सभी शास्त्रों का सार क्या है? इस बारे में हमारे ग्रंथ योगवासिष्ठ में स्पष्ट तौर पर कहा गया है। जिसमें बताया गया है, किस प्रकार मनुष्य अपने को सन्मार्ग पर चलाकर सदगति की ओर बढाता है।
मंत्र-
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अशुभेषु समाविष्टं सुभेष्वेवावतारयेत्। प्रयत्न्च्चित्तमित्येष सर्व शास्त्रार्थसंग्रह:।।
यच्छ्रेयो यदतुच्छं च यदापायविवर्जितम्। तत्तदाचर यत्नेन पुत्रेति गुरव: स्थिता:।।
भावार्थ- अशुभ कर्मों में लगे हुए मन को वहां से हटाकर प्रयत्नपूर्वक शुभ कर्मों में लगाना चाहिए। यह सब शास्त्रों के सार का संग्रह है, जो वस्तु कल्याणकारी है, तुच्छ नहीं है और जिसका कभी नाश नहीं होता, उसी का यत्नपूर्वक आचरण करना चाहिए। हे वत्स, गुरुजन यही उपदेश देते हैं।