सप्तपुरी में मथुरा – वृंदावन : यहाँ उमा देवी शक्तिपीठ भी, पाप होता है नष्ट

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saptapuree mein mathura – vrndaavan : yahaan uma devee shaktipeeth bhee, paap hota hai nashtमथुरा – वृंदावन ( उमा देवी शक्तिपीठ ):  उत्तर प्रदेश में यमुना नदी के किनारे बसी भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथुरा की गणना मोक्ष देने वाली सात पुरियों में की गई है। भगवान विष्णु ने इसे अपना सर्वाधिक प्रिय क्षेत्र बताया है।मथुरा विष्णु की पूजा का स्थल है। मथुरा के निकट ही मधुवन में पहले असुर मधु और उसके पुत्र लवण का शासन था। इसी मधु के नाम पर ‘ मधुरा ‘ या ‘ मधुपुरी ‘ मधुवन नगरी बसी। ऐसा कहा जाता है कि तीर्थ स्थान पर किया पाप अमिट होता है, परंतु इसके विपरीत मथुरा में किया पाप मथुरा में ही नष्ट हो जाता है और यही इस तीर्थ की महानता है।

मथुरा के संबंध में दो कथाएं

  • मथुरा के निकट मधुवन में पहले असुर मधु का और उसके पुत्र लवण का शासन था। आस – पास के क्षेत्र में इनका भारी उत्पात था। भगवान राम के छोटे भ्राता शत्रुघ्न ने लवण को मारकर इस नगरी को असुरों से मुक्त कराया।
  • पुराणों में प्राप्त यदुवंश के इतिहास ‘ के अनुसार अंधक की वंशजा देवकी और वृष्णि के वंशज वासुदेव से जिस पुत्र का जन्म हुआ, वह नारायण के अवतार भगवान कृष्ण थे, अतः यह स्थान श्री कृष्ण की जन्मभूमि माना जाता है। मनु के पौत्र ध्रुव को इसी स्थल पर भगवत्साक्षात्कार तप करके हुआ था।

मथुरा के दर्शनीय स्थल

इस नगरी में सैकड़ों प्राचीन और नवीन दर्शनीय स्थल हैं-

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  • शिव मंदिर : मथुरा की रक्षा के लिए शिव इसके पूरब में पिप्पलेश्वर, पश्चिम में भूतेश्वर, उत्तर में गोकर्णेश्वर और दक्षिण में रंगेश्वर के रूप में स्थित हैं।
  • विश्राम घाट : यमुना नदी के किनारे 24 घाट स्थित हैं पर सभी की अवस्था जल का उचित प्रवाह न होने के कारण अत्यधिक खराब है। मुख्य घाट पर कुछ न कुछ जल हमेशा भरा ही रहता है और इसी विश्राम घाट पर यात्री चाहें तो स्नान कर सकते हैं। इसी घाट के पास ही द्वारिकाधीश का मंदिर अवस्थित है।
  • ध्रुव घाट: ध्रुव टीले पर छोटे मंदिर में ध्रुवजी की मूर्ति है। मथुरा की परिक्रमा को वराहपुराण ‘ में संपूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा के बराबर बताया गया है।
  • वल्लभाचार्यजी की बैठक : यह विश्राम घाट के पास है।
  • पोतरा कुंड : यहां कृष्ण के बाल्यकाल में उनके पोतड़े धोए गए थे।
  • कृष्ण जन्मभूमिः पहले इस स्थान पर कृष्ण जन्म का एक मंदिर था, पर मुसलमान शासक ने इसे तुड़वा कर एक मस्जिद का निर्माण करा दिया था और मूल जन्म मंदिर या केशव देव मंदिर इसके पीछे बन गया। वर्तमान में मथुरावासियों, ट्रस्टों आदि ने मिलकर एक विराट जन्मभूमि मंदिर का निर्माण करा दिया है। यह लगभग 100 सीढ़ी ऊपर है जिसमें एक विशाल सभा मंडप है और श्रीकृष्ण की मूर्ति स्थापित है। मंडप के चारों ओर अनेक देवी – देवताओं के छोटे – छोटे मंदिर स्थापित हैं। सभा मंडप की दीवारों व छतों पर रंगीन चित्रों द्वारा कृष्ण कथा चित्रित की गई है। इसी के पास कंस का प्राचीन कारागार भी है, जो तहखाने में स्थित है और इसी को श्रीकृष्ण का मूल जन्म स्थान माना जाता है। मंदिर के बाहर कृत्रिम पर्वत के अंदर अनेक कृष्ण लीलाएं मूर्तियों व मॉडलों द्वारा दर्शाई गई हैं।
  • द्वारिकाधीश मंदिर: विश्राम घाट के पास एक संकरी गली में अवस्थित है। सीढ़ियां चढ़कर मंदिर प्रांगण में पहुंचा जाता है। मंदिर में एक सभा मडंप है और उसी के साथ एक कक्ष में द्वारिकाधीश की अति सुंदर व भव्य प्रतिमा अवस्थित है। इसके दर्शन एक समय सारिणी के अनुसार ही हो पाते हैं। यह सारिणी निम्नलिखित है:

