द्बादश ज्योतिर्लिंगों के मंदिर और स्थान परिचय

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वाराणसी ( काशी )–काशी का तीर्थ के रूप में महत्त्वपूर्ण स्थान है यहाँ नये पुराने अनेकानेक मंदिर हैं , लेकिन विश्वनाथ मन्दिर का महत्व सर्वाधिक है। ये भी भगवान के बारह ज्योतिर्लिंग में से है ।

विश्वनाथ के मूल मन्दिर की परम्परा इतिहास के अज्ञात युग से चली आ रही है । काशी की एक संकरी गली में प्रवेश करने पर इस प्राचीन मन्दिर में दर्शन होते हैं । भक्तों में ये विश्वास प्रचलित है कि यहाँ आये प्रत्येक व्यक्ति की मनोकामना शिव शंकर पूर्ण करते हैं, इस मन्दिर की ध्वजा सोने की बनी हुई है । यहाँ मुख्य प्राचीन मन्दिर के अतिरिक्त काशी हिन्दु विश्वविद्यालय के प्रांगण में स्थित नवीन विश्वनाथ का मन्दिर है ।  इस मन्दिर की दूसरी मन्जिल पर शिवलिग स्थापित है, जो भक्तों की अर्पित की गई पुष्प मालाओं और दीप शिखाओं से सजा रहता है । इसके अलावा स्वामी करपात्री जी महाराज का बनवाया गया विश्वनाथ मन्दिर भी भव्य और दर्शनीय है । ये मीरघाट पर है ।

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काशी विश्वनाथ की महिमा, यहां जीव के अंतकाल में भगवान शंकर तारक मंत्र का उपदेश करते हैं

महाकालेश्वर ( उज्जैन )—बारह शिवलिगों के महत्त्वपूर्ण स्थान महाकालेश्वर मन्दिर के कारण इस नगरी का महत्व और भी बढ़ जाता है । यह मन्दिर एक झील के तट पर है इसके पाँच तल्लों में से एक तल्ला भूमग्न है । मन्दिर के मार्ग में अंधेरा रहता है अत: यहाँ पर हमेशा दीपक जलते रहते हैं । यात्रीगण घाट पर स्नान करने के बाद महाकाल की पूजा को जाते हैं । वैसे तो भगवान शिव जी को जो सामग्री चढ़ाई जाती है, वह निर्माल्य होती है । अर्थात उनका पुन: प्रयोग करना वर्जित है , लेकिन यहाँ पर ये बात नहीं है । यहाँ न केवल चढ़ाया हुआ प्रसाद ही लिया जाता है, बल्कि एक बार चढ़ाये बिल्वपत्र भी पुन: धोकर प्रयोग किये जाते हैं। महाकाल के दर्शन से भक्त की मुक्ति होती है और व्यक्ति की अकाल मृत्यु से रक्षा होती है । उज्जैन में दूसरा प्रसिद्ध मन्दिर हरि सिद्धि है । हरि सिद्धि सम्राट विक्रमादित्य की कुल देवी थीं । यहाँ यात्री सिद्धवटवृक्ष के दर्शन करने भी जाते हैं । देश के विभिन्न मार्गों से नागदा जंक्शन और यहां से उज्जैन जाने का मार्ग है ।

यहां हुंकार करते प्रकट हुए थे भोले शंकर, जानिए महाकाल की महिमा

सोमनाथ–प्रभास पाटन जहाँ सोमनाथ का प्रसिद्ध प्राचीन मन्दिर है । इस पवित्र तीर्थ का उल्लेख ऋग्वेद , स्कन्द पुराण और महाभारत में भी मिलता है । देश के अन्य ग्यारह शिवलिगों में से सोमनाथ ही ऐसा स्थान है जहाँ परम पवित्र ज्योतिर्लिंग स्थापित है । यह मन्दिर अनेक शताब्दियों से भारत की सांस्कृतिक एकता का प्रतीक बना हुआ है । ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर 406 ईस्वी से मन्दिर विद्यमान है । मन्दिर 56 रत्न जड़ित खम्मों पर खड़ा है । मन्दिर के भीतर के कक्ष में शिवलिग स्थापित है जिसकी ऊंचाई 7 फीट तथा घेरा तीन हाथ का है । शिवलिग जमीन में भी दो हाथ गहरा गड़ा हुआ है। पूजन के अवसर पर यात्रियों तथा बाह्मणों को बुलाने के लिए दो सौ मन का घण्टा लटका हुआ है । प्रतिवर्ष श्रावण की पूर्णिमा और शिवरात्रि तथा सूर्यग्रहण के अवसरों पर यहाँ भारी मेला लगता है । गुजरात राज्य के वेरावल नामक शहर से सोमनाथ के लिए बसें हर समय मिलती हैं ।

