उल्लू देता है भविष्य का संकेत, तंत्र क्रियाओं में होता है उपयोग

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तंत्र क्रियाओं में उल्लू का प्रयोग प्राचीनकाल से होता आ रहा है। हालांकि इसे लेकर अंध विश्वास भी फैला है, इस तरह के भ्रम से दूर रहने की जरूरत है। वैसे तंत्र में उल्लू के रक्त, मल, मूत्र, हृदय, नेत्र, पंख, नख आदि का अलग-अलग उपयोग होता हैं। प्राचीन काल में कथित तौर पर तांत्रिक क्रियाओं में उल्लू सर्वाधिक वांछित पक्षी माना गया और उसके विविध उपयोगिताओं पर विस्तृत ग्रंथ ‘उलूक कल्प’ लिखा गया है।

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पक्षी तंत्र के अनुसार उल्लू धन के संकेत देने वाला होता है। जिन जगहों पर गड़ा धन या खजाना होता है। वहां उल्लूूू पाए जाते हैं। तंत्र शास्त्रों में उल्लू को धन की रक्षा करने वाला माना जाता है। उल्लू जिस घर या मंदिर में रहने लग जाए तो समझे उस जगह गड़ा धन या खजाना होगा और जहां उल्लू रहने लग जाते हैं, ऐसी जगह जल्दी ही सुनसान व विरान हो जाती है।

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चूंकि उल्लू माता लक्ष्मी की सवारी है और माता लक्ष्मी धन व वैभव प्रदान करने वाली देवी है, भगवान विष्णु की पत्नी है और भक्तों के प्रार्थना करने पर उनका कल्याण करती हैं, इसलिए उल्लू का तंत्र क्रियाओं में विश्ोष मान्यता प्रदान की जाती है। उल्लू रात्रि में दिखने वाला पक्षी है और इसका प्रमुख भोजन चूहा होता है। मान्यता यह है कि उल्लू को किसी भी संकट का पूर्वानुमान हो जाता है, इसलिए इसे ‘अपशकुन’ का प्रतीक भी माना गया है। तंत्र क्रियाओं में तो उल्लू की विशिष्ट भूमिका देखी जाती रही है, इसीलिए तांत्रिक तंत्र शक्तियों के लिए अक्सर उल्लू का उपयोग करते रहे हैं। प्राचीन काल में मौसम का हाल जानने के लिए भी उल्लुओं का उपयोग किया जाता था।

ऐसी मान्यता रही है कि उल्लू के पंख अगर सुस्त दिखाई दें तो इसका अर्थ है कि आने वाले कुछ दिनों में तापमान बढ़ने की संभावना है, लेकिन अगर इसके पंखों पर नमी दिखाई दे तो यह वर्षा के आने का संकेत है। यदि उल्लू के पंख बिल्कुल कड़क दिखाई दें तो इसका अर्थ है कि कड़ाके की ठंड पड़ने वाली है। उल्लू गहन अंधकार में भी मनुष्य की आंखों के मुकाबले 1०० गुना अधिक सहजता से देख सकता है। जानकारी के लिए बता दें कि उल्लू की कई प्रजातियां अपने सिर को पूरे 36० डिग्री तक घुमाने में सक्षम होती हैं।

उल्लू की उपस्थिति आपको भविष्य का संकेत देती है, आइये इसे जानते हैं-

1- मान्यता है कि किसी मकान पर उल्लू कई दिन तक आ-आकर बैठता है तो उस घर में किसी अनिष्ट की आशंका प्रबल है।

2- यदि पश्चिम दिशा में पेड़ पर बैठकर बोल रहे उल्लू पर नजर पड़ जाए तो धन की हानि की सूचना है।

3- उल्लू उत्तर दिशा में बैठा बोलता दिखे तो मृत्यु, दुर्घटना या बीमारी का संकेत है।

4- दक्षिण दिशा में प्रात: उल्लू को देखना-सुनना शत्रु हानि, धन लाभ जैसे शुभ का सूचक है।

5- रात्रि की बेला में उल्लू की आवाज यदि पूर्व दिशा से आ रही हो तो माना जाता है कि कल्याणकारी है और अगर पश्चिम, उत्तर या दक्षिण दिशा से आए तो किसी परेशानी की पूर्व सूचना है।

6- यदि प्रस्थान के समय उल्लू दाईं ओर दिखे तो यात्रा निष्फल होने की आशंका है।

7- कहीं जाते समय पीठ पीछे उल्लू हो तो यात्रा सफल होगी, ऐसा माना जाता है।

8- बिना आवाज किए उल्लू रात्रि में बिस्तर पर आ बैठे तो यह विश्वास है कि यदि कोई रोगी हो तो वह शीघ्र स्वस्थ होगा या कोई मांगलिक कार्य शीघ्र होने वाला है।

