मनसा देवी सिद्धपीठ में मां की प्रतिमा में तीन पिंडियों के दर्शन होते हैं

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manasa devee siddhapeeth mein maan kee pratima mein teen pindiyon ke darshan hote hain मनसा देवी – पीठ का प्रसिद्ध मंदिर पंजाब के चंडीगढ़ के समीप मनीमाजरा नामक स्थान पर है। मनसा देवी को शक्तिपीठ भी कहा जाता है, क्योंकि सती का मस्तक यहां गिरा था, परंतु सिद्धपीठ की मान्यता तो संपूर्ण भारत में है।

धार्मिक पृष्ठभूमि के अनुसार, शहंशाह अकवर जागीरदारों व कृषकों से लगान के रूप में अन्न वसूला करता था। एक बार प्रकृति के प्रकोपवश कृषकों की फसल बहुत कम हुई और जागीरदार वसूली देने में असमर्थ रहे और लगान माफी हेतु गुहार लगाई , पर बादशाह ने सभी को गिरफ्तार करवा दिया।

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तब एक दुर्गाभक्त कवि गरीबदास ने दुर्गाजी की पूजा व हवन का आयोजन किया। देवी मां ने प्रसन्न होकर कवि से अपनी इच्छा बतलाने को कहा। गरीबदास ने ने सभी निर्दोष जागीरदारों को मुक्त करने की इच्छा जाहिर की। माता ने प्रसन्न होकर आशीर्वाद दिया और अंतर्धान हो गईं। दूसरे दिन सब जागीरदार मुकदमा जीत गए और उस वर्ष लगान स्थगित हो गया। प्रसन्न होकर सभी जागीरदारों ने मिलकर वहां एक मंदिर बनवा दिया, जो कि मंशा देवी अर्थात् मंशा को पूर्ण करने वाली देवी के नाम से प्रसिद्ध हुआ । इसके बाद इसका विस्तार महाराजा पटियाला ने करवाया।

उत्तर भारत की नौ देवियां: मनसा देवी सिद्धपीठ का उल्लेख 

मां की प्रतिमा में तीन पिंडियों के दर्शन होते हैं। महालक्ष्मी बाएं , मनसा देवी मध्य में और महासरस्वती दाएं अवस्थित हैं। पिंडियों के पोछे मां का मूर्तिमान विग्रह है । मंदिर भव्य व सुंदर है। इसमें मध्य में एक बड़ा शिखर है तथा चारों ओर छोटे छोटे शिखर मीनारों के रूप में हैं। मंदिर के वाम भाग में हवनकुंड तथा शीतला माता का मंदिर है।

दक्षिण में चामुंडा देवी और लक्ष्मी नारायण जी का मंदिर है। पीछे की ओर एक शंकर जी का भी मंदिर है। मंदिर की परिक्रमा में विभिन्न देवी – देवताओं की मूर्तियां दीवारों पर बनवाई गई हैं। मंदिर प्रांगण में एक पुराना वटवृक्ष भी है, जिसमें मान्यता हेतु यात्री कलावा बांध देते हैं।

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