“प्रभास शक्तिपीठ”:  गिरनार पर्वत पर अम्बा माता मंदिर-अर्बुदारण्य क्षेत्र में आरासुर की अंबिका ( अबूंदा / अवंती शक्तिपीठ) 

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“prabhaas shaktipeeth”: giranaar parvat par amba maata mandir-arbudaarany kshetr mein aaraasur kee ambika ( aboonda / avantee shaktipeeth)प्रभास शक्तिपीठ: गुजरात में गिरनार पर्वत के प्रथम शिखर पर देवी अम्बिका का विशाल मंदिर है। एक मान्यता के अनुसार स्वयं जगत जननी देवी पार्वती हिमालय से यहां आकर निवास करती हैं। इस प्रदेश के ब्राह्मण विवाह के बाद वर-वधु को यहां देवी का चरण स्पर्श कराने के लिए लाते हैं। अम्बिका देवी यानी अम्बा जी के इस मंदिर कको ही शक्तिपीठ माना जाता है। यहां देवी सती के शरीर का उदर भाग गिरा था। यहां क शक्ति चंद्रभागा हैं औ भ्ौरव वक्रतुण्ड हैं। अधिकांश विद्बान इसे शक्तिपीठ के रूप में मान्यता देते हैं। 
एक अन्य मान्यता के अनुसार गुजरात के अर्बुदारण्य क्षेत्र में पर्वत शिखर पर माता सती के हृदय का एक भाग गिरा था। उसी अंग की पूजा यहां आरासुरी अम्बिका के नाम से होती है। यहां माता का श्रृंगार प्रात: बाल रूप, मध्याह्न् युवती रूप और शाम को वृद्धा रूप में होता है। माता के विग्रह स्थान पर बीसा यंत्र मात्र है। यह भी प्रसिद्ध है कि यहां गिरनार के निकट भैरव पर्वत पर माता सती का उर्ध्व ओष्ठ गिरा था, जो भैरव शक्तिपीठ के रूप में विख्यात है। कुछ विद्बान इस पावन धाम को शक्तिपीठ के रूप में मानते हैं।

इन दोनों पावन धामों की बहुत मान्यता है, हम दोनों धामों के बारे में विस्तार से बताने जा रहे है। दोनों की गुजरात में हैं।

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1-“प्रभास शक्तिपीठ”:  गिरनार पर्वत पर अम्बा माता मंदिर