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की अराधना से मिलती है माता पार्वती की भी असीम कृपा

मल्लिकार्जुन— यह ज्योतिîलग भी शैल पर है । ये 51 शक्ति पीठों में से एक शक्तिपीठ भी है । सती की ग्रीवा यहाँ गिरी थी । यह क्षेत्र आंध प्रदेश में है । श्री शैल पर घोर जंगल है इसलिये इसकी यात्रा शिवरात्रि के अवसर पर की जाती है। फाल्गुन एकादशी से यात्री यहाँ आना आरम्भ कर देते है । श्री शैल ( पहाड़ ) के शिखर पर वृक्ष नहीं हैं । एक ऊंची चार दीवारी है , जिस पर हाथी घोड़े बने है । इस परकोटे के चारों ओर द्बार हैं । द्बारों पर गोपुर बने हैं । इस प्राकार के अन्दर एक प्राकार और है । इसी दूसरे प्राकार के अन्दर श्री मल्लिकार्जुन – शिवलिग है । यह शिवलिग लगभग आठ अंगुल का है और पाषाण के अरघे में स्थापित है । मन्दिर के चारों ओर बावड़ियाँ और दो छोटे सरोवर हैं । आस – पास छोटे – छोटे पन्द्रह – बीस शिव मन्दिर और भी है । मन्दिर के बाहर पीपल – पाकर का एक सम्मिलित वृक्ष है । श्री मल्लिकार्जुन मन्दिर के पीछे पार्वती देवी का मन्दिर है । यहाँ इनका नाम मलिकादेवी है । द्बार के सामने सभा मण्डप है उसमें नन्दी की विशाल मूर्ति है । शिवरात्रि को यहाँ शिवपार्वती विवाहोत्सव होता है । यहाँ शिवजी का नाम अर्जुन और पार्वती का नाम मल्लिका है । दोनों नाम मिलाकर मल्लिकार्जुन होता है । श्री शैल के दर्शनों से पुनर्जन्म नहीं होता । यहां से लगभग 10 किलोमीटर दूर शिखरेश्वर तथा हाटकेश्वर के मन्दिर भी हैं । 51 शक्तिपीठों में प्रसिद्ध भ्रमराम्बा देवी का मन्दिर है । यहाँ अम्बाजी की भव्य मूर्ति है । मनमाड – काचीगुडा लाइन के सिकन्दराबाद स्टेशन से एक लाइन द्रोणाचलम तक जाती है । इस लाइन पर कर्नूल – टाउन स्टेशन है । यहाँ से श्री शैल 125 किमी  है ।

श्री मल्लिकार्जुन महादेव की कृपा से मिलती है स्थिर भक्ति

ओंकारेश्वर— यह मध्य प्रदेश का मनोरम तीर्थ स्थान है । एकादशी , अमावस्या और पूर्णिमा को यहाँ आस – पास से अनेकों व्यक्ति आते हैं । वर्ष मे एक बार कार्तिक पूर्णिमा को यहां विशाल मेला लगता है । यहाँ का शिव मन्दिर बहुत पुराना है । कुछ घुमाव पार करके अन्य देवताओं के दर्शन करते हुए गर्भगृह तक पहुंचा जाता है । यहीं ओंकारेश्वर महादेव की मूर्ति के दर्शन होते हैं । मूर्ति प्राकृतिक रूप में धरालत से कुछ ऊपर उठे हुए अनगढ़े काले पत्थर का गोलाकार स्वरूप है । इसके पीछे की ओर सफ़ेद पत्थर से बनी पार्वती की एक मूर्ति अलग रखी हुई है । महादेव जी की मूर्ति के बारे में कहा जाता है कि एक समय पर मान्धाता ने यहां घोर तपकिया । फलस्वरुपमहादेव जी ने इस रूप में प्रकट होकर दर्शन दिये । तभी से अटूट पूजा की प्रथा चली आ रही है । यात्री अपनी अभिलाषा पूरी करने के लिए मूर्ति के सामने आत्मनिवेदन करते हैं । शंकर को अर्पित नैवेद्य ग्रहण नहीं करते हैं । ओंकारेश्वर प्रणवरूप है अत: बिल्वपत्र के अलावा तुलसीदास भी अर्पित किया जाता है । कहते हैं कि यहां अभिषेक किया गया जल सीधा नर्मदा में चला जाता है । इसी क्षेत्र में गोकर्ण महाबलेश्वर लिग भीमलेश्वर का मन्दिर और 76 खम्बों वाला सिद्धनाथ मन्दिर है । प्राचीन कथानुसार एक बार शिव विन्ध्य पर्वत के तप पर रीझ गये । उन्होंने ओंकार यन्त्र से ओंकारेश्वर और अपने पार्थिव रूप से मंगलेश्वर ज्योतिर्लिंग उत्पन्न किया था । स्कन्द पुराण में इस मान्धाता क्षेत्र में स्थित पाँच ज्योतिर्लिंगों का उल्लेख आया है – विश्वेश्वर , अमरनाथ , ओंकार , महाकालेश्वर , केदारनाथ । प्रसिद्ध रेलवे स्टेशन रतलाम से ओंकारेश्वर रोड के लिये रेलगाडियाँ जाती हैं । रतलाम से ओंकारेश्वर रोड 213 किलोमीटर है ।

