परमात्मा, जीवात्मा और प्रकृति ये तीनों तत्व अनादि है , अन्त रहित , अविनाशी है अर्थात् ये तीनों तत्व कभी जन्म नहीं लेते और ना ही कभी नष्ट होते है। परमात्मा अपने सामर्थ्य से सृष्टि के सब स्थूल जगत् को उत्पन्न करता है और प्रलय के समय सबको सूक्ष्म कारण में लीन करता है। जीवात्मा के लिए स्थूल जगत में स्थूल शरीर मुक्ति का साधन है। जीवात्माओं की भलाई के लिए उन पर उपकार करते हुए ईश्वर प्रकृति से सृष्टि का निर्माण अपने ज्ञान से करता है।
कर्मों के फलस्वरूप प्रकृति (सृष्टि) ही भोग प्रदान करती है और ईश्वरीय आनन्द को प्राप्त कराने में भी सहायता करती है
प्रकृति में ही जीवात्माओं को दुखों से छूटकर मोक्ष यानि सुखों की प्राप्ति होती है। कर्मों के फलस्वरूप प्रकृति (सृष्टि) ही भोग प्रदान करती है और ईश्वरीय आनन्द को प्राप्त कराने में भी सहायता करती है। अत: भोग और योग का साधन प्रकृति ही सृष्टि ही बनाती है और जीवात्मा को अपने परम लक्ष्य (मोक्ष ) तक पहुँचाने के लिए सृष्टि- निर्माण परम आवश्यक है।