कनक भवन का स्वर्णिम सौष्ठव अक्षुण्य, त्रेता से कलयुग तक आस्था का केंद्र

1
10121

कनक भवन का जिक्र होते ही हमारे मन में त्रेतायुग की दिव्य तस्वीर उभर जाती है, जी हां, क्योंकि इस कनक भवन का सम्बन्ध त्रेतायुग से ही है। त्रेतायुग में माता कैकयी ने श्री राम के विवाह के पश्चात यह कनक भवन भगवान विष्णु के अवतार और राजा राम व माता सीता को उपहार स्वरूप दिया था। यह भवन आज भी बदले हुए स्वरूप में मौजूद है। त्रेतायुग से आज तक यह पावन भवन हिंदू जनमानस की आस्था का केंद्र बना हुआ है। करोड़ों हिंदू जब पावन नगरी में दर्शन-पूजन को आते हैं तो इस पावन स्थल का दर्शन जरूर करते हैं। त्रेतायुग से अभी तक कालांतर में कितने ही उतार-चढ़ाव अयोध्या नगरी ने देखे, लेकिन कनक भवन की अलौकिता बदले हुए स्वरूप में बरकरार है। इस कनक भवन का स्वर्णिम सौष्ठव अक्षुण्य बना हुआ है।

 

Advertisment

जन – जनके मन में रमण करने वाले भगवान श्रीराम की लीला भूमि श्री अयोध्या सभी देवपुरियोंमें अति विशिष्ट है और इस अयोध्यापुरी में भी श्रीरामका लीला निकेतन श्रीकनकभवन विश्व के सभी देव – भवनों में अपूर्व आनन्द प्रदान करने वाला है। इस कलियुगमें यह कनक भवन भगवान श्रीरामका साक्षात विग्रह है और इस मन्दिर में श्रीसीतारामजी को मूर्तियों का दर्शन भगवान श्रीराम और माता सीताजी के साक्षात सामीप्य की अनुभूति कराने वाला है। कनक भवन में श्रीसीतारामजी की मूर्तियों में जो दिव्यता और आकर्षण है, वह अद्भुत है।

भगवान श्री विष्णु के अवतार भगवान श्रीरामका अवतार त्रेतायुग में हुआ था। कनक भवन का पहली बार निर्माण श्रीराम के लीला निकेतन के रूपमें महारानी कैकेयी के अनुरोध पर महाराज दशरथ ने कराया था। जिस समय श्रीराम और लक्ष्मण महर्षि विश्वामित्र के साथ चले गये तो महारानी कैकेयी को सपने में एक स्वर्ण भवन की अनुभूति हुई । कैकेयी ने उस स्वर्ण भवन के अनुरूप ही एक भवन के निर्माण करने का महाराज दशरथ से उस समय अनुरोध किया। तब महाराज दशरथ ने विश्वकर्मा जी की देखरेख में श्रेष्ठ शिल्पकारों के हाथों से कलात्मक कनक भवन की रचना करवायी थी। सीता स्वयंवर के पश्चात माता कैकयी ने इस सुंदर कनक भवन को अपनी सीता जी को भेंट किया था।

त्रेतायुग में भगवान श्रीराम ने जब लीला समाप्त कर वैकुंठ धाम को प्रस्थान किया तो उनके पुत्र कुश ने कनक भवन में श्रीराम और सीताजीकी मूर्तियाँ स्थापित की, लेकिन कालान्तर में अयोध्या के राजवंश के पराभव के बाद अयोध्या का स्वरूप बदल गया। कालान्तर में कनक भवन भी जर्जर होकर ढह गया। कनक भवन से प्राप्त हुए विक्रमादित्यकालीन एक शिला लेख के मुताबिक, द्बापर में जब श्रीकृष्ण जरासंध का वधकर प्रमुख तीर्थो की यात्रा करते हुए अयोध्या आये और कनक भवनके टीलेपर पहुंचे तो उन्होंने एक पद्मासना देवी को तपस्या करते हुए देखा और टीले से श्रीराम – सीताकी मूर्तियां निकालकर उस देवीको भेंटकर वे द्बारका चले गये। उस देवी ने कनकभवन का जीर्णोद्धार करवाकर वे मूर्तियां पुन: स्थापित करवाईं।

तब से कलियुग के प्रारम्भ होने तक ये मूर्तियाँ कनक भवन में शोभायमान रहीं। कालान्तर में महाराज विक्रमादित्य ने वर्तमान से लगभग 2०75 वर्ष पूर्व कनक भवनका पुन: निर्माण करवाया। गुप्तकाल में समुद्रगुप्त ने भी अयोध्या को अपनी राजधानी राजधानी बनाकर कनक भवन का जीर्णोद्धार करवाया। सन 1761 ई. में भक्त कवि श्रीरसिक अली अयोध्या आये। जब वे कनक भवनमें दर्शन के लिए गये तो वहीं समाधिस्थ हो गये और उन्हें साक्षात सीता राम के दर्शन हुए । फिर वे भी जीर्णोद्धारमें जुटे । उन्होंने कनक भवन के अष्टकुंजका निर्माण शुरू किया, लेकिन धनाभाव के यह कारण यह पूरा नहीं हो सका। अयोध्या के वर्तमान कनक भवन के निर्माण का प्रारम्भ ओरछा – राज्य के पूर्व नरेश सवाई महेन्द्र श्रीप्रतापसिह की धर्मपत्नी महारानी वृषभानुकुंवरि द्बारा वैशाख दशमी सं. 1944 ( सन 1887 ई. ) को हुआ और शेख कादर बख्श की देखरेख में बनवाकर उन्होंने वैशाख शुक्ला षष्ठी सं. 1948 ( सन 1891 ई.) को विक्रमादित्य कालीन मूर्तियों की पुन: स्थापना करवायी और सीतारामजीकी दो नवीन मूर्तियों की प्राण – प्रतिष्ठा भी करवायी । इस प्रकार कनकभवन के गर्भगृह में प्राचीन मूर्तियां और विक्रमादित्यकालीन मर्तियां भी अवस्थित हैं।

महारानी वृषभानुकुंवरि ने इन मूर्तियोंके लिये 6 लाख रुपये के स्वर्णाभूषण और जवाहरात भी कनक भवन को अर्पित कर दिये। महारानीने शेख कादर बख्श के निर्देशन में कनक भवन के ऊपर अत्यन्त भावपूर्ण अष्टकुंजों का निर्माण भी करवाया, जिसमें सेविकाओं के आठ अति रमणीय चित्र बने हुए हैं। मंगला, वल्लभा, श्रृंगार, राजभोग, उत्थापन, संध्या और शयन – आरतियों में श्रीसीताराम की विभिन्न झाँकियों के भी मनोरम दर्शन होते हैं। वे श्रीसीतारामका यह लीला – निकेतन और उन्ही का विग्रह – रूप यह कनक भवन हजारों वर्षों से लाखों करोड़ों दर्शनार्थियोंका आनन्ददाता रहा है।

अब जब अयोध्या में राम मंदिर बनने का मार्ग प्रशस्त हो गया है तो इस नगरी का कायाकल्प संभव नजर आ रहा है, क्योंकि वर्तमान सत्ता अयोध्या के कायाकल्प को लेकर कटिबद्ध नजर आ रही है, ऐसे में उम्मीद करना बेमानी नहीं होगा कि अयोध्या में अब श्रद्धालुओं की संख्या में इजाफा होगा। अयोध्या का वही भव्य रूप हमारे व आपके सामने हो और हमारे नयन कनक भवन समेत भगवान श्री राम की विभिन्न पुनीत धरोहरों का दर्शन कर सकें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here