मल्लिकार्जुन द्वादश ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र सम्पूर्ण मनोकामना पूर्ण,यहाँ भ्रमरांबा देवी शक्तिपीठ भी 

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मल्लिकार्जुन द्वादश ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र सम्पूर्ण मनोकामना पूर्ण,यहाँ भ्रमरांबा देवी शक्तिपीठ भी 

मल्लिकार्जुन लिंग में पार्वती और शिव दोनों की ही ज्योतियाँ प्रतिष्ठित है। मान्यता है की इस लिंग के दर्शन मात्र सम्पूर्ण मनोकामना पूर्ण कराने वाला है, इसका दर्शन सब प्रकार का सुख देने वाला है। मल्लिकार्जुन द्वादश ज्योतिर्लिंग शक्तिपीठों में से एक है। यह ज्योतिर्लिंग श्रीशैल पर स्थित है। आंध्र में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैल पर्वत स्थित है। इसे दक्षिण का कैलास पर्वत कहा जाता है। शिवपुराण ‘, ‘ पद्ममपुराण ‘, ‘ महाभारत ‘ आदि ग्रंथों में श्रीशैल के 41 माहात्म्य वर्णित हैं। यहां शिव के पूजन – दर्शन से जन्म – मरण के बंधन से मुक्ति तथा अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। यहां पार्वती को भ्रमराम्बा कहा जाता है। यहीं 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ भी है। वीर शैवमत के पंचाचार्यों में से एक जगद्गुरु श्रीपति पंडिताराध्य की उत्पत्ति मल्लिकार्जुन लिंग से ही मानी जाती है।

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मल्लिकार्जुन की मंदिर कथा

कार्तिकेय और गणेशजी में से पहले विवाह किसका हो, इस बात को लेकर कार्तिकेय और गणेशजी में आपस में विवाद हो गया। गणेशजी ने पृथ्वी की प्रदक्षिणा का प्रसंग आने पर माता – पिता की प्रदक्षिणा कर ली, अतएव उनका विवाह पहले हो गया। इससे कार्तिकेय रुष्ट होकर कैलास छोड़कर श्रीशैल पर आ गए। पुत्र के वियोग से माता पार्वती को बड़ा दुख हुआ। वे स्कंद से मिलने चली। भगवान शंकर भी उनके साथ श्रीशैल पधारे, किंतु कार्तिकेय माता – पिता से नहीं मिलना चाहते थे। उमा – महेश्वर के पहुंचते ही कार्तिकेय श्रीशैल से तीन योजन दूर कुमार पर्वत पर चले गए। वह स्थान अब ‘ कुमारस्वामी ‘ कहा जाता है। भगवान शंकर तथा पार्वतीजी श्रीशैल पर पहुंचे। यहां शिवजी का नाम अर्जुन तथा पार्वतीदेवी का नाम मल्लिका है। दोनों नाम मिलकर ‘ मल्लिकार्जुन ‘ होता है, इसलिए इस तीर्थस्थान कृष्णा को मल्लिकार्जुन नाम दिया गया है।

तीर्थस्थल के दर्शनीय स्थल

  1. मुख्य मंदिर : इस श्रीशैल के शिखर पर वृक्ष नहीं हैं। भारत में बने दक्षिणी मंदिरों के ढंग का बना यह पुराना मंदिर है। एक ऊंची पत्थर की चहारदीवारी है, जिस पर हाथी – घोड़े बने हैं। इस परकोटे में चारों ओर द्वार हैं। द्वारों पर गोपुर बने हैं। इस प्राकार के भीतर एक प्राकार और है। दूसरे प्राकार के भीतर श्रीमल्लिकार्जुन का मंदिर है। यह मंदिर बहुत बड़ा नहीं है। मंदिर में मल्लिकार्जुन शिवलिंग स्थित है। यह शिवलिंग मूर्ति लगभग आठ अंगुल ऊंची है और पाषाण के अनगढ़ अरघे में विराजमान है। इसके समक्ष नंदी की एक छोटी मूर्ति है। मंदिर के बाहरी द्वार पर ऊपर एक बड़ी सी नंदी की मूर्ति स्थापित है। द्वार के पश्चात् दो सभास्थल मंडप हैं, जहां यात्री एकत्र होकर शिव की स्तुति करते हैं। अंदर मंदिर छोटा, पर अति सुंदर है, जहां छोटा शिवलिंग विराजमान है। मंदिर के बाहर बड़े – बड़े गोपुरम हैं, जिन पर अच्छी शिल्पकारी की गई है। मंदिर प्रांगण के अंदर अनेक छोटे बड़े महत्त्वपूर्ण स्थान हैं। यहां प्रसाद के रूप में नारियल चढ़ाए जाते हैं, जिन्हें पुजारी गण तोड़ – तोड़कर यात्रियों को बांट देते हैं।
  2. पार्वती मंदिर : श्रीमल्लिकार्जुन मंदिर के पीछे पार्वती देवी का मंदिर है। यहां उनका नाम मल्लिका देवी है। मल्लिकार्जुन के निजमंदिर का द्वार पूर्व की ओर है ।
  3. गणेश मंदिर : मंदिर परिसर में एक छोटा दर्शनीय गणेश मंदिर भी है।