ग्रीष्म काल

मंगलामय आरती प्रात : 6.30 से 7.00 तक

शृंगार दर्शन प्रात: 7:40 से 7.55 तक

ग्वाल दर्शन प्रातः 8.25 से 8:40 तक

राजभोग प्रात : 10:00 से 10:30 तक

उत्थापन सायं 4:00 से 420 तक

भोग सायं 4:45 से 510 तक

संध्या आरती सायं 5.20 से 4:40 तक

शयन साय 6.30 से 7:00 तक

(मंदिर दर्शन 10:30 प्रातः से सायं 4:00 तक नहीं होते हैं।)

शरद काल: प्रात काल से राजभोग तक का समय ग्रीष्म काल के समान ही है। सायं काल का परिवर्तित समय निम्नलिखित है:

उत्थापन सायं 3.30 से 3.50 तक

भोग सायं 4:20 से 4:40 तक

संध्या आरती सायं 4:55 से 5:10 तक

शयन सायं 6:00 से 6:30 तक

मंदिर प्रांगण में भी अनेक छोटे – छोटे मंदिर हैं। मंदिर प्रांगण के कार्यालय में दान भी दिया जा सकता है। यात्री प्रसाद भी कार्यालय द्वारा निर्धारित स्थान से क्रय कर सकते हैं।

वृदावन

मधुरा ववदावन का एक ही तीर्थ माना जाता है क्योंकि दोनों स्थल ही श्री कृष्ण लीला से संबंधित हैं। श्री कृष्ण का बाल्यकाल वृदावन में बीता था। अतः इससे संबंधित मंदिर व घाट आदि इसी नगर में हैं। इसके पश्चात् युवावस्थाओं की लीलाओं से संबंधित अनेक मंदिर व कुंज आदि भी वृंदावन में अवस्थित हैं।

मथुरा वृंदावन मार्ग

वृंदावन स्थल, मथुरा से मात्र 13 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। ये मार्ग टैंपो, टूसीटर बसों और तांगों द्वारा पूरा किया जा सकता है। छोटे वाहन जैसे टूसीटर , तांगा आदि उत्तम हैं, क्योंकि ये मार्ग में स्थित अनेक तीर्थस्थलों का दर्शन कराते हुए वृंदावन पहुंचा देते हैं। मार्ग में अनेक प्राचीन व नवीन बड़े – बड़े भव्य मंदिर अवस्थित हैं।

भूतेश्वर मंदिर : सर्वप्रथम यह मंदिर ही मार्ग में आता है, जो शिव का प्राचीन मंदिर है और पश्चिम दिशा से मथुरा की रक्षा करता है।

उमा देवी मंदिर: शिव मंदिर के पास ही उमा देवी का मंदिर स्थित है, जो 52 शक्तिपीठों में एक माना जाता है। यहां सती के केश गिरे थे।

पगला बाबा मंदिर: यह दस मंजिलों में बना विशाल मंदिर है तथा दर्शनीय है। इसमें पगला बाबा की मूर्ति अवस्थित है।

बिरला मंदिर : बिरला द्वारा निर्मित एक विशाल प्रांगण में यह मंदिर अवस्थित है।

अन्य मंदिर: इसके अतिरिक्त अनेक बड़े – छोटे मंदिर आश्रम आदि मार्ग में स्थित हैं जो सभी दर्शनीय हैं।