9- किसी मकान पर उल्लू कई दिन तक आ-आकर बैठता है तो उस घर में किसी अनिष्ट की आशंका प्रबल है।

11-मान्यता है प्रात:काल पूर्व दिशा में वृक्ष पर बैठे उल्लू को बोलते हुए देखने वाले व्यक्ति को धन की प्राप्ति का संकेत है।

12- उल्लू उड़ते समय किसी गर्भवती महिला को छूते हुए गुजर जाए तो इसे महिला को पुत्री होने का संकेत माना जाता है।

13- यदि उल्लू उड़ते समय किसी गंभीर रोगी को छूकर गुजर जाए तो इसका अर्थ है कि वह रोगी बहुत जल्द ठीक हो जाएगा।

उल्लू के शकुन- अपशकुन सम्बन्धित अन्य रोचक जानकारियां-

– शकुन शास्त्रियों का मानना है कि उल्लू का बायी ओर बोलना और दिखाई देना शुभ होता है। प्रवासी के पीछे की तरह दिखाई दे तो काम में सफलता मिलती है, लेकिन दाहिने देखना और बोलना अशुभ फल प्रदान करता है।
– रात्रि में यात्रा कर रहे व्यक्ति को कोई उल्लू होम-होम की आवाज करता मिले तो शुभ फल मिलता है, क्योंकि इस प्रकार की ध्वनि यदि वह बार-बार करता है तो इसकी इच्छा रमण की होती है।
– कोई उल्लू किसी के घर पर बैठना प्रारम्भ कर दे तो वह शीघ्र ही उजड़ जाता है। यदि किसी घर की छत पर बैठकर बोलता है तो उस घर के स्वामी या परिवार के सदस्य की निश्चित रूप से मृत्यु होती है। यदि किसी के दरवाजे पर उल्लू तीन दिन तक लगातार रोता है तो उसके घर में डकैती पड़ती है।

उल्लू दिखना और उसके अर्थ 

यात्रा में उल्लू की आवाज और दर्शन बायों तरफ ही शुभ रहा करते हैं । प्रवासी के पीछे की तरफ जाना भी काम में सफलता का सूचक है, किन्तु इसका दाहिनी तरफ दिखना और आवाज करना अशुभ रहता है । संस्कृत में धूक कहते हैं । रात में यह पक्षिराज माना जाता है । दिन में इसे दिखाई नहीं देता। यदि यह अपने घोंसले से निकल आये तो कौवे इसे बहुत परेशान करते हैं। यह कई तरह की आवाजें करता है । अनेक बार तो यह ऐसे बोलता है , जैसे कोई बच्चा रो रहा हो । लोक विश्वास के अनुसार यह उजाड़ में रहता है, इसलिए यह सूनापन चाहता है । रात्रि में यात्रा कर रहे व्यक्ति कोचर, उल्लू और सियारी के शकुन ही अधिकतर हुआ करते हैं। यदि कोई प्रवास कर रहा व्यक्ति अपनी बायीं को देखता है अथवा उसकी आवाज सुनता है तो कार्यसिद्धि की सूचना होती है। इसके विपरीत अर्थात् दाहिनी तरफ बोलने पर विफलता सूचना देता है, पीठ पीछे बोलने पर उत्तम और सामने बोलने पर अशुभ फल देता है। यह जब ‘ हुम – हुम ‘ ऐसी आवाज करता है तो दूषित नहीं होता क्योकि इस प्रकार की आवाज करने पर यह संभोग का इच्छुक होता है। सामान्यतया उल्लू का घर पर बैठना अशुभ माना जाता है। सामान्यतया इसलिए कि कारण विशेष से बैठना एक बात है और भावी का अनुमान लगाकर बैठना दूसरी बात । भावो का अनुमान कुछ पशु – पक्षियों को हो जाता है और इस परिज्ञान के कारण वे जब कोई चेष्टा या व्यवहार करते हैं तो शकुन के निमित ग्राहा होते हैं अन्यथा नहीं । मान लीजिए कोई ऐसी जगह है जहा बैठकर वह अपने भोज्य जीवों को आसानी से देख लेता है । अथवा जहां मिल जाते हैं तो ऐसी स्थिति में केवल उसके बैठने का हो दोष लगता है। यदि किसी घर की छत पर बैठकर यह बोलता है तो उस ग्रह में गृहपति या किसी अन्य पारिवारिक जन को मृत्यु होती है । एक सप्ताह से अधिक समय तक यदि यह घर की मुंडेर पर बैठता है तो घर के विनष्ट अथवा नष्ट हो जाने की सूचना देता है । तीन दिन तक यदि उल्लू दरवाजे पर बैठकर रोता है तो चोरी होने की प्रबल आशंका होती है । इसके दोध को शान्ति के लिए रात्रि में मांस की बलि देनी चाहिए। उल्लू दिन में किसी भी दिशा में, किसी भी तरफ बोलता है तो अशुभ को हो सूचना देता है ।

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