भगवान श्री राम के इस स्वरूप की मानसिक पूजा, देगी अतुल्य पुण्य

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मानसिक पूजा करना आसान नहीं है, लेकिन इससे जो पुण्य फल की प्राप्ति होती है, वह अतुलनीय है, मानसिक पूजा का महत्वपूर्ण पहलू यह है कि साधना के दौरान ध्यान क्षण भर के लिए भंग नहीं होना चाहिए। इससे साधना निष्फल हो जाती है, इसलिए मानसिक साधना के लिए मन पर नियंत्रण होना चाहिए, जो साधक मन पर नियंत्रण कर लेगा, वही सफल मानसिक पूजा कर अतुल्य पुण्य को प्राप्त कर सकता है।

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मानसिक पूजा से सम्बन्धित लेख हमारी वेबसाइट में उपलब्ध है, जिन्हें पढ़कर आप मानसिक पूजा का तरीका और उसका महत्व जान सकते हैं, जिनके लिंक भी हम इस लेख के बीच में भी देंगे। बहरहाल, यहां हम आज आपको बताने जा रहे हैं कि भगवान श्री राम की मानसिक पूजा में उनके किस रूप का ध्यान किया जाए।

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भगवान श्री राम का अनुपम स्वरूप, जिसके ध्यान मात्र से जीव से जीव का कल्याण संभव है, क्योंकि यह कलयुग चल रहा है, यहां थोड़ा सा भी पुण्य भी अत्यधिक पुण्यदायी होता है। आइये, जाने भगवान का अनुपम स्वरूप और ध्यान-

मिथिलापुरी में महाराज जनक के दरबारमें भगवान् श्री राम अपने छोटे भाई श्री लक्ष्मण के साथ पधारते हैं। भगवान् श्रीराम नवनीलनीरद दूर्वा के अग्रभागके समान हरित आभायुक्त सुन्दर श्यामवर्ण और श्रीलक्ष्मण स्वर्णाभ गौरवर्ण हैं। दोनों इतने सुन्दर हैं कि जगत की सारी शोभा और सारा सौन्दर्य इनके सौन्दर्य समुद्र के सम्मुख एक जल कर्ण भी नहीं हैं । किशोर – अवस्था है।

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धनुष – बाण और तरकस धारण किये हुए हैं। कमरमें सुन्दर दिव्य पीताम्बर है। गलेमें मोतियोंकी, मणियों की और सुन्दर सुगन्धित तुलसी मिश्रित पुष्पों की मालाएँ हैं। विशाल और बल की भण्डार सुन्दर भुजाएँ हैं , जो रत्नजटित कड़े और बाजूबंद से सुशोभित हैं। ऊँचे और पुष्ट कंधे हैं। अति सुन्दर चिबुक है, नुकीली नासिका है, कानों में झूमते हुए मकराकृति सवर्णकुण्डल हैं, सुन्दर अरुणिमायुक्त कपोल हैं।

लाल लाल अधर हैं। उनके सुन्दर मुख शरत्पुर्णिमा के चन्द्रमा को भी नीचा दिखानेवाले हैं। कमलके समान बहुत ही प्यारे उनके विशाल नेत्र हैं। उनकी सुन्दर चितवन कामदेव के भी मनको हरने वाली है। उनकी मधुर मुसकान चन्द्रमाकी किरणों का तिरस्कार करती है। तिरछी भौंहें हैं ।

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चौड़े और उन्नत ललाट पर ऊर्ध्वपुण्ड्र तिलक सुशोभित है। काले घुघराले मनोहर बालों को देखकर भौंरोंकी पंक्तियाँ भी लजा जाती हैं। मस्तकपर सुन्दर सुवर्ण मुकुट सुशोभित है। कंधेपर यज्ञोपवीत शोभा पा रहे हैं ।

मत्त गजराज की चाल से चल रहे हैं । इतनी सुन्दरता है कि करोड़ों कामदेवों की उपमा भी उनके लिये तुच्छ है। उनके अनुपम सौन्दर्य की देव भी निहार कर आनंदित हो रहे है। सम्पूर्ण त्रिलोकी का सौन्दर्य आभा मंडल में है ।

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