वृदावन की धार्मिक कथा 

मुरलीधर श्रीकृष्ण तथा रसवंती श्रीराधा की क्रीड़ा – भूमि के रूप में यमुनातट पर स्थित वृंदावन धाम हिंदू समुदाय के पूज्यस्थलों में से एक है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार सतयुग में महाराज केदार की पुत्री वृंदा ने श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने के लिए तप किया। उसके तप से भगवान प्रसन्न हुए। वृंदा के तप – स्थल को वृंदावन कहते हैं। यह क्षेत्र मथुरा से थोड़ी दूर पर यमुना किनारे तुलसी, कदंव और करील वनों के मध्य फैला हुआ है। ऐसी मान्यता है कि कृष्ण के रूप में विष्णु तथा महाशक्ति ने इस लोक में राधा का रूप धारण किया था। वृंदावन में अनेक पुरातन और नवीन मंदिर तथा मठ हैं।

वृंदावन के स्थल

वृंदावन वास्तव में मंदिरों का नगर है और नगर के प्रत्येक गली कूचे में मंदिरों की भरमार है। इनमें कुछ विशेष मंदिरों का वर्णन निम्न है:

  • श्री रंगजी मंदिर : नगर के एक किनारे पर दक्षिण शैली में निर्मित रंगजी का मंदिर अवस्थित है। इस मंदिर का विशाल परकोटा है, जो 15 फीट ऊंची दीवारों से घिरा है। मंदिर के प्रांगण में श्री रंगजी भगवान के अतिरिक्त अनेक छोटे – बड़े मंदिर पृथक् – पृथक् देवी देवताओं के हैं। मंदिर के समक्ष ही एक कुंड है जिसे ब्रह्मा कुंड कहा जाता है। मंदिर के अंदर एक बारांडे में भगवान के रथ तथा अन्य सामग्री, जो उत्सवों में प्रयुक्त होती हैं, विधिपूर्वक प्रदर्शित है।
  • श्री बांके बिहारी मंदिर : नगर के मध्य में स्थित ये मंदिर अति प्रसिद्ध है और यात्री यहां के दर्शन अवश्य ही करते हैं। मंदिर में भव्य द्वार के अंदर एक बड़ा आंगन है और चारों ओर बारान्डे हैं। आंगन के सामने ही एक कक्ष में बांके बिहारीजी की मूर्ति स्थापित है, जो कभी – कभी कुछ अवसरों पर बाहर भी आ जाती है। उनके दर्शन का समय निश्चित है और इसके मध्य ही दर्शन होते हैं। कुछ – कुछ समय बाद परदा लगा दिया जाता है। फिर हटा लिया जाता है, अत : दर्शन निरंतर नहीं होते हैं। ऐसी मान्यता है कि भक्त को धन की लालसा है तो बिहारी जी की आंखों में झांकें और यदि श्रद्धा भक्ति है तो उनके चरण निहारें। सावन में फूलों , फलों आदि से पूरा प्रांगण इतना सजा होता है कि यात्री देख कर ही मोहित हो जाते हैं। कभी – कभी कोई भक्त अपना धन व्यय करके भी प्रांगण की साज – सज्जा करवाता है। यह साज – सज्जा यात्रियों को भाग्य से ही देखने को मिलती हैं। बारान्डे में दोनों किनारों पर भक्तगण खड़े होकर पुजारियों को चढ़ाने हेतु प्रसाद सामग्री देते हैं। भक्तगण मंदिर प्रांगण में स्थित कार्यालय में दान देकर रसीद प्राप्त कर सकते हैं। यहां विशिष्ट दर्शन का प्रावधान नहीं है। सभी छोटे – बड़े भक्त एक प्रकार से ही दर्शन प्राप्त करते हैं।
  • सेवा कुंज : सेवा कुंज वास्तव में एक चाहरदीवारी से घिरा एक छोटा बगीचा है। इसमें कदंब और करील के वृक्ष भरे पड़े हैं। आश्चर्य का विषय है कि ये सब वृक्ष सुंदर और ऊंचाई में छोटे हैं, जिससे उनके नीचे रमणीय छायादार स्थल बन गए हैं, जहां आज भी श्रीकृष्ण और राधाजी रात्रि में रासलीला करते हैं। इसी कारण रात्रि में इस स्थल से पशु-पक्षी भी पलायन कर जाते हैं और वातावरण एकांतमय हो जाता है। यहां पर रंगमहल नाम से एक छोटा मंदिर है, जिसमें श्री कृष्ण के अनेक चित्र बने हुए हैं। वन के अंदर कुछ छोटी – बड़ी बावड़ियां भी हैं।
  • मदन मोहन मंदिर : एक प्राचीन मंदिर है, जिसमें एक ऊंचा शिखर और पास में कुछ छोटे शिखर वाले अन्य मंदिर हैं। इनमें श्री कृष्ण और अनेक देवी- देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं।
  • कालियादह घाट : यमुना नदी के इसी स्थल पर नंदनंदन ने कालिया नाग को नाथा था।
  • ज्ञान गुदड़ी स्थल: कहा जाता है कि इस स्थान पर उद्धवजी का गोपियों से संवाद हुआ था।
  • कुसुम सरोवर : नगर में एक सुदर सरोवर है, जिसके चारों ओर छोटे – बड़े अनेक मंदिर स्थापित हैं। स्थल दर्शनीय व पूज्यनीय है।
  • दाऊ मंदिर : संकरी गली में स्थित एक छोटा मंदिर, जिसमें दाऊजी की मूर्ति है। यहां पुजारी पूजा के बाद हंसने को कहते हैं और मनोकामना पूर्ण हेतु दान लेते हैं।
  • इस्कान मंदिर : आधुनिक काल के दर्शनीय स्थलों में से सफेद संगमरमर से बना श्री कृष्ण – बलराम मंदिर मुख्य है, जहां विदेशी भक्तों को भी कृष्ण भक्ति में तन्मय होते देखा जा सकता है।

