ब्रजेश्वरी देवी पीठ: अति पवित्र- परम पुण्यदायी

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brajeshvaree devee peeth: ati pavitr- param punyadaayee ब्रजेश्वरी देवी पीठ मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा नगर में स्थित है, जो कभी इस राज्य की राजधानी था। यहां आज चामुंडा देवी, ज्वालामुखी देवी आदि की पीठें स्थापित हैं, अत : स्थान अति पवित्र माना जाता है। पौराणिक कथानुसार इस क्षेत्र में जलंधर नाम का दैत्य अनेक वर्षों से देवताओं से युद्ध कर रहा था, पर उसे परास्त करना कठिन था। अत : विष्णु व शंकर ने कपटी माया से इसे परास्त किया। दोनों देवताओं ने उसकी भक्त पत्नी के शाप से डर कर मरणासन्न जलंधर को दर्शन देकर वर मांगने को कहा, तो दैत्य ने कहा कि मेरा पार्थिव शरीर जहां – जहां फैले, वहां सभी देवी – देवताओं और तीर्थ का निवास रहे और श्रद्धालु दर्शन करके पुण्य लाभ प्राप्त करें। इसी कारण शिवालिक पर्वतों के मध्य 12 योजन के क्षेत्र में यह पीठ फैला हुआ है। यहां अनेक मंदिर तथा तीर्थ हैं।

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मंदिर में प्रवेश द्वार पर शेरों की जोड़ी के दर्शन होते हैं। मंदिर के चारों ओर परकोटा बना है, जिसकी परिक्रमा में अनेक चमत्कारी प्रतिमाएं विद्यमान हैं। मंदिर नगर के मध्य भाग में एक पहाड़ी पर है। इसमें एक बड़ा व ऊंचा शिखर है, जिसके नीचे मां की पिंडी विराजमान है। छोटे- छोटे शिखरों से भी मंदिर सुशोभित है। मंदिर प्रांगण में एक बहुत बड़ा वटवृक्ष है, जिसमें भक्त मान्यता पूर्ण हेतु कलावा बांध देते हैं। मंदिर में भीड़ नियंत्रित करने हेतु लोहे की रेलिंग का प्रयोग किया गया है, जिससे यात्री सरलता से दर्शन प्राप्त कर लेते हैं। मंदिर की पूजा – अर्चना व रख – रखाव हेतु एक ट्रस्ट बना है।

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अन्य दर्शनीय स्थल

  • ध्यानू भक्त स्थल : मंदिर प्रांगण में ही दाई और ध्यानू भक्त व माता की मूर्ति है। ऐसी मान्यता है कि इसी मंदिर में ध्यानू भक्त ने अपना शीश काटकर माता को भेंट कर दिया था।
  • महादेव मंदिर : मुख्य मंदिर के पास ही भगवान शिव के दर्शन कृपाली भैरव के रूप में एक प्राचीन मंदिर में होते हैं।
  • वीरभद्र मंदिर : लगभग एक किलोमीटर दूर शिव के एक शिष्य वीरभद्र का सुंदर प्राचीन मंदिर है। कथा है कि इसी वीरभद्र के द्वारा शिव ने दक्ष के यज्ञ स्थल को नष्ट करवा दिया था।
  • कुरुक्षेत्र सरोवर : इस कुंड में स्नान करने से पितरों का उद्धार होता है। ग्रहण में स्नान करने से तीन जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।
  • गुप्तगंगा : लगभग दो किलोमीटर दूर एक जल का सरोवर है, जिसमें जल कहां से आता है ज्ञात नहीं हो सका। जल की कमी को दूर करने हेतु अर्जुन ने बाण चलाकर यहां जल उत्पन्न किया था।
  • सहस्त्रधारा : मंदिर से चार किलोमीटर पर एक पहाड़ी गुफा में जल की अनेक धाराएं बहती रहती हैं और एक जल प्रपात लगभग 20 फीट ऊंचाई से गिरता है|

यात्रा मार्ग

  • पठानकोट – जोगेंदर नगर नैरो गेज रेलमार्ग पर कांगड़ा रेलवे स्टेशन है। यहां से मंदिर मात्र तीन किलोमीटर दूर है।

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