….उन अनन्त दिव्यस्वरूप शरणदाता भगवान् शंकर की मैं शरण लेता हूँ

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भगवान् शिव की शरणागति से परम कल्याण की प्राप्ति संभव है। वे ही जीव को उसके कर्मों का फल प्रदान करने वाले हैं।वे मुक्तिदाता हैं ।

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कृत्स्नस्य योऽस्य जगतः सचराचरस्य कर्ता कृतस्य च तथा सुखदुःखदाता ।

संसारहेतुरपि यः पुनरन्तकालस्तं शङ्करं शरणदं शरणं व्रजामि ।।

यं योगिनो विगतमोहतमोरजस्का भक्त्यैकतानमनसो विनिवृत्तकामाः।

ध्यायन्ति चाखिलधियोऽमितदिव्यमुर्तिं तं शङ्करं शरणदं शरणं व्रजामि ॥  

भावार्थ–जो इस सम्पूर्ण चराचर जगत के कर्ता और इसे अपने किये हुए कर्मो के अनुसार सुख – दुःख देने वाले हैं, जो संसार की उत्पत्ति के हेतु और उसका अन्तकाल भी स्वयं ही हैं, सबको शरण देने वाले उन्हीं भगवान् शङ्कर की मैं शरण लेता हूँ । जिनके मोह, तमोगुण और रजोगुण दूर हो गये हैं वे योगीजन, भक्ति से मन को एकाग्र रखने वाले निष्काम भक्त और अपरिच्छिन्न बुद्धिवाले ज्ञानी भी जिनका निरन्तर ध्यान करते हैं, उन अनन्त दिव्यस्वरूप शरणदाता भगवान् शंकर की मैं शरण लेता हूँ।

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