विपक्षी दलों की बेचैनी का बिम्ब है आईएनडीआईए यानी इंडिया

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मिशन- 2024: कितना एकजुट है विपक्षी गठबंधन
भाजपा के केद्र की सत्ता पर काबिज हुए नौ साल हो गए हैं। अगले साल चुनाव है, ऐसे में विपक्षी दलों की बेचैनी बढ़़ गई है। उन्हें इस बात का डर सताने लगा है कि कही भाजपा की मोदी सरकार तीसरी बार भी केंद्र में सत्ता हासिल करने में कामयाब न हो जाए। बस यही डर विपक्षी दलों को एक डोर बंधने को मजबूर कर रहा है।

वर्ष 2024 भारत का राजनीतिक भविष्य तय करेगा। लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसके संकेत स्वतंत्रता दिवस पर दे दिए है तो वहीं दूसरी ओर विपक्ष भी येन-केन प्रकारेण सत्ता हासिल करने की जुगत में है। सो-कॉल्ड सेक्युलरों ने गठबंधन बनाया है। इसे नाम दिया गया है आईएनडीआईए यानी इंडिया। भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए विपरीत धारा वाले तमाम सत्ता लोलुप और वामपंथी चरमपंथी एकजुट होने लगे हैं। हालांकि ये सभी एक दिखाने का प्रयास तो कर रहे है , लेकिन इनका एकजुट होना फिलहाल व्यवहारिक रूप से एकजुट होना दूर की कौड़ी दिख रहा है, वजह है कि इनके अपने-अपने क्षुद्र स्वार्थ और सत्ता के प्रति लोलुपता। एक तरफ गठबंधन को मजबूत करने लेकर बैठकों का दौर जारी है। भाजपा को केंद्र की सत्ता से उखाड़ फैकने के बड़े-बड़े दावे किए जा रहे है तो दूसरी ओर क्षेत्रीय स्तर पर इन दलों में आपसी मतभेद उभर कर सामने भी आ रहे है।

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दिल्ली से ही शुरुआत करें तो लोकसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस और आम आदममी पार्टी के बीच ठीक-ठीक सीटों का बटवारा नहीं हो सका है। इनके मतभेद भी उस समय सामने आए थे, जब कांग्रेस के एक नेता ने दिल्ली के सभी संसदीय क्षेत्रों से प्रत्याशी उतारने का दावा कर दिया था। दोनों दलों की ओर से इसे लेकर शब्दों की तलवारे भी निकल आयी थी। जैसे-तैसे यह मामला तो फिलवक्त सलटा दिया गया लेकिन हकीकत यह है कि विवाद अभी खत्म नहीं हुआ है, बल्कि दोंनो दलों ने अलबत्ता इसे ठंडे बस्ते में जरूर डाल दिया है। कमोवेश यही स्थिति पश्चिम बंगाल की भी है। यहां मुख्यमंत्री ममता बैनजीं से कांग्रेस की अदावत किसी से छिपी नहीं है, लोकसभा चुनाव में यह कितना एक हो पाएंगे यह देखने वाली बात ही होगी। स्वार्थ के इस गठबंधन की दरारें महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पंजाब और हिमाचल आदि राज्यों में भी हैं। पंजाब की बात करें तो यहां आम आदमी पार्टी राज्य की सत्ता पर आसीन है, यह यहां कांग्रेस के साथ कितना तालमेल बना पाती है, यह भी विपक्षी गठबंधन पर प्रश्न चिन्ह लगाने वाला है।

अभी हाल ही में जब यहां किसानों व पुलिस में झड़प हुई तो कांग्रेस ने अपने सहयोगी आम आदमी पार्टी पर तीखा हमला बोलकर सिद्ध कर दिया कि वे वास्तव में एक नहीं हुए हैं। भीतर ही भीतर स्वार्थ की ज्वाला इन संगठनों में सुलग रही है, जो राख के नीचे जरूर दबी हुई है। वास्तव में देखा जाए तो ये सभी दल एक बात पर एक मत है कि मोदी को केंद्र की सत्ता से उखाड़ फैकना है। सही है,इसे लेकर कोई मतभेद नहीं हैं।

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