यह शक्तिपीठ भारत के गुजरात राज्य के जूनागढ़ जनपद के वेरावल कस्बे से लगभग 4 किमी. दूर प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर के आस – पास का क्षेत्र जिसे पूर्व में प्रभास पाटन कहा जाता था, में स्थिति है। यहां देवी सती के उदर (पेट) गिरने की मान्यता है। देवी सती के गिरे अंग के स्थान पर निर्मित इस शक्तिपीठ की अधिष्ठात्री देवी चंद्रभागा के नाम से पूजा जाता है तथा देवी सती के साथ विराजमान भगवान शिव या भैरव भगवान वक्रतुंड के रुप में पूजे जाते हैं। प्रभास शक्तिपीठ के मूल स्थान के संबंध में कई मतैक्या हैं, हालांकि स्थानिय लोगों द्वारा जूनागढ़ के वेरावल कस्बे में पवित्र गिरनार पर्वत के शिखर पर स्थित अम्बा माता मंदिर को ही प्रभास शक्तिपीठ के रुप में पूजा जाता है। ऐतिहासिक धरोहरों एवं धार्मिक स्थलों के लिए प्रसिद्ध जूनागढ़ शहर पवित्र गिरनार पर्वत के निचले तल पर स्थित है, यहा 600 मी. ऊंची गिरनार पहाड़ी के शिखर पर स्थित अम्बा माता मंदिर देवी अम्बा को समर्पित है, जै देवी शक्ति का एक अन्य स्वरुप हैं। मान्यता है कि एक बार इस मंदिर का भम्रण कर लेन से वैवाहिक जीवन अत्यंत सुखमय व्यतीत होता है। यही कारण है कि यहां नवविवाहित युगल देवी अम्बा माता का आर्शीवाद प्राप्त करके ही अपने सुखमय जीवन की शुरुआत करते हैं। गुजरात राज्य के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक यह प्रसिद्ध हिंदू मंदिर 12 वीं शताब्दी पूर्व का निर्मित माना जाता है। देवी अम्बा माता जूनागढ़ की अधिष्ठात्री हैं, जिनके पद्चिह्न पवित्र गिरनार पर्वत पर अंकित हैं। मान्यता है कि इसी पवित्र स्थल पर भगवान श्रीकृष्ण का मुंडन संस्कार भी संपन्न हुआ था, हालांकि कुछ जानकारों के अनुसार कुरुक्षेत्र स्थित सावित्री देवी शक्तिपीठ मंदिर पर भगवान श्रीकृष्ण एवं भगवान बलराम के मुंडन संस्कार की बात कही जाती है। अम्बा माता मंदिर में स्वर्ण का बना एक यंत्र शोभायमान है, जिस पर 51 पवित्र श्लोक उकेरे गये है देवी अम्बा माता के दर्शन के लिए वर्ष भर यहां श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगा रहता है। साथ ही मंदिर के आगंन में आयोजित होने वाले भवई लोक नाट्यकला का आंनद उठाने के लिए भी लोग भारी संख्या में यहां जमा होते हैं। इस मंदिर से कुछ दूर सोमनाथ का विश्वप्रसिद्ध मंदिर भी स्थित है, जो भगवान शिव को समर्पित है, जहां प्रभास शक्तिपीठ या देवी चंद्रभागा के विराजमान होने की मान्यता भी कुछ जानकारों द्वारा स्वीकार की जाती है। यह भगवान शिव के द्वादश चंदन की लकड़ी तथा भीमदेव द्वारा पत्थर से 4 चरणों मं निर्मित यह मंदिर स्वयं में पुरातन कला एंव संस्कृति का अद्भुत आश्चर्य समेटे हुए है। मान्यता है कि प्रभास पाटन(सोमनाथ) का यह पवित्र स्थल पौराणिक नदियों – सरस्वती, हिरण्य तथा कपिला के संगम पर स्थित है, जहां भगवान शिव का कालभैरव स्वरुप में दिव्य शिवलिंग विराजमान है। इस पवित्र भूमि पर चंद्रदेव द्वारा भगवान शिव का शिवलिंग स्थापित कर पूजन करने की मान्यता के कारण ही इसे भगवान सोमनाथ (सोम या चंद्र के नाथ या भगवान अर्थात् भगवान शिव ) का धाम भी कहा जाता है। इस विश्वप्रसिद्ध मंदिर पर भक्तों का धार्मिक उल्लास देखते ही बनता है।
कैसे पहुंचे –
जूनागढ़ स्थित केशोद एयरपोर्ट एवं पोरबंद जनपद स्थित पोरबंदर एयरपोर्ट यहां के निकटतम हवाई – अड्डे हैं, जो जूनागढ़ शहर से लगभग 40 किमी. एवं 113 किमी. दूर स्थित हैं। अहमदाबाद- जूनागढ़ एवं राजकोट – जूनागढ़ रेलमार्ग पर स्थित जूनागढ़ स्टेशन एक प्रमुख रेलवे स्टेशन है, जो भारत के सभी प्रमुखतम शहरों से जुड़ा हुआ है। अहमदाबाद, वडोदरा, सूरत आदि गुजरात के सभी प्रमुख नगरों से राज्य परिवहन निगम की बसों द्वारा आप यहां आसानी से पहुंच सकते हैं।

2- गुजरात: अर्बुदारण्य क्षेत्र में आरासुर की अंबिका ( अबूंदा / अवंती शक्तिपीठ)

अंबिका का प्रसिद्ध मंदिर अर्बुदांचल ( माउंट आबू ) के निकट आरासुर नामक पहाड़ी पर स्थित है। यह पहाड़ी अरावली पर्वतमाला के दक्षिण – पश्चिम में स्थित है और गुजरात के उत्तर में पड़ता है। यह स्थान सरस्वती नदी के उद्गम स्थान के निकटहै| सरस्वती नदी यहां से बहती हुई सिद्धपुर जाती है और वहां से कच्छ के मरुस्थल में अदृश्य हो जाती है। सरस्वती के इस उद्गम स्थान के निकट कोटेश्वर महादेव का मंदिर है। यह प्रसिद्ध तीर्थस्थान है और यहां प्रतिवर्ष हजारों यात्री आते हैं।

