84 कोस में फैली भगवान श्रीराम की तपोभूमि

0
1418

चित्रकूट। वनवास काल के 14 वर्षों में से लगभग साढ़े बारह वर्षों का समय प्रभु श्री राम ने चित्रकूट में ही बिताया था। आज भी यहां इस बात का एहसास होता है कि मानो प्रकृति ने प्रभु श्री राम के स्वागत के लिए खुद यहां की धरती का श्रृंगार किया, कहीं कल-कल बहती मंदाकिनी का नजारा तो कहीं सुंदर प्रपात, कहीं पक्षियों का कलरव तो कहीं टेशू के फूलों की महक, कहीं शंख ध्वनि तो कहीं घंटा और घड़ियालों की गूंज, वास्तव में प्रभु श्री राम का चित्रकूट अति विचित्र और मनभावन है।

जब प्रभु श्री राम ने वनवास के लिए चित्रकूट की ओर प्रस्थान किया तब प्रकृति ने भी उनकी आगवानी में पलक पाँवड़े बिछा दिए थे। गर्मी के लिए एअर कंडीशनर गुफाएं तैयार की थीं और जन्नत का एहसास कराने वाले धारकुंडी, बेधक, शबरी प्रपात, अनुसुइया आश्रम जैसे जंगल। उनमे कल-कल बहती नदी और झरने व प्रपातों से यहां की प्राकृतिक सुषमा में चारचांद लगा दिए थे। आज भी गुप्त गोदावरी में जहां एक ओर भीषण गर्मी में भी ठंड का एहसास होता है वहीं धारकुंडी आश्रम  में जन्नत कीअनुभूति।

Advertisment

आज भी यहां गुप्त गोदावरी की गुफाओं में भीषण तपिश के दौरान की ठण्ड का एहसास होता है।  ऐसा लगता है मानों प्रकृति ने प्रभु श्री राम के लिए एअर कंडीशनर कमरे बनाये हों। वही मानिकपुर क्षेत्र के  धारकुंडी आश्रम में आज गर्मी के दिनों में भी जन्नत जैसा नजारा रहता है। प्रतिवर्ष लाखो सैलानी चित्रकूट की पावन धरा पर आकर स्वर्ग को अहसास करते हैं। पाठा के ही बेधक जंगल मे तो आज भी सूरज की किरणें धरती तक नहीं पहुंचती, कमोवेश यही हालात अनुसुइया परिक्षेत्र के जंगलों  का भी है। यहां के पहाड़ ऐसे कि बरबस ही उनसे जल धाराएं निकल रहीं हैं, बाल्मीकि आश्रम आज भी मनोहारी है तो रामघाट में बनी पर्णकुटी मानों प्रभु की पल-पल की गवाह। यही गोस्वामी तुलसीदास को प्रभु श्री राम के दर्शन मिले तो रहीम खान को ज्ञान, औरंगजेब ने यहीं मंदिर बनवाया तो अनुसुइया के तपबल से कल-कल करती मंदाकिनी का उदगम हुआ।

चित्रकूट ही वह भूमि है जहां त्रिदेव को बालक बनकर 6 महीने पालने में झूलना पड़ा। भौतिकता ने यहां की वास्तविकता में रंग रोगन जरूर लगाएं हैं लेकिन आज भी यहां हजारों संतों के तप की ऊर्जा का संचरण है, ना इन्हें भौतिकता से मतलब है ना लोकाचार की भूंख।  गुफाओं, कंदराओं में उनका जप-तप निरंतर जारी है। अधिकांश लोगों के लिए चित्रकूट का मतलब केवल रामघाट, कामदगिरि परिक्रमा, यहां के चारो धाम गुप्त गोदावरी, स्फटिक शिला, सती अनुसुइया और हनुमानधारा तक सीमित है। जबकि चित्रकूट 84 कोस में फैला वह विहंगम तीर्थ है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here