चित्र को देखकर यकायक नेहल के मानस पटल पर कुछ स्मृति चिन्ह अंकित हो गए। उसके आगे अपना बचपन मां -पिताजी सब घूम गए, प्यारा सा घर था उनका जिसमें नेहल अपने मां पिताजी के साथ रहती थी उसके पिता को पेड़- पौधों से विशेष लगाव था ।उन्होंने घर के अहाते में नीम के वृक्ष भी लगाया हुआ था ,तरह-तरह के रंग-बिरंगे पक्षी वहां चहचहाते रहते ,उन्हीं में से एक था मिट्ठू का परिवार, मिट्ठू उसकी मां एवं पिताजी । नेहल रोज देखा करती उसे वह उसकी दिनचर्या का अभिन्न अंग सा बन गए । एक दिन नेहल ने मिट्ठू के चिल्लाने की आवाजें सुनी देखा तो मिट्ठू के पिता वृक्ष के नीचे गिरे पड़े थे, उनके प्राण पखेरू हो चुके थे नेहाल को कुछ समझ ना आया वह उदास हो गई थोड़ी देर में उसने देखा मिट्ठू की मां मिट्ठू को प्यार से उसे कुछ खिला रही है जैसे उसे दिलासा दे रही हो कि मैं हूं ना तुम्हारी दुनिया तुम्हारा सब कुछ, नेहल को रोना आ गया। आज उसके पिता भी गुजर चुके थे और मां ने उसे अपनी छत्रछाया में समेट लिया था । आज नेहल को एहसास हुआ भावनाएं सब में होती है।
ऋतु नागर