धार्मिक पृष्ठभूमि

पुराणों के अनुसार सरस्वती का प्रवाह तीन भागों में होता है – एक धारा तो हिमालय की शिवालिक पर्वतश्रेणी के उस खंड के उद्गम से निकलती है, जिसको ‘ प्लक्ष प्रस्रवण ‘ कहते हैं। यह धारा कुरुक्षेत्र के निकट विनशन में अदृश्य हो जाती है।

दूसरी अर्बुदांचल के निकट आरासुर पहाड़ी पर कोटेश्वर महादेव के मंदिर के पास से निकलकर सिद्धपुर से होती हुई कच्छ के मरुस्थल में समाप्त हो जाती है। तीसरी वह है, जो सौराष्ट्र में गिर के जंगलों से निकलकर प्रभासपट्टन के निकट समुद्र में मिलती है।

ऋग्वेद में इस नदी को शक्तिशाली बताया गया है और इसको हिमालय से निकलने वाली तथा पश्चिमी समुद्र में गिरने वाली कहा गया है, किंतु ब्राह्मण ग्रंथों के अनुसार सरस्वती का विनशन में अदृश्य होना लिखा – गया है। पुराणों में भी ऊपर कहे अनुसार इसकी तीन धाराएं बताई गई हैं। बताते हैं कि ज्वालामुखी के विस्फोट से ऐसी स्थिति बन गई।

अरावली पर्वतमाला को, जिसका अर्बुद या आबू एक भाग है, बहुत पुराना माना जाता है। यहां तक कि हिमालय से भी अधिक प्राचीन। पशुपति और देवीमाता की पूजा, सिंधुघाटी की सभ्यता से भी अधिक प्राचीन है। देवीमाता की पूजा भारत में अनंतकाल से चली आ रही है और प्रत्येक ग्रामवासी उनकी पूजा, माता अंबा, ग्रामदेवी काली और कितने ही अन्य नामों से करते हैं। ‘ ऋग्वेद ‘ में भी उन्हें उषा, पृथ्वी, सरिता, श्रद्धा, अदिति और वाक् आदि नामों से स्मरण किया गया है। ‘ केन उपनिषद् ‘ में उमा हेमवती का वर्णन विशेष रूप से किया गया है।

‘ आबू पहाड़ या अर्बुद ‘ वसिष्ठ मुनि के आश्रम के कारण प्रसिद्ध तीर्थ माना जाता है। कहा जाता है कि वसिष्ठ मुनि की नंदिनी गाय यहीं के एक खड्ड में गिरी थी। उसके बाद मुनि ने सरस्वती नदी की पूजा की। सरस्वती नदी प्रसन्न होकर इस लोक में आई और उन्होंने अपने जल से गण को भर दिया, जिससे नंदिनी खड़ में से बाहर आ गई।

आबू पर्वत और उसके आसपास ‘ स्कंदपुराण ‘ ( अर्बुद खंड ) में अनेक तीर्थों का वर्णन है, जिनमें वसिष्ठाश्रम, सरस्वती – संगम, कात्यायनी, अचलेश्वर, कोटेश्वरा और कोटितीर्थ आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय है। चूंकि इनमें से अधिकांश का वर्णन बहुत ही अस्पष्ट है, इसलिए उन सबकी पहचान कठिन है।

तीर्थस्थल का दर्शनीय विवरण

  • अंबिका मंदिर: आरासुर के अविका मंदिर में भगवती की कोई मूर्ति नहीं है, केवल एक यंत्र है और वस्त्रों तथा अन्य की सहायता से दर्शन के लिए उस यंत्र को मूर्ति का रूप दिया गया है। देवी अंबाजी की गणना एक शक्तिपीठ के रूप में होती है और ऐसा माना जाता है कि मां पार्वती का हृदय यहां गिरा था। कुछ की मान्यता है कि हदय देवपर बैद्यनाथ धाम में गिरा था। मतांतर के उपरांत भी देवी अंबा एक शक्तिपीठ के रूप में एक भव्य मंदिर के अंदर यहां विराजमान हैं।

भगवती दुर्गा हिमालय और मैना की पुत्री तथा शिव की पत्नी  हैं। उत्तर गुजरात के चुनवाल स्थान वह बालरूप कन्या हैं , आरासुर में वह शिव – पत्नी हैं

उत्तर गुजरात के चुनवाल स्थान वह बालरूप कन्या हैं, आरासुर में वह शिव – पत्नी और स्नेहमयी माता है तथा चंपानेर के निकट स्थित पावागढ़ में वह उद्धारकर्ती भद्रकाली हैं।

