आरासुरी अम्बाजी शक्तिपीठ: यहाँ प्रवास से ही मिलाता है अतुल्य पुण्य 

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भारत के गुजरात राज्य का अम्बाजी मंदिर बेहद प्राचीन है। यहां मंदिर के गर्भगृह में माता की कोई प्रतिमा स्थापित नहीं है। शक्ति के उपासकों के लिए यह मंदिर बहुत महत्व रखता है।

यहां भगवती का एक श्रीयंत्र स्थापित है। इस श्रीयंत्र को कुछ इस प्रकार सजाया जाता है कि देखने वाले को लगे कि मां अम्बे यहां साक्षात विराजमान हैं। अम्बाजी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां पर द्बापर युग में भगवान विष्णु के अवतार भगवान श्रीकृष्ण का मुंडन संस्कार यहां हुआ था। मान्यता है कि भगवान राम भी शक्ति की उपासना के लिए यहां आये थे। गुजरात में तीन शक्तिपीठ प्रमुख हैं- (1) अम्बिका, (2) कालिका तथा (3) श्रीबाला बहुचरा। इनके अतिक्ति कच्छ में आशापुरा, भुज के पास रुद्राणी, काठियावाड़ में द्वारका के निकट अभयमाता, हलवद के पास सुंदरी, बढ़वाण में बुटमाता, नर्मदातट पर अनूसया, पेटलाद के पास आशापुरी, घोघा के पास खोडियारमाता आदि अन्य मान्य स्थान हैं।
आरासुरी अम्बिका (अम्बाजी) शक्तिपीठ के विषय  में कहा जाता है कि गुजरात के अर्बुदारण्य क्षेत्र में पर्वत-शिखर पर सती के ह्दय का एक भाग गिरा था, आजतक उसी अंग की पूजा यहां अम्बा या अम्बका देवी के रूप में होती है। यहां माता का शृंङ्गïार प्रात: काल बालारूप में, मध्याह्न युवती रूप में और सायं वृद्घारूप में होता है। वास्तव में यहां माता का कोई विग्रह नहीं है। ‘बीसायंत्र’ मात्र है, जो शृंङ्गïारभेद से तीन रूप में प्रतीत होता है।
दिल्ली-अहमदाबाद रेल लाइन पर स्थित आबू-रोड स्टेशन से ‘आरासुर’ तक सड़क जाती है। वहाँ पर्वतपर अम्बिका जी का मंदिर है। आरासुरपर्वत के धवल होने के कारण इन देवी को ‘धोळागढ़वाळली’ माता भी कहा जाता है।
आरासुरी अम्बा जी के अनेक आख्यान इस क्षेत्र में प्रचलित हैं। समय-समय पर ये देवी अधिकारी भक्तों को अपने दिव्यरूप का दर्शन भी देती हैं।
यात्री को यहां ब्रह्मïचर्यपूर्वक रहना पड़ता है। मान्यता हैं आरासुर में ब्रह्मïचर्य के नियम का भंग करने से अनिष्ट होता है।

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अर्बुदारण्य क्ष्ोत्र में पर्वत शिखर पर सती का हृदय का एक भाग गिरा था, उसी अंग की पूजा यहां आरासुरी अम्बिका जी के नाम से होती है। यह भी प्रसिद्ध है कि गिरनार के निकट भैरव पर्वत पर सती का ऊध्र्व ओष्ठ गिरा था, जो कि भ्ौरव शक्तिपीठ के रूप में विख्यात है।

अर्बुदाचल का माहात्म्य पद्मपुराण में इस प्रकार वर्णित है-

ततो मच्छेत धर्मज्ञ हिमवत्सुतमर्बुदम।
पृथिव्यां यत्र वै छिद्रं पूर्वमासीद युधिष्ठिर।।
तत्राश्रमो वसिष्ठस्य त्रिषु लोकेषु विश्रुत:।
तत्रोष्य रजनीमेकां गोसहस्त्रफलं लभेत।।

भावार्थ- धर्मराज युधिष्ठिïर! तदनन्तर हिमालय पर्वत के पुत्र अर्बुदाचल (आबू) पर्वत पर जाये, जहां पहले पृथ्वी में पाताल जाने के लिये एक सुरंग थी। वहां का महर्षि वशिष्ठ का आश्रम तीनों लोकों में विख्यात है। यहां मनुष्य यदि एक रात भी निवास कर लेता है तो उसे एक सहस्त्र गोदान करने का पुण्य प्राप्त होता है।

आरासुर का अम्बिका मंदिर छोटा है, लेकिन सम्मुख सभामण्डप विशाल है। मंदिर के पीछे थोड़ी दूर पर मानसरोवर नामक तालाब है। आरासुर अम्बा जी का मूल स्थान इसी पर्वत पर माना जाता है। पर्वत की चढ़़ाई कठिन है। पर्वत पर चढ़ते समय मार्ग में एक शिलारूपिणी देवी की मूर्ति मिलती है। पर्वतपर भगवती की प्रतिमा है। पास ही पारसमणि नाम का पीपल वृक्ष है जो परम पवित्र समझा जाता है। वन्य पशुओं के डर के कारण पर्वतपर से संध्या होने के पूर्व ही दर्शन कर लौट आना चाहिए।
एक दूसरी मान्यता के अनुसार  गिरनार पर्वत के शिखर पर स्थित अम्बिका जी के मंदिर को भी शक्तिपीठ माना जाता है। यहां देवी सती का उदरभाग गिरा था।

यहां गिरनार पर्वत के प्रथम शिखर पर देवी अम्बिका का विशाल मंदिर है। एक मान्यता के अनुसार यहां पर स्वयं जगतजननी देवी पार्वती हिमालय से आकर निवास करती हैं। इस प्रदेश के ब्राह्मण विवाह के बाद वर-वधु को लेकर देवी का चरण स्पर्श कराने लाते हैं। एक मान्यता के अनुसार देवी का उदरभाग गिरा था। यहां की शक्ति चंद्रभागा और भ्ौरव वक्रतुण्ड है।

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