अर्थ-धर्म-काम- मोक्ष सहज मिलता है श्रीओंकारेश्वर महादेव के भक्त को

केदारनाथ—केदारनाथ द्बादश ज्योतिîलगों में से एक है। महिषरूप धारी शंकर के विभिन्न अंग पांच स्थानों पर प्रतिष्ठित हुए – जो पंचकेदार माने जाते हैं । प्रथम केदार केदारनाथ में पृष्ठ भाग , द्बितीय केदार मद्महेश्वर में नाभि , तृतीय केदार तुंगनाथ में बाहु , चतुर्थ केदार रुद्रनाथ में मुख , पंचम केदार कल्पेश्वर में जटा तथा पशुपति नाथ ( नेपाल ) में सिर माना जाता है । केदारनाथ में कोई निर्मित मूर्ति नहीं है । एक त्रिकोण रूप का पर्वत खण्ड है, जिसकी पूजा करते है और अंकमाल देते है । मन्दिर अत्यन्त प्राचीन लेकिन साधारण है । मन्दिर में ऊषा , अनिरुद्ध पंच – पाण्डव, श्री कृष्ण तथा शिव पार्वती की मूर्तियाँ प्रतिष्ठत भी हैं । मन्दिर के बाहर परिक्रमा में अमृत कुण्ड , ईशान कुण्ड , हंस कुण्ड , रेतस कुण्ड आदि तीथ है । सतयुग में उपमन्यु ने और द्बापर युग में पाण्डवों ने यहाँ आकर तपस्या की थी । इस मन्दिर का जीणोद्धार आदि श्री शंकराचार्य ने करवाया था । मन्दिर लगभग 11500 फीट की ऊँचाई पर पहाड़ में हैं, इसलिये यहाँ की यात्रा मई के प्रथम सप्ताह से शुरू होकर दीपावली तक समाप्त हो जाती है । आधिक ‘ शीत होने के कारण यात्री यहाँ रात में नहीं ठहरते हैं । अन्य केदार मद्महेश्वर, तुंगनाथ , रुद्रनाथ तथा कल्पेश्वर के लिए भी यहीं से मार्ग जाता है । केदारनाथ जाने के लिये ऋषिकेश से गौरीकुंड तक बस जाती है । आगे गौरीकुंड से केदारनाथ तक पैदल मार्ग है । केदारनाथ , बद्रीनाथ , गंगोत्री व यमुनोत्री भी तीर्थ है ।

केदारनाथ धाम में पूजन-अर्चन से मिलती है अटल शिवभक्ति

भीमशंकर—कथा के अनुसार भीमशंकर नाम का शिवलिग आसाम के कामरूपजिले में गोहाटी के पास ब्रह्मपुर की पहाड़ी पर बताया जाता है । एक अन्य कथा के अनुसार, शिवजी सह्याद्रि पर्वत पर अवस्थित हैं और वहाँ से भीमा नाम की नदी निकली है। मन्दिर के आस – पास मामूली बस्ती है । मन्दिर कला – पूर्ण है लेकिन जीर्ण होने के कारण भग्न होता जा रहा है । भीमशंकर यहाँ पहुँचने का कोई भी मार्ग सुविधापूर्ण नहीं है । केवल शिवरात्री पर पूना से भीमशंकर तक बसें चलती हैं । भीमशंकर मन्दिर बहुत पुराना है । मन्दिर के सम्मुख का जगमोहन बीच से टूटा हुआ है ।दिल्ली – बम्बई लाइन पर नासिक से बस द्बारा 160 किमी  जाकर आगे 65 किमी बैलगाड़ी आदि से जा सकते हैं ।

