मोदी जीते या हारें, पर भाजपा कई दशकों तक कहीं नहीं जाने वाली, राहुल भ्रम में हैं : प्रशांत किशोर

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हाल ही में कांग्रेस के पंजाब के पूर्व प्रभारी और एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने प्रशांत किशोर पर कटाक्ष किया था कि वे पहले कांग्रेस में शामिल हो, फिर अपनी नसीहत दें। पार्टी किसी की गुलाम नहीं है। यह बात पार्टी नेता के तौर पर कहने-सुनने में बहुत अच्छी लग रही होगी, लेकिन इससे यह बात साफ हो जाती है कि सात साल से सत्ता से वनवास के बावजूद कांग्रेसी नेताओं ने सच सुनने की क्षमता नहीं पैदा की है। कांग्रेस आज भी उसी हिटलरशाही के भ्रम में है, जहां एक परिवार देश की दशा और दिशा तय करता था। कांग्रेस के नेता अपने नेतृत्व की कमियों को जानने तो लग गए है, लेकिन मानते अब भी नहीं है, यदि कांग्रेस के नेताओं ने अपनी गलतियों से सबक नहीं लिया तो कांग्रेस के पराभव को रोक पाना कांग्रेस के शुभचिंतकों के लिए संभव नहीं होगा।

भारतीय राजनीति में करीब एक दशक से छाये राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर यानी पीके ने प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस को लेकर जो कड़वे बोल बोले हैं, जिन्हें कांग्रेस की ओर नकार दिया गया है, लेकिन कांग्रेस के नकार देने से वह हकीकत नहीं बदल सकती है, जिसके आइने में प्रशांत किशोर ने कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस आलाकमान को चेहरा दिखाने का प्रयास किया है। कांग्रेस बेशक पीके बात को हवा में उड़ा दे, लेकिन पीके की बात करें तो उनकी बात में दम तो है, उसका आकलन सही होता हुआ देश ने कई बार देखा है। हाल ही में पश्चिम बंगाल में जिस तरह से पीके का आकलन सही साबित हुआ है, उसने उसकी राजनीतिक समझ का लोहा देश-दुनिया को मनवाया है।

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प्रशांत किशोर ने भाजपा को भारतीय राजनीति में अंगद की पांव की तरह जमने की बात ऐसे वक्त में कही है कि जब कुछ ही महीनों बाद यूपी, उत्तराखंड, पंजाब, गुजरात और गोवा जैसे 5 अहम राज्यों में विधानसभा चुनाव होने को हैं। निश्चित तौर पर उनकी बातें गैर-बीजेपी दलों का मनोबल तोड़ने वाली हैं। पीके का संदेश साफ है कि अगर विपक्षी दल यह सोचकर हाथ पर हाथ धरे न बैठें कि मोदी सरकार के खिलाफ जनता में नाराजगी है और वक्त आने पर जनता बीजेपी को उखाड़ फेंकेगी। इसके लिए उन्हें अपनी कमजोरियों को दूर करना होगा और कड़ी मेहनत करनी होगी।

प्रशांत किशोर ने गोवा में एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि भाजपा कई दशकों तक कहीं नहीं जाने वाली है। भारतीय राजनीति में आज उसका रुतबा वही है जो आजादी के बाद के शुरुआती 40 सालों तक कांग्रेस का था। पीके ने कहा कि जो लोग यह सोचते हैं कि लोगों में नाराजगी है और जनता पीएम मोदी को उखाड़ फेंकेगी तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं होने वाला है। हो सकता है कि लोग मोदी को उखाड़ फेंके भी लेकिन बीजेपी कहीं नहीं जाने वाली है। राहुल भ्रम में हैं । 2014 में नरेंद्र मोदी की अगुआई में बीजेपी की ऐतिहासिक जीत के पीछे प्रशांत किशोर की रणनीतियों को भी अहम फैक्टर माना गया था। वक्त के साथ पीके का बीजेपी से मोहभंग हुआ और 2015 के बिहार विधानसभा में उन्होंने महागठबंधन (जेडीयू+आरजेडी+कांग्रेस) की जीत सुनिश्चित कर अपनी रणनीतियों का लोहा मनवाया। बिहार चुनाव के बाद तो प्रशांत किशोर जैसे बीजेपी की लहर की काट वाली सियासी ‘जड़ी’ बनकर उभरे। उन्होंने भी निराश नहीं किया। एक के बाद एक तमाम राज्यों में उनकी बनाई रणनीतियों ने गैर-बीजेपी दलों की जीत की स्क्रिप्ट लिखी। चाहे पंजाब में कांग्रेस की हो, आंध्र प्रदेश में जगनमोहन रेड्डी की, दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की या फिर तमिलनाडु में एमके स्टालिन की…जीत के सूत्रधार पीके बने। यह बताने के लिए काफी है कि पीके जो कहते हैं, उनका वजन क्या है खासकर विपक्षी दलों के लिए।

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