कर दिए।
9 नवम्बर 1989- श्री राम जन्मभूमि स्थल का शिलान्यास किया गया।
24 मई 199०- विश्व हिन्दू परिषद ने हरिद्बार में विराट हिन्दू सम्मेलन का आयोजन किया। जिसमें देवोत्थान एकादशी यानी 3० अक्टूबर 199० के दिन मंदिर निर्माण के लिए कारसेवा की घोषणा की गई।
25 सितम्बर 199०- भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवानी कारसेवा में हिस्सेदारी के लिए गुजरात के सोमनाथ से लेकर अयोध्या तक रथ यात्रा शुरू की। उन्हें बिहार के समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया।
3० अक्टूबर 199०- कारसेवा के लिए अयोध्या में एकत्र स्वयं सेवकों व सुरक्षा बलों के मध्य हिंसकर संघर्ष हुआ। जिसमें अशोक सिंघल घायल हुए, जबकि कोठारी बंधुओं समेत कई स्वयं सेवकों की मृत्यु हो गई।
3० अक्टूबर 1992-  दिल्ली में हुई धर्म संसद की बैठक में छह दिसम्बर 1992 को मंदिर निर्माण के लिए दूसरी बार कारसेवा का निर्णय लिया गया।
6 दिसम्बर 1992- अयोध्या पहुंचे तकरीबन ढाई- तीन लाख कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद के तीनों गुम्बर गिरा दिए और वहां भगवा झंडा फहरा दिया।
16 दिसम्बर 1992- केंद्र सरकार ने लिब्रहान आयोग का गठन किया।
जनवरी 2००2- तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने विवाद सुलझाने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय में एक अयोध्या विभाग खुलवाया।
जनवरी-फरवरी 2००2- शिलादान व श्री राम महायज्ञ की घोषणा की गई।
अप्रैल 2००2- इलाहाबाद उच्चन्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने विवादित स्थल का मालिकाना हक तय करने के लिए सुनवाई शुरू की।
5 अप्रैल 2००3- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने विवादित स्थल पर खोदाई का आदेश दिया।
22 अगस्त 2००2- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने उच्च न्यायालय को अपनी रिपोर्ट सौपी।
3० जून 2००9- जस्टिस लिब्रहान ने अपनी रिपोर्ट सौपी। उल्लेखनीय है कि इस आयोग को अपनी रिपोर्ट 19 मार्च 1993 को सौपनी थी, परन्तु 48 बार इस आयोग का कार्यकाल बढ़ाया गया।
3० सितम्बर 2०1०- इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने विवादित स्थल को श्री राम लला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी सेंट्रल वफ्फ बोर्ड में बराबर-बराबर बांटने का आदेश दिया।
9 मई 2०11- इलाहाबाद न्यायालय के फैसले के खिलाफ सभी पक्षकारों ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की। सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगा दी।

8 मार्च 2०19- सर्वोच्च न्यायालय ने सुलह समझौते से इस विवाद का हल निकालने के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीश फकीर मोहम्मद इब्राहिम कलीफुल्ला की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय मध्यस्थता पैनल गठित किया। इसमें अन्य दो सदस्य आध्यत्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर और वरिष्ठ वकील श्री राम पंबू थे। यह पैनल भी विवाद का कोई तर्कपूर्ण    समाधान नहीं दे सका।

6 अगस्त 2०19- सर्वोच्च न्यायालय ने प्रतिदिन के हिसाब से सुनवाई शुरू की थी।
16 अक्टूबर 2०19- लगातार 41 दिन की सुनवाई के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।
9 नवम्बर 2०19- आखिरकार उच्च न्यायालय ने अयोध्या विवाद का एक तर्कपूर्ण समाधान प्रस्तुत करते हुए अपना फैसला सुनाया।

उच्च न्यायालय ने अयोध्या की विवादित जमीन पर रामलला विराजमान का हक माना है,  जबकि मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में ही 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया गया है। जिसके बाद अयोध्या में मंदिर निर्माण को लेकर ट्रस्ट का गठन भी कर दिया गया है ।

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