आरासुर मंदिर में ईसा की सोलहवीं शताब्दी के अनेक शिलालेख हैं, जिनमें से एक राव भारमल की रानी का दानपत्र संबंधी अभिलेख है। मानसरोवर में एक शिलालेख महाराणा मालदेव ( सन् 1395 ई . ) का है। कुंभारिया में संगमरमर निर्मित एक शिलालेख जैनमंदिर के पास ही है। इन अभिलेखों से यह सिद्ध हो जाता है कि आरासुर का अंबिका मंदिर ईसा की आठवीं शताब्दी से भी पूर्व का है। सन् 746 ई . में जब वल्लभीनगर का पतन हुआ, तो वहां के राजा शिलादित्य की रानी पुष्पावती अंबिका की तीर्थयात्रा पर गई थीं।

गुजरात में शक्ति को जिन मुख्य रूपों में पूजा जाता है, वे हैं – श्रीकुला, अंबिका, ललिता, बाला और तुलजा आदि। गुजरात में काली दक्षिणचारी की है। वह भयानक काली नहीं , बल्कि भद्रकाली हैं। जब शंकराचार्य ने बदरीनाथ, जगन्नाथ और शृंगेरी में चार मठ स्थापित किए, तो वहां चार मुख्याधिष्ठात्री देवी – भद्रकाली, पूर्णागिरि विशाला और शारदा रहने लगीं। इस भद्रकाली का वामाचारी आचरण से संबंध नहीं है।

आरासुर में श्रीकृष्ण का मुंडन – संस्कार हुआ था, इसलिए अब भी कितने ही लोग अपने बच्चों का मुंडन – संस्कार यहीं कराते हैं। अंबिका के भक्तों में हिंदू ही नहीं, जैन भी हैं । इनके अतिरिक्त पारसी और मुसलमान भी उनको मानते हैं। कितने ही लोग यहां व्रत लेते और मनौती मानते हैं कि यदि उनकी अभिलाषा पूरा हुई, तो वे आरासुर के मंदिर के दर्शन के लिए जाएंगे और जब श्रद्धालुओं की आकांक्षा पूरी होती है, तो वे वैसा ही करते हैं।

  • कोटेश्वर मंदिर : अंबा देवी से 3 किलोमीटर दूरी पर यह मंदिर स्थित है, जो अधिक पुराना है। इसका जीर्णोद्धार भी किया जा चुका है, इसमें भगवान श्री शंकर का लिंग स्थापित है। मंदिर के बाहरी भाग पर सुंदर कलात्मक पच्चीकारी की गई है। इसी के पास पहाड़ से सरस्वती नदी की जलधारा प्रवाहित हो रही है। इसी धारा से एक कुंड निर्मित है, जिसमें तीर्थयात्री स्नान पुण्यलाभ प्राप्त करते हैं।
  • सरस्वती मंदिर : कोटेश्वर मंदिर के बाहरी प्रांगण में एक सरस्वती मंदिर भी है, जो एक गुफा में स्थित है। इसमें बैठ कर जाना होता है। अंदर माता की एक सुंदर प्रतिमा है।
  • कामाक्षी मंदिर : कोटेश्वर मंदिर से कुछ दूरी पर एक भव्य कामाक्षी मंदिर स्थित है, जो दक्षिण भारतीय पद्धति से बना है। इसका विशाल दरवाजा व मंदिर , मदुरई मंदिर की छोटी प्रतिलिपि की तरह है। इसके प्रांगण में चारों ओर 51 शक्तिपीठों के पृथक् – पृथक् छोटे मंदिर हैं। मंदिर सुंदर व दर्शनीय हैं।
  • कैलाश टेकरी शिव मंदिर : मां अंबा देवी मंदिर के पास ही एक पहाड़ी पर एक छोटा शिव मंदिर है और इसी के साथ एक भव्य बगीचा बनाया गया है, जो विभिन्न प्रकार के फूलों व पेड़ों से भरपूर है। इसमें झरने व नहरें भी बनी हैं। बरसात के मौसम में इसकी छटा देखते ही बनती है।
  • गब्बर मंदिर : अंबा नगरी में एक बहुत ही ऊंची पहाड़ी की चोटी पर एक मंदिर है, जिसमें निरंतर एक ज्योति जलती रहती है। इसके दर्शन मात्र से चित्त प्रसन्न हो जाता है। चूंकि पहाड़ी काफी ऊंची है, अत : शासन द्वारा उड़न खटोला की टिकट – युक्त व्यवस्था है। यात्री इसका आनंद लेकर माता की ज्योति के दर्शन कर पुण्यलाभ प्राप्त करते हैं।
  • कुंभारिया जैन मंदिर : इसी नगरी में भव्य जैन मंदिर भी स्थित है, जिसकी पत्थरों पर नक्काशी दिलवाड़ा जैन मंदिर के समान और अति सुंदर है। इस मंदिर के प्रांगण में 5 मंदिर हैं। जिसमें क्रमश : भगवान नेमिनाथ, शांतिनाथ, महावीर स्वामी, पारसनाथ व संभवनाथ जी की भव्य सुंदर प्रतिमाएं स्थापित हैं। सभी मंदिर नक्काशी में अति उत्तम हैं तथा दर्शनीय हैं।

