गया: ‘पितृ तीर्थ’ में स्वयं के भी श्राद्ध का विधान, पितरों को मिलती है मुक्ति

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त्रिस्थली - गया

गया को विष्णु का नगर माना गया है। यह मोक्ष की भूमि कहलाती है। विष्णु पुराण और वायु पुराण में भी इसकी चर्चा की गई है। विष्णु पुराण के मुताबिक, गया में पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष मिल जाता है और वे स्वर्ग चले जाते हैं। माना जाता है कि स्वयं विष्णु यहां पितृ देवता के रूप में मौजूद हैं, इसलिए इसे ‘पितृ तीर्थ’ भी कहा जाता है। गया को ‘मोक्षस्थली’ भी कहा जाता है। यहां साल में एक बार 17 दिन के लिए मेला लगता है जिसे पितृपक्ष मेला कहा जाता है। पितृपक्ष में फल्गु नदी के तट पर विष्णुपद मंदिर के करीब और अक्षयवट के पास पिंडदान करने से पूर्वजों को मुक्ति मिलती है।

त्रिस्थली ( गया – प्रयाग-काशी )

सनातन धर्मशास्त्रों में उल्लेखित तीन सर्वश्रेष्ठ तीर्थस्थलों को त्रिस्थली कहते हैं। परलोक में मुक्ति और मोक्षप्राप्ति के लिए ‘ त्रिस्थली ‘ में पिंडदान का विधान है। ऐसे तीन तीर्थस्थल हैं – प्रयागराज, काशीधाम और गया। गया को इन तीनों तीर्थस्थलों में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। गया प्रमुख पितृमुक्ति तीर्थ है। पुराणों में मुक्ति के लिए चार उपाय हैं- 1 ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति, 2 गया में श्राद्ध, 3. गोहत्या का निवारण, और 4. कुरुक्षेत्र में निवास करना।

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इन्हीं चार उपायों में गया में श्राद्ध ही मुक्ति हेतु सबसे महत्त्वपूर्ण है, इसलिए यहीं पर पितरों का श्राद्ध किया जाता है और उन्हें तृप्त किया जाता है।

पौराणिक मान्यताओं और किवंदंतियों के अनुसार, भस्मासुर के वंश में गयासुर नामक राक्षस ने कठिन तपस्या कर ब्रह्माजी से वरदान मांगा था कि उसका शरीर देवताओं की तरह पवित्र हो जाए और लोग उसके दर्शन मात्र से पाप मुक्त हो जाएं इस वरदान के मिलने के बाद स्वर्ग की जनसंख्या बढ़ने लगी और प्राकृतिक नियम के विपरीत सब कुछ होने लगा लोग बिना भय के पाप करने लगे और गयासुर के दर्शन से पाप मुक्त होने लगे. इससे बचने के लिए देवताओं ने यज्ञ के लिए पवित्र स्थल की मांग गयासुर से मांगी. गयासुर ने अपना शरीर देवताओं के यज्ञ के लिए दे दिया. जब गयासुर लेटा तो उसका शरीर पांच कोस में फैल गया तबसे इस जगह को गया के नाम से जाना जाता है. यही कारण है कि आज भी लोग अपने पितरों को तारने के लिए पिंडदान के लिए गया आते हैं
पंडितों के अनुसार फल्गु नदी के तट पर पिंडदान किए बिना पिंडदान हो ही नहीं सकता. पिंडदान की प्रक्रिया पुनपुन नदी के किनारे से प्रारंभ होती है एक आम धारणा है कि एक परिवार से कोई एक ही ‘गया’ करता है. गया करने का मतलब है कि गया में पितरों को श्राद्ध करना, पिंडदान करना. गरूड़ पुराण में लिखा गया है कि गया जाने के लिए घर से निकलने पर चलने वाले एक-एक कदम पितरों के स्वर्गारोहण के लिए एक-एक सीढ़ी बनते जाते हैं