श्रीभीमेश्वर ज्योतिर्लिंग की महिमा है अमोघ, पूरी होती है सब मनोकामनाएं

 

श्री वैद्यनाथ–कथा के मुताबिक रावण ने अतुल्य बल सामर्थ की प्राप्ति की इच्छा से भगवान शिव की कठोर आराधना आरंभ की। वह ग्रीष्म काल में पंचाग्नि सेवन करता था। जाड़ों में पानी में रहता था और वर्षा ऋतु में खुले मैदान में रहकर तप करता था। तप करते हुए उसे बहुत समय बीत गया लेकिन भगवान शिव ने प्रत्यक्ष दर्शन नहीं दिए। तब उसने पार्थिव शिवलिग की स्थापना की और उसी के पास गड्ढा खोदकर अग्नि प्रज्जवलित की। वैदिक विधान से उस अग्नि के सामने उसने भगवान शिव की विधिवत पूजा की। रावण अपने सिर को काट-काट कर चढ़ाने लगा। भगवान शिव जी की कृपा से उसका कटा हुआ सिर पुन: जुड़ जाता था। इस तरह उसने 9 बार सिर काटकर चढ़ाया, जब दसवीं बार वह सिर चढ़ाने को उद्यत हुआ, तब भगवान शिव प्रकट हो गए। भगवान शिव ने कहा कि मैं तुम तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हूं। तुम अपना अभीष्ट वर मांग लो। रावण ने उनसे अतुल्य बल सामर्थ्य के लिए प्रार्थना की। भगवान शिव ने उसे वह वर दे दिया। रावण ने उनसे लंका चलने के लिए निवेदन किया। तब भगवान शिव ने उसके हाथ में एक शिवलिग देते हुए कहा कि हे रावण अगर तुम इसे मार्ग में कहीं भी पृथ्वी पर रख दोगे तो यह वही स्थापित हो जाएगा। अत: इसे सावधानी से ले जाना। रावण शिवलिग को लेकर चलने लगा। शिव जी की माया से मार्ग में उसे लघुशंका की इच्छा हुई। जिसे वह रोक न सका। उसने पास में खड़ हुए एक गोप कुमार को देखा और निवेदन करके वह शिवलिग उसी के हाथ में दे दिया। वह वह उस शिवलिग का भार सहन न कर सका और उसने वही पृथ्वी पर रख दिया। धरती पर वह शिवलिग अचल हो गया। इसके बाद रावण ने जब उसे उठाने का प्रयास किया तो वह शिवलिग नहीं उठ सका।

हताश होकर रावण घर लौट गया। यही शिवलिग वैद्यनाथेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से जगत में प्रसिद्ध है। इस घटना को जानकर ब्रह्मा आदि देवगण वहां उपस्थित हो गए। देवताओं ने भगवान शिव का प्रत्यक्ष दर्शन किया। देवताओं ने उनकी प्रतिष्ठा की। अंत में देवता वैद्यनाथ महादेव की स्तुति करके अपने-अपने लोक को चले गए। वैद्यनाथ धाम भी बारह ज्योतिîलगों और 51 शक्तिपीठों में से है । सती का हृदय यहाँ पर गिरा था । अनेकों व्यक्ति सांसारिक कामनाओं से यहाँ आते हैं । यहाँ लिगमूर्ति ऊंचाई में बहुत छोटी है । आधार पीठ से इसका उभार कम ही है । वैद्यनाथ मन्दिर के घेरे में 21 मन्दिर और हैं, जिनमें गौरी मन्दिर मुख्य है, यही यहाँ का शक्ति पीठ है । इस में एक ही सिहासन पर दुर्गा जी तथा त्रिपुर सुन्दरी की दो मूतियाँ हैं । आस – पास के दर्शनीय स्थलों में शिवगंगा सरोवर , तपोवन त्रिकूट , हरिला जोड़ी व दोलमंच हैं । वैद्यनाथ धाम के समीप नन्दन पर्वत है, इसके ऊपर छिन्नमस्तादेवी का मन्दिर है । हावड़ा – पटना लाइन पर जसीडीह स्टेशन है । यहाँ से रेलवे लाइन वैद्यनाथ धाम स्टेशन तक जाती है । जसीडीह से वैद्यनाथ धाम 6 किमी है । स्टेशन से मंदिर 2 किमी  की दूरी पर है ।