अन्य दर्शनीय स्थल

अंबाजी का मंदिर: आबू रोड स्टेशन से 24 किलोमीटर है व माउंट आबू हिल स्टेशन मात्र 28 किलोमीटर है। अतः यात्री माउंट आबू पहाड़ी स्थान का भ्रमण भी कर सकते हैं। यहां पर नक्की झील में नौका विहार का आनंद ले सकते हैं। इसके अतिरिक्त सनसेट प्वाइंट, म्यूजियम, कला वीथिकाएं, बाग – बगीचे व मछली – घर आदि दर्शनीय स्थल हैं। माउंट आबू में गुजराती राजस्थानी शैलियों में निर्मित विभिन्न वस्तुओं की खरीदारी भी कर सकते हैं।

माउंट आबू के तीर्थस्थल

माउंट आबू के पास लगभग 4 से 18 किलोमीटर के अंदर अनेक सुंदर मंदिर स्थित हैं, जो अत्यंत दर्शनीय हैं।

  • दुलेश्वर शिवमंदिर : नक्की झील के पास मेन बाजार में एक छोटा तथा सुंदर शिव मंदिर स्थित है।
  • शंकर मठ : आबू से कुछ दूर ही एक सुंदर शिव मंदिर है, जिसमें एक शिला को तराश कर लगभग 10 फीट ऊंचा शिवलिंग निर्मित किया गया है। शिला पर सुंदर कारीगरी दर्शनीय है।
  • अर्बुदा देवी मंदिर शक्तिपीठ : नक्की झील के उत्तर शिखर पर गुफा में देवी अर्बुजा की सुंदर मूर्ति स्थापित है। शिखर तक पहुंचने हेतु लगभग 400 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं और उसके पश्चात् गुफाद्वार में लगभग लेट कर ही प्रवेश करना होता है और अंदर देवी की सुंदर व भव्य मूर्ति है। वक्रतुंड भैरव की मूर्ति गुफा के बाहर स्थित है। इसे एक शक्तिपीठ की मान्यता प्राप्त है और यहां पर सती का ऊर्ध्व ओष्ठ या अधर गिरा था, अत : इसे अधर देवी भी नाम दिया गया है तथा इसे माउंट आबू की अधिष्ठात्री देवी भी माना जाता है।
  • गुरु शिखर : आबू से लगभग 18 किलोमीटर पर राजस्थान की सबसे ऊंची चोटी गुरु शिखर स्थित है। शिखर से कुछ नीचे मुनि दत्तात्रेय का आश्रम है, जिसमें उन्होंने तप किया था और आज भी कुछ साधु वहां पूजा पाठ करते हैं। सबसे ऊपर शिखर पर लगभग 5676 फीट की ऊंचाई पर एक छोटी गुफा में मुनि दत्तात्रेय के चरण बने हुए हैं। जिसकी पूजा की जाती है। वृद्ध तीर्थ यात्रियों हेतु यहां डोली की व्यवस्था भी है। जिसमें बैठकर शिखर पर पहुंचा जा सकता है।
  • अचलगढ़ शिव मंदिर : गुरु शिखर से नीचे लगभग 9 किलोमीटर पर एक छोटा प्राचीन शिव मंदिर है। इसमें भगवान शिव का अंगूठा एक गड्डे में स्थित है और कहा जाता है कि माउंट आबू पर्वत को स्थिर करने हेतु शिव ने इसे अपने अंगूठे से दबाकर रखा हुआ है। इसी मंदिर में छोटी स्फटिक की मूर्तियां हैं, जो पीछे से थोड़ा उजाला होने पर अंधकार में भी चमकने लगती हैं। ये मूर्तियां देवी दुर्गा की हैं। पीतल का बड़ा नदिया मंदिर के बाहर स्थित है। इसके अतिरिक्त विभिन्न देवी, देवताओं के छोटे – छोटे मंदिर मुख्य मंदिर के चारों ओर स्थित हैं, जो अति प्राचीन हैं।
  • वसिष्ठाश्रम : यह आबू के सड़क मार्ग पर 750 सीढ़ी नीचे उतरने पर है। यहां वसिष्ठ कुंड में गोमुख से जल गिरता है। मंदिर में वसिष्ठजी तथा अरुंधती की मूर्तियां हैं।
  • गौतमाश्रम : वसिष्ठाश्रम से 300 सीढ़ी नीचे नागकुंड है। यहीं पर एक मंदिर है। मंदिर में महर्षि गौतम ध्यानस्थ मुद्रा में हैं। यहां पर कामधेनु तथा उसके बछड़े की मूर्ति और अर्बुदा देवी की मूर्तियां हैं।
  • दैलवाड़ा जैन मंदिर : माउंट आबू से लगभग 4 किलोमीटर पर स्थित दैलवाड़ा जैन मंदिरों के कारण प्रसिद्ध है। हर वर्ष हजारों तीर्थयात्री और पर्यटक इस क्षेत्र में आते हैं और भारत की प्रसिद्ध मूर्ति – कला के दर्शन करते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि संगमरमर पर ऐसा काम आगरा के ताजमहल में भी देखने को नहीं मिलता है।

ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार ईसा से 600 वर्ष पूर्व आबू नागाओं का स्थान था। उससे भी पहले महाभारतकाल में आबू पर ऋषि वसिष्ठ का आश्रम था। जैन संप्रदाय के अनुसार तीर्थंकर महावीरजी भी आबू पर्वत पर आए थे।

इस मंदिर के अंदर चार विभिन्न मंदिर हैं, जो पृथक् – पृथक् नाम से जाने जाते हैं और प्रत्येक में पत्थरों पर नक्काशी का अद्भुत नमूना पेश किया गया है।

(अ ) विमलशाही मंदिर : राजा भीमदेव के मंत्री विमलशाह ने इस मंदिर का निर्माण सन् 1021 में कराया था। मंदिर के लिए उपयुक्त जमीन को खरीदने के लिए विमलशाह ने सोने की मुहरों को बिछाकर जमीन का दाम चुकाया था।

इस मंदिर में आदिनाथजी की स्वर्ण प्रतिमा प्रतिष्ठित है और मंदिर के बाहर आलों में तीर्थंकरों की प्रतिमाएं हैं।

( ब ) लूणाशाही मंदिर : सन् 1230 में वास्तुपाल और उनके सहोदर तेजपाल ने मिलकर आबू की पहाड़ी पर एक और मंदिर का निर्माण किया और 22 वें तीर्थकर नेमिनाथजी की प्रतिमा को स्थापित किया। विमलशाही मंदिर की तरह ही इस मंदिर में भी गुंबदनुमा मंडप है और मंदिर में चारों तरफ जैन संप्रदाय की मान्यताओं को दर्शाते चित्र और मूर्तियां हैं। देवस्थान के अलावा इस मंदिर की ‘ हस्तिशाला ‘ का उल्लेख करना आवश्यक है, क्योंकि इस विराट क्षेत्र में दस विभाग हैं और हर एक में संगमरमर के बने हाथी हैं|

( स ) पीतलहर मंदिर : यह भी आदिनाथजी का मंदिर है और शायद इसका यह नाम पीतल की मूर्ति के कारण पड़ा है। यह मूर्ति 108 मन की है। मंदिर में चारों और दूसरे तीर्थंकरों की मूर्तियां भी हैं।

( द ) चौमुखा मंदिर : इस मंदिर को खरताराशाही मंदिर भी कहते हैं। इस मंदिर में आराध्यदेव हैं पार्श्वनाथजी। यह दैलवाड़ा में सबसे ऊंचा मंदिर है मंदिर तीन मंजिल है। इस मंदिर में जैन संप्रदाय की अनेक मूर्तियां हैं और सबसे नीचे देवी अंबिका की भी एक मूर्ति है।

