रणथंभौर ( त्रिनेत्र गणेश ): विवाह वाले गणेशजी

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रणथंभौर ( त्रिनेत्र गणेश ) : विवाह जैसे कार्य को निर्विघ्न संपन्न करने हेतु इन गणेश की पूजा करके विवाह कार्ड इन्हें भेजे जाते हैं। इन्हें विवाह वाले गणेशजी भी कहा जाता है। अन्न से घर भरा पूरा रहे, इस हेतु भी ये गणेशजी प्रसिद्ध हैं।रणभंभौर एक गणेश का प्रसिद्ध व सिद्ध स्थल है। यहां के गणेश के बारे में कहा जाता है कि यदि विवाह का कार्ड यहां भेजा जाए तो उसमें विघ्न नहीं आता है। आज भी सैकड़ों विवाह निमंत्रण बाकायदा यहां आते हैं और पोस्टमैन इनको इतनी ऊंची चढ़ाई चढ़कर गणेश तक पहुंचाते हैं। पास के ग्रामवासियों का मानना है कि यहां फसल का कुछ भाग देने से प्रति वर्ष अच्छी फसलें होती हैं। अत : किसान आज भी फसल की पहली खेप का अनाज यहां दान करते हैं। मंदिर के पुजारी भक्तों व तीर्थ – यात्रियों को एक मुट्ठी गेंहू लेकर तिजोरी में रखने को कहते हैं, जिससे घर, धन – धान्य से हमेशा भरा रहेगा। यहां लंगूरों की संख्या अत्यधिक है, पर आश्चर्य की बात है कि जब भक्त प्रसाद चढ़ाने जाते हैं तो ये चुपचाप देखते रहते हैं, परंतु जब प्रसाद चढ़ाकर वापस आते हैं तो ये प्रसाद मांगने लगते हैं और कभी – कभी छीन भी लेते हैं।यहां गणेश जी की पहली त्रिनेत्री प्रतिमा विराजमान है। यह प्रतिमा स्वयंभू प्रकट है। देश में ऐसी केवल चार गणेश प्रतिमाएं ही हैं।

हम बात कर रहे हैं राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले के रणथंभौर में स्थित ​प्रसिद्ध त्रिनेत्र गणेश जी मंदिर की…………..

धार्मिक कथा 

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राजा हमीर ने जब अलाउद्दीन खिलजी से युद्ध किया तो उसने किले के भंडार – गृह में काफी अनाज व खाद्य वस्तुएं भर ली, परतु युद्ध अनेक वर्षों तक चला। अत : खाद्य वस्तुएं समाप्त होने लगी तो राजा को चिंता हुई और तब उन्होंने गणेशजी से गुहार की। क्योंकि वह उनका अनन्य भक्त था और उसे उसी रात्रि सपना आया कि चिंता मत करो, कल सब ठीक हो जाएगा। दूसरे दिन ही युद्ध समाप्त हो गया और किले की एक दीवार पर त्रिनेत्र गणेशजी की मूर्ति प्रकट हो गई। राजा ने वहीं गणेश मंदिर का निर्माण करवाया, जिसमें गणेशजी को रिद्धि, सिद्धि व दो पुत्रों शुभ, लाभ तथा मूषक के साथ स्थापित किया। आज वह मंदिर रणथंभौर का मंदिर कहा जाता है।

मंदिर का उल्लेख 

एक किलेनुमा प्रांगण में मंदिर स्थित है, जिसके चारों ओर 15 फीट ऊंची चहारदीवारी है और कुछ कक्ष भी निर्मित हैं । इसके एक और सुंदर सिंहासन पर गणेश मूर्ति विराजमान है। इसके आस – पास रिद्धि, सिद्धि शुभ, लाभ आदि की मूर्तियां स्थापित हैं। नीचे एक मूषक की मूर्ति भी है। यहा पांच मालाएं व मोदक का प्रसाद चढ़ाया जाता है। मंदिर के अन्य कक्षों में कुछ देवी – देवताओं की मूर्तियों के साथ शिवलिंग भी स्थापित है।

आसपास के स्थल

  1. किला : मंदिर पहुंचने हेतु किले के भव्य तोरण द्वार से लगभग 800 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। तोरण द्वार के दोनों ओर स्वागत मुद्रा में हाथियों की मूर्तियां हैं।
  2. छतरियां : किले में चढ़ने के पश्चात् मंदिर जाने वाले भाग पर एक 32 स्तंभ वाली बड़ी व अनेक छोटी सुंदर छतरियां हैं, जो प्राचीन तथा दर्शनीय हैं।
  3. बावड़ियां : इतने ऊंचे पहाड़ी स्थान पर मंदिर मार्ग में एक बड़ी बावड़ी है, जिसमें हाथी जाने हेतु मार्ग बना है। कुछ दूर पर एक बड़ा सरोवर भी है । इसके अतिरिक्त जीर्ण अवस्था में अनेक मंदिर पहाड़ी पर बने हुए हैं।
  4. राष्ट्रीय उद्यान : किले के चारों ओर रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान है, जिसमें जंगली जानवरों के साथ बाघों की संख्या काफी अधिक है और इस कारण ही विदेशी पर्यटक यहां आते रहते हैं। किले से हिरन, नील गायें आदि चरते देखे जा सकते हैं, कभी – कभी बाघों के दर्शन भी हो जाते हैं।
  5. अमरेश्वर मंदिर : किले के नीचे जंगल में पर्वत के ऊपर एक अमरेश्वर शिवलिंग है, साथ ही राम – सीता का मंदिर भी हैं।

यात्रा मार्ग

वायु मार्ग हेतु निकट हवाई अड्डा जयपुर व दिल्ली है। दिल्ली – मुंबई – कोटा – जयपुर रेल मार्ग के मध्य में सवाई माधोपुर एक बड़ा जंक्शन है, जहां से मंदिर की दूरी 16 किलोमीटर है। कोटा से यह 125 किलोमीटर दूर स्थित है। सवाई माधोपुर सभी प्रमुख नगरों से सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा है।

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