 

गया तीर्थस्थल का महत्त्व

हर वर्ष हजारों हिंदूयात्री मोक्ष – प्राप्ति के निमित्त अपने पूर्वजों का श्राद्ध करने विष्णुपद – मंदिर आते हैं। विष्णुपद ही गया का सिर है। इसकी पवित्रता इसलिए सर्वाधिक है कि यहीं पर समस्त देवी – देवता खड़े हुए थे। यहीं पर मंदिर का निर्माण इंदौर के होल्कर की पत्नी अहिल्याबाई ने कराया है।

धार्मिक कथा

‘ वायुपुराण ‘ के अनुसार गयासुर ने अपनी तपस्या से यहां तक सिद्धि प्राप्त की कि उसे स्पर्श मात्र कर लेने वाला भी स्वर्गलोक जाने लगा। इससे यमराज तथा देवताओं को बड़ी चिंता हुई। विष्णु के समझाने पर ‘ गया ‘ प्राणोत्सर्ग करने को तैयार हुआ।

त्रिस्थली ( गया

गया को उत्तर की ओर सिर और दक्षिण की ओर पैर करके लिटाया गया, लेकिन उसका सिर कांपता रहा। ब्रह्मा ने उसके सिर पर धर्मशिला को रखा लेकिन उसका कांपना बंद नहीं हुआ। जब सभी देवी – देवता उस शिला पर खड़े हुए, तब उसकी बलि हो सकी। भगवान विष्णु ने वरदान दिया कि यह स्थान संसार में पवित्रतम होगा। देवता लोग यहां विश्राम करेंगे तथा यह भाग ‘ गया ‘ नाम से जाना जाएगा और जो भी यहां दाह – क्रिया या पिंडदान करेगा, अपने पूर्वजों सहित ब्रह्मलोक में जाएगा।

तीर्थस्थल का विवरण

नदी, कुंड और पहाड़ियों से घिरे गया नगर के दो भाग हैं। अंदर ‘ गया ‘ या पुराना गया ‘ और ‘ गया ‘ रेलवे स्टेशन या साहिबगंज। ‘ गया ‘ फल्गु नदी के किनारे स्थित है। कहा जाता है कि फल्गु नदी विष्णु के शरीर की सुगंध से ओत – प्रोत है, इसीलिए इस नदी में स्नान का भी महत्त्व है। पूजा श्राद्ध आदि के लिए विभिन्न क्षेत्र है- अक्षयवट पर पिंडदान करने से पितरों को भोजन को कभी कमी नहीं होती है। धर्मशिला लगभग चार किलोमीटर तक फैली है। अन्य पवित्रस्थल हैं – रामशिला प्रेतशिला, वैतरणी और वागेश्वरी।

गया में पिंडदान

गया में पितरों के श्राद्ध के अलावा स्वयं का भी श्राद्ध किया जाता है लेकिन अपने श्राद्ध के नियम कुछ भिन्न हैं। जिनके पुत्र नहीं हैं, उनके स्वयं के श्राद्ध का विधान है। श्राद्ध के पिंड में तिल नहीं होते हैं और वे दही मिलाकर तीन पिंड स्वयं जनार्दन की मूर्ति के दाएं हाथों में अर्पित करते हैं। पितरों के श्राद्ध के लिए व्यक्ति गया पहुंचकर पितरों का आह्वान करे, आसन दे और कुश पर जल छिड़क कर ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर श्राद्ध की घोषणा करे। गया में श्राद्ध के लिए सभी स्थान उपयुक्त हैं। सही फल – प्राप्ति के लिए गया में सादा जीवन व्यतीत करे। झूठ न बोले और भूमंडल पर रहने वाले सभी जीवों की अच्छाई के बारे में सोचे। श्राद्ध में तर्पण और पिंडदान के विधान हैं। तर्पण करने में लगभग पांच घंटे का समय लगता है और इसके चार भाग हैं देव – तर्पण में देवताओं की पूजा, ऋषि – तर्पण में 10 प्रसिद्ध ऋषियों की पूजा, यम तर्पण में यम एवं चित्रगुप्त का तर्पण और सबसे अंत में वितु तर्पण होता है।

