पशुपतिनाथ मंदिर ( नेपाल ) : किसी भी जन्म में फिर पशु योनि नहीं मिलती, गुह्येश्वरी देवी शक्तिपीठ भी

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पशुपतिनाथ का मंदिर नेपाल की राजधानी काठमांडू में है। काठमांडू नगर विष्णुमती और बागमती नामक नदियों के संगम पर बसा है। इनमें से बागमती नदी के तट पर नेपाल के रक्षक मछंदरनाथ ( मत्स्येंद्रनाथ ) का मंदिर है। पशुपतिनाथ का मंदिर विष्णुमती नदी के तट पर है। यात्री विष्णुमती में स्नान करके दर्शन करने जाते हैं। नेपाल के पशुपतिनाथ महादेव लिंगरूप में नहीं, मानुषी विग्रह के रूप में विराजमान हैं। विग्रह कटिप्रदेश के ऊपर के भाग का ही है।

मंदिर चीनी और जापानी शैली में बना हुआ है  इसके आस – पास चांदी का जंगला है, जिसमें पुजारी को छोड़कर और किसी का भी प्रवेश नहीं हो सकता है। नेपाल नरेश अपने को पशुपतिनाथ का दीवान कहते हैं। यह पंचमुख शिवलिंग है, जो भगवान शंकर की अष्टतत्त्व मूर्तियों में एक मानी जाती है। महिषरूपधारी भगवान शिव का यह शिरोभाग है। पास ही एक मंडप में नंदी की मूर्ति है। पशुपतिनाथ के मंदिर के समीप ही देवी का विशाल मंदिर है। वैसे दुनिया में पशुपतिनाथ के दो मंदिर है, एक मंदिर नेपाल के काठमांडू में है तो दूसरा मंदिर भारत के कर्नाटक के मंदसौर में है। दोनों मंदिरों की प्रतिमाएं समान आकृति वाली हैं। पशु का अर्थ होता है जीव और पति का अर्थ होता है स्वामी यानी सृष्टि के समस्त जीवों का स्वामी यानी पशुपतिनाथ। मान्यता हैै कि यह लिंग वेद के लिखे जाने से पूर्व स्थापित किया गया था। काठमांडू स्थित पशुपति मंदिर काठमांडू घाटी के प्राचीन शासकों के अधिष्ठाता देवता थे। पाशुपत सम्प्रदाय के इस मंदिर का कोई प्रमाणित इतिहास नहीं उपलब्ध है लेकिन कुछ जगहों पर यह उल्लेख जरूर मिलता है कि मंदिर का निर्माण सामदेव राजवंश के पशुपेक्ष तीसरी सदी ईसा पूर्व कराया था। 650 ईस्वी में अमशुवर्मन ने भगवान के चरण को छूकर स्वयं को अनुग्रहित माना था। बाद में इस मंदिर का पुनर्निमाण 11 वी सदी में किया गया था। 17 वीं सदी में इसका पुनर्निमाण किया गया। बाद में मध्य युग में मंदिर की कई नकलों को निर्माण कर लिया गया। ऐसे मंदिरों में भक्तपुर 1480, ललितपुर 1566 और बनारस में 19 सदी के प्रारम्भ में शामिल है।
मूल मंदिर कई बार नष्ट हुआ, बाद में इसे नरेश भूपलेंद्र मल्ला ने इसे वर्तमान स्वरूप 1697 में प्रदान किया।
मंदिर में भगवान शिव की पांच मुख वाली मूर्ति है। पशुपति नाथ विग्रह में चार दिशाओं में एक-एक मुख और एक मुख ऊपर की ओर है। प्रत्येक मुख में दाये हाथ में रुद्राक्ष की माला और दाये हाथ में कमंडल है। माना जाता है कि मंदिर का ज्योतिर्लिंग पारस के पत्थर के समान है।

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पञ्च मुख देतें है गुणों का परिचय 

अलग-अलग दिशाओं में भगवान के मुख उनके गुणों का परिचय देते हैं। पूर्व दिशा वाले मुख को तत्पुरुष और पश्चिम दिशा वाले मुख को सद्ज्योति कहते हैं। उत्तर दिशा वाले मुख को वामवेद या अर्धनारीश्वर कहते हैं। दक्षिण दिशा वाले मुख को अघोर कहते हैं। जो मुख ऊपर की ओर है उसे ईशान कहा जाता है। यह निराकार मुख है. यही भगवान पशुपतिनाथ का श्रेष्ठतम मुख माना जाता है। पश्चिमी द्वार के ठीक के सामने नंदी की प्रतिमा है। एक मान्यता के अनुसार, पशुपतिनाथ मंदिर को 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक केदारनाथ मंदिर का आधा भाग माना जाता है। भीतर आंगन में मौजूद मंदिर व प्रतिमाओं में वासुकी नाथ मंदिर, उन्मत्ता भैरव मंदिर, सूर्य नारायण मंदिर, कीर्ति मुख भैरव मंदिर, बुदानिल कंठ मंदिर, हनुमान प्रतिमा और 184 शिवलिंग मूर्तियां मुख्य रूप से मौजूद हैं।

