पूर्णागिरि सिद्धपीठ चंपावत ( उत्तराखंड ): श्रद्धा से दर्शन-पूजन से होती हैं हर मनोकामना पूरी

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poornaagiri siddhapeeth champaavat ( uttaraakhand ): shraddha se darshan-poojan se hotee hain har manokaamana pooreeदेवभूमि मानी जाने वाले उत्तराखंड में पूर्णागिरी सिद्धपीठ का पावन मंदिर है। इसे पुण्यागिरी भी कहते हैं। देवी का यह पावन धाम उत्तराखंड के चम्पावत जिले में अस्थित है। समुद्र तल से तीन हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित मंदिर है। अन्नपूर्णा पर्वत पर 5500 फुट की ऊंचाई पर है। यह पावन धाम चंपावत से 92 व टनकपुर से बीस किलोमीटर की दूरी पर है। इस पावन धाम पूर्णागिरि का मंदिर काली नदी के दाएं ओर स्थित है। काली नदी को शारदा भी कहते हैं। स्थानीय मान्यता के अनुसार, यह पावन धाम 108 शक्तिपीठों में से शामिल है, हांलाकि इसे लेकर मतांतर हैं। इस पावन धाम में माँ की पूजा महाकाली के रूप में की जाती है। स्थानीय मान्यता के अनुसार, उत्तराखंड चंपावत के अन्नपूर्णा पर्वत पर माता सती की नाभि भाग गिरा , इसलिये यहां पर पूर्णागिरि मंदिर की स्थापना हुई। एक अन्य भी मंदिर के संदर्भ में बताई जाती है, उसके अनुसार, महाभारत काल मे प्राचीन ब्रह्मकुंड के पास पांडवों द्वारा विशाल यज्ञ का आयोजन किया गया और इस यज्ञ में प्रयोग किये गए अथाह सोने से यहाँ एक सोने का पर्वत बन गया । 1632 में कुमाऊँ के राजा ज्ञान चंद के दरवार में गुजरात से श्रीचंद तिवारी नामक ब्राह्मण आये, उन्होंने बताया कि माता ने स्वप्न में इस पर्वत की महिमा के बारे में बताया है। तब राजा ज्ञान चंद ने यहाँ मूर्ति स्थापित करके इसे मंदिर का रूप दिया। भगवती के इस पावन धाम के दर्शन के लिए साल भर श्रद्धालु आते हैं, लेकिन चैत्र माह और ग्रीष्म नवरात्र के दर्शन का विशेष महत्व है। चैत्र माह से यहाँ 90 दिनों तक पूर्णागिरि मंदिर का मेला भी लगता है।

पूर्णागिरि के सिद्धनाथ  बाबा मंदिर की कहानी

सिद्ध बाबा के बारे में कहा जाता है, कि एक साधु ने घमंड से वशीभूत होकर, जिद में माँ पूर्णागिरि पर्वत पर चढऩे की कोशिश की, तब माता पूर्णागिरि ने क्रोधित होकर साधु को नदी पार फेक दिया। (जो हिस्सा वर्तमान में नेपाल में है।) बाद में साधु द्वारा माफी मांगने के बाद ,माता ने दया में आकर साधु को सिद्ध बाबा के नाम से प्रसिद्ध होने का वरदान दिया। और कहाँ कि बिना तुम्हारे दर्शन के ,मेरे दर्शन अधूरे होंगे। अर्थात जो भी भक्त पूर्णागिरि मंदिर जाएगा, उसकी यात्रा और दर्शन तब तक पूरे नही माने जाएंगे, जब तक वह सिद्ध बाबा के दर्शन नही करेगा। यहाँ सिद्ध बाबा के लिए मोटी मोटी रोटिया ले जाने की परम्परा भी प्रचलित है।

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पूर्णागिरि धाम के झूठे का मंदिर की कथा

एक अन्य कथा के अनुसार एक सेठ संतान विहीन थे। एक दिन माँ पूर्णागिरि ने स्वप्न में कहा कि मेरे दर्शन के बाद तुम्हे पुत्र प्राप्ति होगी। सेठ में माता के दर्शन किये ,ओर मन्नत मांगी यदि उसका पुत्र हुआ तो वह माँ पूर्णागिरि के लिए सोने का मंदिर बनायेगा। सेठ का पुत्र हो गया,उनकी मन्नत पूरी हो गई, लेकिन जब सेठ की बारी आई तो ,सेठ का मन लालच से भर गया। सेठ ने सोने की मंदिर की स्थान पर ताँबे के मंदिर में सोने की पॉलिश चढ़ाकर माँ पूर्णागिरि को चढ़ाने चला गया। कहते है, टुन्याश नामक स्थान पर पहुचने के बाद वह मंदिर आगे नही ले जा सका, वह मंदिर वही जम गया। तब सेठ को वह मंदिर वही छोडऩा पड़ा। वही मंदिर अब झूठे का मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में बच्चों के मुंडन संस्कार किये जाते हैं। इसके बारे में मान्यता है कि इसमें मुंडन कराने से बच्चे दीर्घायु होते हैं।

यात्रा मार्ग 

यहां पहुंचने हेतु बरेली या पीलीभीत से सड़क या रेल द्वारा टनकपुर जाकर वहां से भैरव मंदिर तक 19 किलोमीटर की यात्रा बस या टैक्सी से करके 3 किलोमीटर की पर्वतीय यात्रा पैदल करनी पड़ती है, तब मां के सिद्धपीठ तक पहुंचा जाता है।

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