इसके अतिरिक्त अनेक मंदिर हैं, जिनका वर्णन करना संभव नहीं है। यात्री एक छोटा लड़का गाइड के रूप में ले लें, जो सभी दर्शन सरलता से करा देता है। इस प्रकार के गाइड यहां मिल जाते हैं।

परिक्रमाएं

यहां चार प्रकार की परिक्रमाएं होती हैं-

गोवर्धन परिक्रमा

1 – पहली परिक्रमा : गोवर्धन पर्वत दान घाटी से प्रारंभ होकर पूछली का लोटा होती हुई वापस गोवर्धन पहुंच जाती है। यह परिक्रमा 12 किलोमीटर लंबी है। परिक्रमाएं कुछ भक्त लेट कर भी करते हैं, जिसमें और अधिक समय लगता है।

2- दूसरी परिक्रमा : दूसरी परिक्रमा भी गोवर्धन दान घाटी से प्रारंभ होकर राधा कुंड जाकर मानसी गंगा होते हुए पुन : गोवर्धन पर वापस आ जाती है। यह परिक्रमा 10 किलोमीटर लंबी है। परिक्रमाएं कुछ भक्त लेट कर भी करते हैं, जिसमें और अधिक समय लगता है।

3-वृंदावन परिक्रमा

वृंदावन की परिक्रमा पृथक् होती है, जो इस्कान मंदिर से प्रारंभ होकर कृष्ण बलदेव मंदिर जाती है और यहां से गौतम ऋषि आश्रम जाती है। जहां से फिर कालिया घाट होती हुई मदन मोहन मंदिर जाती है। मदन मोहन मंदिर से इमली ताला, फिर श्रृंगार वट, केसरिया घाट, टेकरी रानी मंदिर होती हुई जगन्नाथ मंदिर जाती है जहां से चैतन्य महाप्रभु के मंदिर होते हुए वापस इस्कान मंदिर पहुंच जाती है। इसमें लगभग छ : घंटे लगते हैं और यह परिक्रमा दस किलोमीटर लंबी है।

4- ब्रज परिक्रमा : परिक्रमा पूरे ब्रज क्षेत्र की होती है जिसमें 254 किलोमीटर मार्ग पूर्ण करना होता है और इसमें और अधिक समय लगता है।

यात्रा मार्ग

रेल द्वारा मथुरा जंक्शन पहुंचा जाता है।

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