अंतर्मन का सम्बन्ध हमारी चेतना से होता है, जो हमे सद्कर्मों की ओर प्रेरित करती है। जिसका अतर्मन जितना जाग्रत होता है, वह उतना ही स्पष्ट चरित्र वाला होता है। पावन कार्यों को करने में उसकी प्रगाढ़ रुचि रहती है। वह जीवन में उचित निर्णय लेने की क्षमता रखता है। चैतन्य तत्व से सम्बन्ध बनाने का प्रयास करता है।
होय विवेक , मोह भ्रम भागा।
तब रघुनाथ चरण अनुरागा।।
कुश की जड़ की गांठ से माला बना करके प्रतिदिन एक हजार मंत्रों का जप करें। इस मंत्र के प्रयोग से मोह, भ्रम आदि का अंत होकर अंतम्रन जाग्रत होता है। जैसे-जैसे साधना आगे बढ़ती है, वैसे-वैसे साधक का अंतर्मन सशक्त होता जाता है। वह चेतन तत्व से जुड़ता जाता है। वह भ्रम से मुक्ति पा लेता है, क्योंकि भ्रम ही मनुष्य को भटकता है। यही भ्रम है, जो माया के प्रभाव को मजबूत करता है। इस मंत्र को सिद्ध करने के लिए पूर्ण आस्था की जरूरत होती है। नियमित रूप से यह साधना करनी चाहिए।