श्रीवैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन-पूजन से प्राप्त होती है अभ्ोद दृष्टि, मिलता है रोगों से छुटकारा

नागेश्वर—–यह तीर्थ द्बारिका जाते समय 25 किलोमीटर उत्तर – पूर्व में पड़ता है । द्बारिका से नागेश्वर जाने के लिये बस तथा घोड़े तांगे मिलते रहते हैं । राजकोट ( गुजरात ) रेलवे स्टेशन से द्बारिका जाया जाता है । नागेश अथवा नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन का बड़ा महत्व है ।

श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के पूजन से मिलता है समस्त पापों से छुटकारा

रामेश्वरम्—- ये चारों धाम में से एक धाम और बारह शिवलिगों में प्रसिद्ध स्थान है । मद्रास के रामनांद जिले में दक्षिण सीमा के अन्त में ये रामेश्वर द्बीप है । 31 मील लम्बा और सात मील चौड़ा ये द्बीप पुराणों में गन्धमादन पर्वत के नाम से वर्णित है । श्रीराम के नाम पर इसका नाम रामेश्वर हुआ । रामेश्वर मन्दिर द्बीप के पूर्वी तट पर है । इसके भवन बड़े विशाल हैं और ऊंची – ऊंची दीवारों से घिरे हैं । ये पूरा मन्दिर पूर्व से पश्चिम तक 865 फीट और उत्तर से दक्षिण 657 फीट के क्षेत्र में फैला है । उत्तर , दक्षिण और पूर्व के तीन गोपुर हैं केवल पश्चिम का गोपुर बना है जो 79 फीट ऊंचा है । अन्तरिम प्रकोष्ठ में भगवान रामेश्वरम् नामक शिवलिग स्थापित है तथा साथ ही उनकी शक्तिपर्वत वन्दिनी अम्मा विश्वनाथ स्वामी और उनकी शक्ति विशालाक्षी अम्मा भी है ।

एक गरुड़ स्तम्भ है जो सोने के पत्रों से मढ़ा हुआ है । एक नन्दी बना है जो 12 फीट लम्बा , 8 फीट चौडा और 9 फीट ऊंचा है । यहाँ के खम्भे अत्यन्त विशाल हैं । बरामदे चार हजार फीट लम्बे और चौड़ाई 20 फीट है । इनकी ऊंचाई 30 फीट के करीब है । रामेश्वर दर्शन में बह्महत्या जैसे महान पाप भी नष्ट हो जाते हैं ।

संताप मिटते है रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग के दर्शन-पूजन से

धुश्मेश्वर—- भारत की सुप्रसिद्ध अजन्ता एलोरा की गुफाओं के समीप ही धुश्मेश्वर ज्योतिîलग है । इसे घृणेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है । भव्य – मन्दिर घेरे के भीतर है । यहाँ समीप ही एक सरोवर है । यह अत्यन्त प्राचीन स्थान है । श्री घृणेश्वर – शिव और देवगिरी दुर्ग के बीच सहस्रलिग पातालेश्वर , सूर्येश्वर हैं ।

कुछ व्यक्ति ऐलोरा के कैलाश मन्दिरको भी धुश्मेश्वर का प्राचीन स्थान मानते हैं । मनमाड से 135 किमी पर औरंगाबाद है । औरंगाबाद से घुश्मेश्वर 30 किमी है । स्टेशन के पास से ही घुश्मेश्वर जाने के लिए बस मिल जाती है ।

मनोकामनाएं पूरी करते हैं घृष्णेश्वर महादेव

त्रयम्बकेश्वर– यह ज्योतिîलग महाराष्ट्र के नासिक जिले में है । नासिक रोड स्टेशन से 11 किलोमीटर नासिक पंचवटी है , ( वहाँ सीता जी का हरण हुआ था ) पंचवटी से 30 किलोमीटर `यम्बकेश्वर महादेव का स्थान है । मुख्य मंन्दिर के भीतर एक गढे में तीन छोटे छोटे शिवलिग हैं जो बह्मा – विष्णु – महेश इन तीनों देवों के प्रतीक कहे जाते हैं । मन्दिर के पीछे अमृत – कुण्ड है ।

श्रीत्रयम्बकेश्वर महादेव की अराधना से मिलता है सहजता से सभी पुण्य कर्मों का फल

 

जानिए,सप्तपुरियों की महिमा, जहां मिलता है जीव को मोक्ष

लौंग एक-फायदे अनेक: दांत-पेट दर्द, पेट में कीड़े व मुख की दुर्गन्ध आदि में लाभदायक