रुद्राक्ष : दर्शन – स्पर्श मात्र के कोटि पुण्य

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रुद्राक्ष rudraksh

रुद्राक्ष: दर्शन – मात्र स्पर्श के लाखों गुण: rudraaksh: darshan – maatr sparsh ke laakhon gunरुद्राक्ष शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, रुद्र और अक्ष। रुद्र का अर्थ है भगवान भोलेनाथ शिव और अक्ष का अर्थ होता है आंख। इसका आशय हुआ भगवान शिव की आंख से प्रकट हुआ पदार्थ। देवों के देव महादेव भगवान शंकर जिसमें साक्षात् विराजमान हैं, वह है रुद्राक्ष। यह संसार की दिव्यतम् वस्तु मानी जाती है। यदि रुद्राक्ष को शुद्ध व शोधित करा कर प्रत्येक मुख की विवेचना करवाकर धारण व उपयोग किया जाए तो दुनिया के महंगे से महंगा रत्न भी इसके समक्ष फीके हैं। गुणों में इसकी बराबरी कोई नहीं कर सकता है। रुद्राक्ष के दर्शन से लक्ष्य पुण्य, स्पर्श से कोटि प्रमाण पुण्य, धारण करने से दशकोटि प्रमाण पुण्य एवं इसका जप करने से लक्ष कोटि सहस्र तथा लक्ष कोटि शत प्रमाण पुण्य की प्राप्ति होती है। श्रीमद्भागवत के अनुसार जिस प्रकार पुरुषों में विष्णु, ग्रहों में सूर्य, मुनियों में कश्यप, नदियों में गंगा, देवों में शिव और देवियों में गौरी सर्वश्रेष्ठ हैं, वैसे ही यह रुद्राक्ष सभी में श्रेष्ठ है।  यह एक पवित्र व ऊर्जावान बीज है, जो दिव्य शक्ति से युक्त है, जबकि रन का प्रभाव केवल किरणों मात्र से ही होता है। अतः शरीर को रोगमुक्त व लाभ पहुंचाने हेतु रुद्राक्ष ही सर्वश्रेष्ठ है, जो सीधा प्रभाव शरीर पर डालता है।

ज्योतिष व रुद्राक्ष

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पृथक् – पृथक् मुखी रुद्राक्षों पर अलग – अलग नौ ग्रहों का आधिपत्य है, अत : जन्म नक्षत्र के अनुसार ही विभिन्न मुखों वाले रुद्राक्ष को धारण करना अनेक दृष्टियों से लाभप्रद और सिद्धिदायक होता है। राहु कष्टकारी होने पर आठमुखी व केतु कष्टकारी होने पर नौमुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।

धारणकर्ता के शरीर से नकारात्मक ऊर्जा को बाहर करता है

रुद्राक्ष की ग्राहिका शक्ति सर्वाधिक तीव्र होती है और संचयिता की तरह है। यह केवल शक्ति संग्रह ही नहीं, अपितु उर्जा का विकिरण करता है और धारणकर्ता के शरीर से नकारात्मक ऊर्जा को बाहर करता है। रुद्राक्ष अधिक से अधिक चौदहमुखी तक होते हैं और सभी का प्रभाव पृथक् – पृथक् राशियों हेतु पृथक् -पृथक् होता है। एकमुखी रुद्राक्ष साक्षात् शिव स्वरूप है और इसे धारण करने से बड़े से बड़े पापों का नाश होता है। मनुष्य चिंतामुक्त व निर्भय हो जाता है। एकमुखी रुद्राक्ष सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। रुद्राक्ष मानव के प्रत्येक भाग में होने वाले सभी रोगों के निवारण हेतु उपयोगी है। पांचमुखी रुद्राक्ष की माला बनाकर उसके मध्य में एकमुखी रुद्राक्ष पिरोकर धारण करने से सभी रोगों में लाभकारी प्रभाव पड़ता है। इसमें रुद्राक्षिन नाम का ऐल्केलायड पाया जाता है, जो उच्च रक्तचाप और अन्य रोगों पर प्रभावी होता है।