4.शिव मंदिर : मंदिर परिसर में 20-25 छोटे – छोटे शिव मंदिर हैं, जिनमें मेले के समय यात्री ठहर जाते हैं।

  1. बावड़ियां व सरोवर : मंदिर के चारों ओर अनेक बावड़ियां एवं दो पवित्र छोटे सरोवर भी अवस्थित हैं।

अन्य दर्शनीय स्थल

  1. पाताल गंगा : पाताल गंगा मंदिर के पूर्वद्वार से एक मार्ग कृष्णा नदी तक गया है। उसे यहां पाताल गंगा कहते हैं। पाताल गंगा मंदिर से लगभग पौने दो मील दूर है, किंतु मार्ग बहुत कठिन है। आधा मार्ग सामान्य उतार का है और उसके पश्चात् 852 सीढ़ियां हैं। ये सीढ़ियां खड़े उतार की हैं। बीच – बीच में चार स्थान विश्राम करने लिए बने हैं। पर्वत के नीचे कृष्णा नदी प्रवाहमान है यात्री वहां स्नान करके चढ़ाने के लिए जल ले आते हैं। ऊपर लौटते समय खड़ी चढ़ाई बहुत कष्टकर होती है।

2 . त्रिवेणी : पाताल गंगा के पास ही दो छोटे नाले भी कृष्ण नदी में मिलते हैं, अत : इसे संगम स्थल या त्रिवेणी कहते हैं।

  1. देवी व भैरव मंदिर : कृष्ण नदी के पूर्व की और कुछ दूर पर पहाड़ों में कंदराएं हैं, जिनमें देवी व भैरव मंदिर अवस्थित है।

आस – पास के अन्य तीर्थस्थल

  1. शिखरेश्वर तथा हाटकेश्वर : मल्लिकार्जुन से छह मील दूर शिखरेश्वर तथा हाटकेश्वर के मंदिर हैं। मार्ग कठिन है। कुछ यात्री शिवरात्रि के पूर्व वहां तक जाते हैं। शिखरेश्वर से मल्लिकार्जुन मंदिर के कलश दर्शन का भी महत्त्व माना जाता है।
    भ्रमरांबा देवी शक्तिपीठ भी

    कहते हैं , श्रीशैल के शिखर का दर्शन करने से पुनर्जन्म नहीं होता।

  2. भ्रमरांबा देवी – महालक्ष्मी देवी : मल्लिकार्जुन मंदिर से पश्चिम में लगभग 3 किलोमीटर पर भ्रमरांवादेवी का मंदिर है। यह 51 शक्तिपीठों में से एक है। अंबाजी की मूर्ति भव्य है। आस – पास प्राचीन मठादि के अवशेष हैं। यहां सती का ग्रीवा भाग गिरा था।
  3. विल्व वन : शिखरेश्वर से लगभग छह मील आगे ( मल्लिकार्जुन से 20 किलोमीटर दूरी पर ) यह स्थान है। यहां एकमा देवी का मंदिर है, किंतु दिन में भी यहां हिंसक पशु घूमते हैं। बिना मार्ग दर्शक तथा आवश्यक सुरक्षा के इधर नहीं आना चाहिए।
  4. महानदी : यह स्थान नंदयाल स्टेशन से दस मील दूर है। यहां भगवान शंकर का मंदिर है। एक ओंकारेश्वर मंदिर भी है।

यात्रा- ठहरने के स्थान

मंदिर के समीप यात्रियों के निवास के लिए धर्मशालाएं हैं। टूरिस्ट हाउस भी है और तिरुपति के समान पृथक् – पृथक् सभी सुविधा युक्त छोटे मकान भी हैं, जो किराए पर मिल जाते हैं। यात्रा मार्ग मनमाड – काचीगुडा लाइन के सिकंदराबाद स्टेशन से एक लाइन द्रोणाचलम् तक जाती है। इस लाइन पर कुरनूल टाउन स्टेशन है, वहां से श्रीशैल 80 किलोमीटर दूर है। मोटर बसें कुछ दूर तक जाती हैं। कुरनूल टाउन में धर्मशाला है। मसुलीपट्टम् – हुबली लाइन पर द्रोणाचलम् से लगभग 80 किलोमीटर पहले नंदयाल स्टेशन है। इस स्टेशन से श्रीशैल लगभग 72 किलोमीटर दूर है। तमिलनाडु के प्रसिद्ध नगर गुंटूर से भी बसें जाती हैं , जो यहां से 215 किलोमीटर है। तिरुपति से भी बसें  जाती हैं।

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