गंगासागर का महत्व

0
5465
गंगासागर का महत्व

gangaasaagar ka mahatvसारे तीरथ बार – बार, गंगासागर एक बार…. जिससे यह साबित होता है कि गंगासागर का महत्त्व तीर्थस्थलों में सर्वाधिक है। यह द्वीप के दक्षिणतम छोर पर गंगा डेल्टा में गंगा के बंगाल की खाड़ी में पूर्ण विलय (संगम) के बिंदु पर लगता है। बहुत पहले इस ही स्थानपर गंगा जी की धारा सागर में मिलती थी, किंतु अब इसका मुहाना पीछे हट गया है। अब इस द्वीप के पास गंगा की एक बहुत छोटी सी धारा सागर से मिलती है। गंगासागर या सागर संगम वह बिंदु है, जहां पावन गंगा सागर से मिलती हैं। इसका उल्लेख महाकवि कालिदास के काव्य ‘ रघुवंश ‘ में मिलता है। सन् 1584, 1688, 1822 और 1876 में आने वाले चक्रवातों के कारण भी यहां काफी क्षति हुई। हिंदू मान्यता के अनुसार, देवताओं के राजा इंद्रदेव ने एक बार महाराज सगर द्वारा छोड़े गए अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को कपिल मुनि के आश्रम के पास छिपा दिया। राजा के साठ हजार बेटों ने मुनि को इस चोरी के लिए जिम्मेदार ठहराया। इससे मुनि को क्रोध आ गया और उन्होंने राजा के पुत्रों को शाप देकर भस्म कर दिया। बाद में वह इस बात के लिए राजी हुए कि राजा का कोई वंशज यदि पावन गंगा को यहां तक ले आए तो राजकुमारों को मोक्ष प्राप्त हो जाएगा। कई पीढ़ियों के बाद इसी वंश के राजा भगीरथ ने अपने तपोबल से गंगा से यह आश्वासन प्राप्त किया कि वह सागरद्वीप पर जाएंगी, लेकिन वह जब स्वर्गलोक से मृत्युलोक पर अवतरित हों, तो उनकी वेगवती धारा को नियंत्रित करने के लिए कोई वहां उपस्थित हो। भगवान शिव ने हिमालय में गंगा को अपनी जटा में धारण किया। भगीरथ जब गंगा को बंगाल का रास्ता दिखा रहे थे, उस समय गंगा जह्वमुनि के आश्रम के ऊपर से बह रही थीं, तभी मुनि ने गंगा को पी लिया और भगीरथ के अनुनय – विनय करने पर जानु ( जंघों ) से निकाल दिया, इसलिए बंगाल में गंगा को जाह्नवी भी कहते हैं।

दर्शनीय स्थल

सागरद्वीप में केवल थोड़े से साधु ही रहते हैं। यह द्वीप लगभग 150 वर्गमील के लगभग है। जहां गंगासागर का मेला लगता है, वहां से दो – एक किलोमीटर उत्तर वामनखल नामक स्थान में एक प्राचीन मंदिर है। उसके पास चंदनपीडि – वन में एक जीर्ण मंदिर है और बुड़बुड़ी नदी के तट पर विशालाक्षी का मंदिर है। पहले यहां गंगाजी समुद्र में मिलती थीं, किंतु अब गंगा का मुहाना पीछे हट आया है। अब गंगासागर ( सागरद्वीप ) के पास गंगाजी को एक छोटी धारा समुद्र से मिलती है। गंगासागर का मेला मकर संक्रांति पर लगता है और प्रायः पांच दिन रहता है। इसमें स्नान तीन दिन होता है। गंगासागर में कपिल ऋषि का सन् 1973 में बनाया गया एक बड़ा सुंदर मंदिर है, इसमें मध्य में कपिल ऋषि की मूर्ति है तथा उसके एक ओर राजा भगीरथ को गोद में लिए हुए गंगाजी की मूर्ति है एवं दूसरी ओर राजा सगर तथा हनुमानजी की मूर्ति स्थापित है। इसके अतिरिक्त यहां आचार्य कपिलानंद जी का आश्रम, योगेंद्र मठ, शिव शक्ति महानिर्वाण आश्रम, महादेव मंदिर व भारत सेवाश्रम संघ का विशाल मंदिर स्थित है। संक्रांति के दिन समुद्र से प्रार्थना की जाती है और प्रसाद चढ़ाया जाता है तथा समुद्र – स्नान किया जाता है। दोपहर  को फिर स्नान तथा मुंडन होता है। यहां पर लोग श्राद्ध, पिंडदान भी करते हैं। इसके पश्चात् कपिलमुनि के दर्शन करते हैं। तीन दिन समुद्र – स्नान तथा दर्शन किया जाता है। इसके बाद लोग लौटने लगते हैं। 5 वें दिन मेला समाप्त हो जाता है।

Advertisment

मीठे जल का अभाव

गंगासागर में मीठे जल का अभाव है। मेले के समय यात्रियों के लिए जल की सामान्य व्यवस्था होती है। मीठे जल का एक कच्चा सरोवर है। उसमें मेले के समय कोई स्नान नहीं कर सकता है। घड़े में वहां का पानी ले जा सकते हैं। आसपास खारे पानी के दो – तीन सरोवर हैं।

यात्रा मार्ग

कोलकाता में बड़ा हवाई अड्डा है, जहां हर ओर से हवाई जहाजों का आगमन होता रहता है। यात्री यहां से गंगा सागर की यात्रा करते हैं। कोलकाता से बस या टैक्सी द्वारा यात्री नीमखाना स्थान तक जाते हैं जो लगभग 105 किलोमीटर पर स्थित है। सभी नगरों से रेलों का आगमन भी बहुतायत से है और सड़क मार्ग से भी अनेक नगर इससे सीधे जुड़े हैं। सभी यात्रियों को पहले नीमखाना ही जाना पड़ता है। यहां से स्टीमर या लांच द्वारा चीमांगुरी पहुंचते हैं। यह स्टीमर हुगली नदी में चलता है। चीमांगुरी उतरकर 10 किलोमीटर की यात्रा मिनी बस द्वारा की जाती है और अंत में कपिल देव मंदिर तक जाती है। इसके पश्चात् कुछ दूरी पर सागर व गंगा का संगम स्थित है, जहां यात्री पैदल या ठेलागाड़ी से जाते हैं और वहां स्नान करके पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं। नीमखाना में ठहरने हेतु कुछ लॉज तथा होटल हैं, पर चीमांगुरी या गंगासागर तट पर ठहरने हेतु केवल कुछ आश्रम ही हैं। यात्री उसी दिन स्नान करके वापस कोलकाता पहुंच जाते हैं।

जानिये रत्न धारण करने के मंत्र

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here