श्राद्ध का समय

सर्वाधिक उचित समय पितृ – पक्ष का है। आश्विन कृष्णपक्ष में या बाद में चैत्र और पौष के महीने में भी श्राद्ध करने के विधान हैं। फिर भी गया में कभी भी श्राद्ध किया जा सकता है।

अन्य दर्शनीय स्थल
  •  वैतरणी कुंड : गया के समस्त कुंडों में अत्यधिक महत्व इसी का है, क्योंकि इसे स्वर्ग और मर्त्य के बीच बहने वाली नदी कहते हैं। गया के दक्षिणी फाटक के बाहर यह सरोवर है।
  • मुडपृष्ठा देवी : गया के सिर के पास मंदिर है। 12 भुजा वाली मुंडपृष्ठा देवी हैं। दक्षिण – पश्चिम में आदिगया शिला है और पास ही दक्षिण फाटक के पूर्वी बरामदे में धौतपाप ‘ नामक सफेद शिला है।
  • विष्णुमंदिर : गया में मुख्य मंदिर महारानी अहिल्याबाई द्वारा निर्मित विष्णुजी का है जो गया स्टेशन 5 किलोमीटर पर है। सूर्यमंदिर ब्रह्मयोनिहिल भी लगभग 3-4 किलोमीटर पर है।
  • फल्गु नदी : केवल वर्षाऋतु में ही जल रहता, अन्यथा गड्डा खोदकर जल निकाला जाता है। श्राद्ध हेतु यात्री इसका स्नान करके ही श्राद्ध करते हैं।
  • गदाघर फल्गु नदी के किनारे गदाघर भगवान का मंदिर है, जिसमें उनकी चतुर्भुज मूर्ति अवस्थित है।
  • आदि गया : यह प्राचीन स्थान है। यहां एक शिला है जिस पर पिंडदान किया जाता है।
  • राम गया व सीता कुंड : फल्गु नदी के उस पार एक कंड है और पास ही एक शिला है, जिसे राम गया कहते हैं। यहा अनक देवी देवताओं की मूर्तियां भी है।
  • राम शिला : फल्गु नदी के किनारे ही राम शिला पहाड़ी है तथा नीचे राम कुंड है और उसी के निकट राम शिव मंदिर है।
  • ब्रह्मकुंड : राम शिला से दूर एक प्रेत पर्वत है, जहां एक पक्का सरोवर है, इसे ब्रह्मकुंड कहते हैं और इसके निकट मंदिर है।
  • ब्रह्म सरोवर : यह वैतरणी के पास है। पूजा अर्चना करके इसकी परिक्रमा की जाती है।
  • अक्षय वट : ब्रह्म सरोवर के पास एक चहारदीवारी से घिरा स्थल है. जिसके मध्य में यह पवित्र वृक्ष स्थित है और इसके पास ही वटकेश्वर महादेव का मंदिर है। इसके अतिरिक्त नगर में अनेक पवित्र तीर्थस्थल हैं जो एक पंडे या गाइड द्वारा तीर्थ यात्रियों को दिखाए जाते हैं।
  • बौद्ध गया : बुद्ध का प्रसिद्ध विशाल मंदिर गया से लगभग दस किलोमीटर दूर है। बुद्ध भगवान ने वोधि – वृक्ष के नीचे तपस्या करके ज्ञान प्राप्त किया था। यह बुद्ध तीर्थों में एक पवित्र स्थान है। यहां के मंदिर देखने योग्य हैं। बुद्ध के विदेशी अनुयायी यहां अवश्य दर्शन करने आते हैं।

यात्रा मार्ग

गया उत्तर रेलवे का प्रमुख स्टेशन है।

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