धर्मनगरी चित्रकूट की पौराणिक और ऐतिहासिक धरोहरें, उपेक्षा का दंश

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चित्रकूट । धार्मिक और राम की तपोभूमि चित्रकूट -माता सती अनुसुईया के तपोबल से निकली पतित पावनी मंदाकिनी के तट पर बसा चित्रकूट देश के सबसे प्राचीन तीर्थो में से एक है। विन्ध्य पर्वत श्रृंखलाओं और वनों से घिरे इस क्षेत्र में अनेक सुरम्य पहाड़ियों के साथ -साथ ऐतिहासिक धरोहरों की भी खान है, लेकिन इन पौराणिक धरोहरों को सहेजने वाला कोई नहीं है। न तो प्रशासन ध्यान दे रहा और न सरकारें। उपेक्षा के चलते अनमोल धरोहरें खंडहर होती जा रही हैं। यदि सरकार इन ऐतिहासिक,धार्मिक और पौराणिक महत्व के स्थलों का विकास कर दे तो पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन सकते है।


प्रभु श्रीराम की तपोभूमि में प्रतिमाह लाखों श्रद्धालु रख आते हैं, लेकिन ऐतिहासिक धरोहरों की दुर्दशा को देख वे निराश होकर लौटते हैं। यदि धर्मनगरी के विशाल क्षेत्र में फैली धरोहरों को संरक्षित कर पर्यटन मानचित्र में शामिल किया जाए तो यहां पर्यटन की तादाद को और बढ़ाया जा सकता है। यहां बालाजी मंदिर है तो गुप्त कालीन भगवान भोले के चर सोमनाथ मंदिर सुशोभित है। खजुराहो शैली का मराठा कालीन गणेशबाग भी है जो मिनी खजुराहों के नाम से विख्यात है। इसके अलावा बाल्मीकि आश्रम लालापुर में गुप्तकालीन आशाम्बरी माता मंदिर, चंदेलकालीन मडफा का किला और मराठा कालीन तरौहा, कर्वी के किला हैं।
हैरानी की बात यह है कि सभी ऐतिहासिक व पौराणिक धरोहरें रखरखाव के अभाव में नष्ट हो रही हैं। कुछ किले तो नेस्तनाबूत होने के कगार पर हैं। उनमें मडफा, तरौंहा व कर्वी का किला प्रमुख है। मडफा का किला तो जंगल में है लेकिन जिला मुख्यालय में बने कर्वी व तरौहां के किला की देखभाल करने वाला भी कोई नहीं है। तरौंहा के किला की दीवारें ढह गई हैं जबकि कर्वी के किला में अवैध कब्जे हो गए हैं। पूर्व जिलाधिकारी जगन्नाथ के समय इस किला के पास पार्क बनवाने की योजना थी। उसका प्रस्ताव भी शासन के पास भेजा गया था। इसी के तहत किले के अंदर एक यात्री निवास भी बनाया गया था, मगर उनके जाने के बाद किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। यही हाल गणेशबाग, ऋषियन आश्रम और गोड़ा मंदिर का है। सबसे दुखद पहलू यह है कि धर्मनगरी की एक भी धरोहर उत्तर प्रदेश पुरातत्व विभाग से सरंक्षित नहीं है। इसलिए अधिकारी इस ओर ध्यान नहीं देते है। जनपद में लगभग एक दर्जन ऐतिहासिक व पैराणिक धरोहरें केंद्र सरकार के संरक्षण में दी गई हैं, पर उनका भी कोई नुमाइंदा उनकी देखरेख नहीं कर रहा है।

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बुंदेलखंड के इतिहासकार प्रो. कमलेश थापक व शोधर्थी रमेश कुमार चैरसिया के मुताबिक यदि ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण के साथ धर्मनगरी के पर्यटक मानचित्र में इन्हें शामिल कर लिया जाए तो सैलानी इन स्थानों को भी देखने को आएंगे। इसके यहां पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।
पुरातत्व विभाग के असिस्टेंट कन्जर्वेटर केशव मुरारी ऐतिहासिक धरोहरों के संबंध में सिर्फ इतना कहते हैं कि उनकी ओर से देखभाल के लिए हर संभव प्रयास किया जाता है।

ये हैं ऐतिहासिक धरोहरें-

गणेश बाग (कर्वी) मराठाकालीन

ब्रिटिश कब्रगाह (कर्वी) बिट्रिश कालीन

कोठी तालाब (कर्वी) चंदेलकालीन

रामनगर मंदिर चंदेलकालीन

मऊ टैंपिल चंदेलकालीन

बरहाकोटा शिव मंदिर चंदेलकालीन

ऋषियन आश्रम चंदेलकालीन अंग्रेज की कब्र (बरगढ़) बिट्रिश कालीन

बरगढ़ मंदिर चंदेलकालीन

गोड़ा मंदिर (भरतकूप) चंदेलकालीन

मडफा किला चंदेलकालीन

सोमनाथ मंदिर (चर) गुप्त कालीन

तरौंहा किला मराठा कालीन

कर्वी किला मराठा कालीन

बालाजी मंदिर मुगलकालीन

आशाम्बरी माता मंदिर गुप्त कालीन

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