भक्त अगर भगवान को समर्पण कर देता है तो भगवान भी उसके सदैव सहायक होते हैं।
भगवत कृपा प्राप्त करने का सर्वोत्तम माध्यम है-संकीर्तन। संकीर्तन के माध्यम से जहां जीव उस ईश्वरीय सत्ता से जुड़ता है, वही वह अपने आत्मोत्थान का मार्ग भी प्रशस्त करता है।
संकीर्त्यमानो भगवाननन्तः श्रुतानुभावो व्यसनं हि पुंसाम् ।
प्रविश्य चित्तं विधुनोत्यशेषं यथा तमोऽर्कोऽभ्रमिवातिवातः ॥
भावार्थ- जिनकी महिमा सर्वत्र विश्रुत ( प्रसिद्ध ) है , उन भगवान् अनन्त का जब कीर्तन किया जाता है , तब वे उन कीर्तन – परायण भक्तजनों के चित्त में प्रविष्ट हो उनके सारे संकट को उसी प्रकार नष्ट कर देते हैं, जैसे सूर्य अन्धकारको और आँधी बादलोंको।
आर्ता विषण्णाः शिथिलाश्च भीता घोरेषु च व्याधिषु वर्त्तमानाः ।
संकीर्त्य नारायणशब्दमेकं विमुक्तदुःखाः सुखिनो भवन्ति ॥
भावार्थ- पीड़ित , विषादग्रस्त , शिथिल , भयभीत तथा भयानक रोगों में पड़े हुए मनुष्य भी एकमात्र नारायण नाम का कीर्तन करके समस्त दु : खों से छूटकर सुखी हो जाते हैं ।
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