  • कल्पवृक्ष : मंदिर के बाहर बगीचे में दो कल्पवृक्ष भी लगे हैं। यात्री उसे भी देखें और इच्छा पूर्ति हेतु प्रार्थना करें। कुछ बांधना, चढ़ाना इत्यादि वर्जित है।
  • ब्रह्मकुमारी आध्यात्मिक विश्वविद्यालय : यह संस्था आबू रोड नगर में ही स्थित है, परंतु इसके म्यूजियम व पार्क आदि माउंट आबू में हैं, जिसमें पीस पार्क जो कुछ दूरी पर है, अत्यंत सुंदर दर्शनीय स्थल है। इसमें विभिन्न प्रकार के पुष्प तथा पेड़ – पौधे मंत्रमुग्ध कर देते हैं। इसी पार्क के अंदर लेसर द्वारा आध्यात्मिक ज्ञान भी दिया जाता है तथा अध्ययन हेतु पुस्तकें, सी.डी. आदि भी क्रय हेतु उपलब्ध हैं। पर्यटक इस पार्क तथा म्यूजियम में अवश्य भ्रमण करें।
  • बिंदु सरोवर : माउंट आबू से यह मात्र उन्नीस किलोमीटर दूर स्थित है। यह पांच सरोवरों में से एक है तथा आदि तीर्थ है और यहां पितरों का तर्पण किया जाता है। इसके निकट कुछ अन्य दर्शनीय स्थल भी हैं।

यात्रा मार्ग

उदयपुर का डबोक हवाई अड्डा माउंट आबू एवं अंबादेवी से लगभग 210 किलोमीटर है। यहां से बस या टैक्सी द्वारा दोनों स्थानों तक पहुंचा जा सकता है। ट्रेन से माउंट आबू व अंबादेवी जाने हेतु आबू रोड स्टेशन पर उतरना पड़ता है। यह स्टेशन नई दिल्ली अहमदाबाद – मुंबई मार्ग के मध्य पड़ता है और राजधानी सहित सभी गाड़ियां यहां पर रुकती हैं। इसके अतिरिक्त अजमेर, जयपुर, बीकानेर से भी गाड़ियां आबू रोड तक जाती हैं। राजस्थान व गुजरात रोडवेज व प्राइवेट बसें लगभग सभी स्थानों से आबू रोड, माउंट आबू व अंबा देवी तक जाती रहती हैं। इसके अतिरिक्त टैक्सी, कार द्वारा भी इन सभी स्थानों तक जाया जा सकता है। सड़कें अच्छी हैं, अतः यात्रा आरामदायक रहती है। आबू रोड रेलवे स्टेशन के बाहर अनेक प्रकार की छोटी – बड़ी गाड़ियां, जीप इत्यादि पर्यटन हेतु उपलब्ध होती हैं, जो अंबा देवी नगर तथा माउंट आबू तक जाती हैं इसके अतिरिक्त मिनी बसें भी दोनों स्थानों तक जाती हैं। तीर्थयात्री व पर्यटकों को सलाह दी जाती है कि वे कोई एक वाहन किराए पर लें, जो अंबा देवी और आसपास के सभी स्थलों के दर्शन कराकर माउंट आबू पहुंचा दे। अंबा देवी एवं अन्य स्थलों को देखने में लगभग 4 या 5 घंटे ही लगते हैं, अतः शाम तक माउंट आबू सरलता से पहुंचा जा सकता है। माउंट आबू में एक विशेष पर्यटक सुविधा नौजवानों हेतु उपलब्ध है। वे मोटर बाइक किराये पर लेकर सभी स्थान स्वयं ही घूम सकते हैं।

ठहरने के स्थान

अंबा जी व माउंट आबू पहुंचने वाले यात्रियों के ठहरने हेतु अनेक धर्मशालाएं दोनों स्थानों में हैं। इसके अतिरिक्त उत्तम व्यवस्था से पूर्ण सुसज्जित लाज व होटल भी दोनों स्थानों पर उपलब्ध हैं। दोनों स्थलों पर शासकीय अतिथिगृह तथा सर्किट हाउस भी हैं।

आरासुरी अम्बाजी शक्तिपीठ: यहाँ प्रवास से ही मिलाता है अतुल्य पुण्य 

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