फिर पशु योनि नहीं मिलती : पहले शिवलिंग के पहले नंदी के दर्शन न करें

पशुपति मंदिर को लेकर मान्यता है कि जो जीव यहां दर्शन करता है, उसे किसी भी जन्म में फिर पशु योनि नहीं मिलती है। हालांकि शर्त यह है कि पहले शिवलिंग के पहले नंदी के दर्शन न करें। यदि कोई ऐसा करता है तो उसे अगले जन्म में पशु बनना पड़ता है। यहां ध्यान करना भी कष्टों से मुक्ति दिलाने वाला माना जाता है।

पशुपतिनाथ मंदिर की पौराणिक गाथा

  • एक पौराणिक गाथा के अनुसार, भगवान शिव यहां पर चिंकारे का रूप धारण कर निद्रा में चले बैठे थे। जब देवताओं ने उन्हें खोजा तो वाराणसी ले जाने का प्रयास किया तो उन्होंने नदी के दूसरे किनारे पर छलांग लगा दी। कहा जाता है कि इस दौरान उनका एक सींघ चार टुकड़ों में टूट गया था, इसके बाद भगवान पशुपति यहां चतुर्मुख के रूप में प्रकट हुए थे।
  • एक अन्य कथा के अनुसार, इस शिवलिंग को एक चरवाहे ने खोजा था, जिसकी गाय अपने दूध से शिवलिंग का अभिषेक करती थी।
  • एक अन्य कथा का सम्बन्ध, उत्तराखंड से है। यहां भारत के उत्तराखंड राज्य से जुड़ी पौराणिक गाथा है। इसके अनुसार मंदिर का सम्बन्ध केदारनाथ से है। कहा जाता है कि जब पांडवों को स्वर्ग प्रयाण के समय शिव जी ने उन्हें भैसे के स्वरूप में दर्शन दिए। जो बाद में धरती में समा गए, लेकिन पूर्णयत समाने से पूर्व भीम ने उनकी पूंछ पकड़ ली। जिस स्थान पर भीम ने इस कार्य को किया, उसे केदारनाथ के नाम से जाना जाता है और जिस स्थान से उनका मुख धरती के बाहर आया उसे पशुपति नाथ कहा जाता है। पुराणों में पंचकेदार की कथा नाम से इस कथा का विस्तार से उल्लेख मिलता है।

 

गुह्येश्वरी देवी का मंदिर भी 

पशुपतिनाथ मंदिर से थोड़ी ही दूर पर गुह्येश्वरी देवी का मंदिर है। देवी का यह मंदिर विशाल और भव्य है। यह 52 शक्तिपीठों में से एक है। सती के दोनों जानु यहां गिरे थे। इसके अलावा काठमांडू में अनेक पूजास्थल हैं जिनमें तुलजाभवानी तालभैरव , आकाशभैरव, दुर्गाभवानी, गोरखनाथ, सिद्ध लक्ष्मी, सरस्वती देवी प्रसिद्ध हैं|

पानी मंदिर में ले जाना वर्जित

इस मंदिर के बाहर एक घाट बना हुआ है जिसे आर्य घाट के नाम से जाना जाता है. इस घाट के बारे में कहा जाता है कि मंदिर के अंदर सिर्फ इसी घाट का पानी जाता है. इसके अलावा कहीं और का पानी मंदिर में ले जाना वर्जित है|

……होगा धरती का विनाश

  • इस मंदिर में स्थित भगवान शिव की प्रतिमा धरती में आधी धंसी हुई हैं और यह प्रतिमा हर साल ऊपर की तरफ आती रहती हैं। कहा जाता है कि जब यह प्रतिमा धरती से पूरी तरह बाहर निकालकर ऊपर आ जाएगी तब धरती का विनाश हो जाएगा।
  • इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि अगर आप की मौत यहां पर होती हैं और आप की अंतिम संस्कार इस मंदिर के पास में किया जाए तो आप अपने जीवन में जितने भी पाप किए होंगे और सभी पापों से आप मुक्त हो जाएंगे और आपका कभी भी पशु में जन्म नहीं होगा आपका आगे चलकर जब कभी भी जन्म होगा तो मनुष्य में ही होगा

 

 

 

 

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