रुद्राक्ष का वृक्ष

यह एक मध्यमाकार वृक्ष है, जिसका वानस्पतिक नाम इलियोकार्पस गेनीट्रस ( Elaeocarpus ganitrus Roxb) है। इसमें अमरूद वृक्ष के समान पत्तियां होती हैं पर पतली व चमकदार और लटकती हुई होती हैं। लंबाई में ये 5-6 इंच लंबी व 2 इंच तक चौड़ी होती हैं। पुष्पमंजरी 2-3 इंच लंबी लटकती होती है तथा उसमें श्वेत पुष्प लगते हैं। फल छोटा , आधे इंच से एक इंच तक व्यास वाला, गोलाकार या अंडाकार बैंगनी रंग का होता है। इसके भीतर एक बड़ी गुठली होती है, जो वास्तविक रुद्राक्ष होता है। इसकी लगभग 99 प्रजातियां पाई जाती हैं। जिसमें मात्र 10 भारत में पाई जाती हैं।

रुद्राक्ष के  मुख संबंधी भ्रांति 

अनेक व्यक्तियों द्वारा ये माना जाता है कि एक वृक्ष पर एक ही प्रकार के रुद्राक्ष लगते हैं, पर ऐसा नहीं है। इतना अवश्य है कि एक वृक्ष पर प्राय : एक प्रकार के ही रुद्राक्ष अधिक लगते हैं, पर अन्य प्रकार के रुद्राक्ष भी इसके साथ लग सकते हैं। वास्तव में यह एक वातावरणीय प्रतिक्रिया है, जो रुद्राक्ष के मुखों को प्रभावित करती है। अतः एक ही वृक्ष पर एक से अधिक प्रकार के अनेक मुखी रुद्राक्ष लग सकते हैं। कुछ जातियों में ये छोटे होते हैं, कुछ में मध्यम और कुछ में बड़े आकार के होते हैं। नेपाल के वृक्षों में अर्द्धचंद्राकार रुद्राक्ष भी पाए जाते हैं।

रुद्राक्ष की सत्यता प्रमाणित के टेस्ट 

रुद्राक्ष की सत्यता प्रमाणित करने हेतु जितने भी टेस्ट आप जानते हैं, उन सभी पर अक्सर नकली रुद्राक्ष खरे उतरते हैं। इनको यदि आप पत्थर से फोड़ दें तो ये सरलता से टूट जाते हैं, जबकि शुद्ध रुद्राक्ष सरलता से नहीं टूटता है। ये नकली रुद्राक्ष वास्तव में प्लास्टिक के बने होते हैं और अंदर मोम जैसा पदार्थ भरा रहता है।

यहाँ लगे हैं रुद्राक्ष वृक्ष 

हरिद्वार के निकट कनखल नाम के स्थान पर मृत्युंजय शिवमंदिर में एक बहुत ही विशाल अति प्राचीन रुद्राक्ष वृक्ष है, जिसमें प्रति वर्ष हजारों की संख्या में रुद्राक्ष लगते हैं। ये तीनमुखी से लेकर पांचमुखी तक होते हैं और मंदिर प्रशासन इन्हें प्रत्येक को मात्र 10 रुपए में विक्रय करता है। एकमुखी भी लगता होगा, पर वह सभी को क्रय हेतु उपलब्ध नहीं है। नेपाल से लाकर लगाया गया एक रुद्राक्ष वृक्ष भी प्रांगण में बढ़ रहा है। इसके अतिरिक्त कनखल के अनेक बगीचों में इसके अनेक छोटे – बड़े वृक्ष लगे हैं। अमरकंटक तीर्थ में मंदिर के बाहरी प्रांगण में छ : रुद्राक्ष के वृक्ष लगे हैं। मथुरा से वृंदावन जाने वाले मार्ग के मध्य में एक आश्रम के अंदर रुद्राक्ष के बहुत से वृक्ष लगे हैं। चूंकि अब रुद्राक्ष के छोटे पौधे क्रय हेतु उपलब्ध हैं, अत : भविष्य में भारत के सभी स्थानों पर मिलने लगेंगे।

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