पुखराज कब व कैसे करें धारण, जाने- गुण, दोष व प्रभाव

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पुखराज का इतिहास अति प्राचीन है। यह एक कीमती रत्न है। इसे गुरु रत्न भी कहा जाता है, अर्थात इसका स्वामी बृहस्पति है। पुखराज हीरा और माणिक्य के बाद सबसे कठोर रत्न माना जाता है, लेकिन साथ ही यह मुलायम भी होता है, इसलिए इसे तराशते हुए बेहद सावधानी बरतनी होती है। इसे भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है। इसे संस्कृत में पुष्पराग, पीत स्फटिक व पीतमणि के नाम से जाना जाता है। उर्दू-फारसी में जर्द याकूत और हिंदी में पुखराज और अंग्रेजी में टोपाज के नाम से जाना जाता है। पुखराज मुख्य रूप से पांच रंगों का होता है।
1- हल्दी के रंग जैसा जर्द
2- केसर के समान केसरिया
3- नीबू के छिलके समान
4- सोने के रंग जैसा
5- सफेद लेकिन पीली झांई लिए हुए।


प्राचीन ज्योतिष से सम्बन्धित शास्त्रों में कहा गया है कि शुद्ध व श्रेष्ठ पुखराज पीली कांति वाला, हाथ में लेने पर वजनी लगने वाला, धब्बों से रहित, पारदर्शी, चिकना, छिद्ररहित, मुलायम, पीले कनेर, चम्पा या अमलतास के फूल के रंग जैसा चमकदार होता है। यह क्षय रोग नाशक और यश-कीर्ति, सुख-वैभव व आयु में वृद्धि करने वाला रत्न है। अगर उत्तम पुखराज को कौड़ी से घिसा जाए तो उसमें अधिक निखार आ जाता है। कई रंगों में मिलने के बावजूद पुखराज आमतौर पर रंगहीन होता है। यानी जल की तरह स्वच्छ। वर्तमान में पीली व श्ोखरी शराब सी आभा वाले पुखराज आमतौर पर प्रचलन में हैं। कभी कभार हल्ले पीले व हल्के हरे पुखराज भी मिल जाते हैं, लेकिन प्राकृतिक रूप से लाल या गुलाबी रंग वाले पुखराज अत्यन्त दुर्लभ माने जाते हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह रत्न एल्यूमीनियम का फ्लूओ सिलिकेट होता है। फलोरीन तत्व से बने थोड़े से रत्नों में पुखराज की गिनती होती है। पुखराज द्बिवर्णिता तीक्ष्ण नहीं होती है। इसे रगड़ने पर बिजली उत्पन्न होती है।

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जानिए, पुखराज की पूष्ठभूमि

भारत में पुखराज मुख्य रूप से उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, ब्रह्मपुत्र के आसपास, हिमालय एवं विन्ध्याचल पर्वत क्ष्ोत्र में मिलते है। रूस व व साइबेरिया में अक्सर नीले रंग के पुखराज ग्रेनाइट की शिलाओं की गुफाओं में मिलते हैं। रोडेशिया मिलने वाले पुखराज आम तौर पर रंगहीन या पीले-नीले रंग के होते है। वह तराशने पर बहुत ही सुंदर दिखते हैं। जापान, मैक्सिको,तस्मानिया, कोलोरेडो, न्यू इंग्लैंड व श्री लंका में अच्छे किस्म के पुखराज मिलते हैं। श्री लंका में मिलने वाले पुखराज पीले, हल्के हरे या रंगहीन होते है। जिन्हें जाल-नीलम कहते है। मान्यता है कि जो पुखराज माणिक्य के साथ मिलते है, वे उत्तम कोटि के होते हैं। आचार्य वाराह मिहिर इस रत्न के बारे में कहते हैं कि जब दैत्यराज बलि के चर्म हिमालय पर गिरे तो वे पुखराज के रूप में परिवर्तित हो गए।

जानिए, पुखराज के गुण क्या हैं
1- शुद्ध पुखराज चिकना होता है।
2- यह चमकदार होता है।
3- यह पानीदार होता है।
4- यह करीब-करीब पारदर्शी होता है।

जानिए, शुद्धता की जांच कैसे करें
1- अगर पुखराज को दूध में 24 घंटे रखने के बाद सकी इसकी चमक क्षीण न पड़े तो उसे शुद्ध मानना चाहिए।
2- सफेद कपड़े में में पुखराज को रखकर धूप में देखने पर कपड़े से पीली झांई सी किरण्ों दिखाई देती है।
3- यदि कोई जहरीला जानवार काट ले तो पुखराज घिसकर लगाने से जहर तुरंत खत्म हो जाता है।

सावधान, ऐसे पुखराज को कभी नहीं धारण करें

दोष पूर्ण पुखराज फायदे के बजाए नुकसान करते हैं, इसलिए इन्हें धारण करने में पूर्ण सावधानी बरतनी चाहिए।
1- जिसमें खड़ी लकीरें तो, यह मित्र व सम्बन्धियों से वैर बढ़ता है।
2- जिस पुखराज का रंग सफेद-दूधिया हो, यह ऐसी स्थितियां पैदा करता है कि धारक को चोट लगे।
3- जिसमें चमक न हो, ऐसा पुखराज शरीर व स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त हानिकारक होता है।
4- ऐसा पुखराज, जिसमें सफेद-सफेद बिंदु हो, यह अशुभ माना जाता है। इसको धारण करने से मृत्यु का कारक बनता है।
5- पन्ना जो दुरंगा हो यानी दो रंगों वाला हो, इसको धारण करने से रोग में वृद्धि होती है और नयी बीमारियां भी लगती हैं।
6- ऐसा पन्ना जो गढ्डा युक्त हो, वह आर्थिक तौर पर हानि पहुंचाता है।
7- पन्ना जिसमें लाल छींटे हो, यह धन वैभव का नाश करने वाला होत है।
8- जाल युक्त पन्ना धारण करने से सन्तान सम्बन्धित तमाम बाधाएं उपस्थित होती हैं।
9- पन्ना जिसमें काला धब्बा हो, यह पशुधन के लिए हानिकारक होता है।

जानिए, पुखराज के उपरत्न कौन से है

पुखराज के मुख्य रूप से पांच उपरत्न हैं।
घिया- यह हल्के पीले रंग का और जरूरत से ज्यादा हल्का होता है। यह अधिकतर ईरान में मिलता है।
2- केसरी- यह केसर के रंग का एक भारी पत्थर होता है। इसमें हल्की चमक होती है। यह श्रीलंका और भारत में गंडक नदी के किनारे मिलता है।
3- सोनेला- यह सफेद रंग क चिकना और चमकदार रत्न होता है। जो कि हिमालय पर्वत के क्ष्ोत्र व तुर्किस्तान में मिलता है।
4- कैरू- इसका रंग पीतल के समान रहता है। यह टूटने पर कपूर की तरह सुगंध देता है। यह अधिकतर चीन और म्यांमार में पाया जाता है।
5- सोनल- इसमें से सफेद व पीली किरण्ों एक साथ निकलती है। यह काबुल और श्रीलंका में पाया जाता है।

जानिए, पुखराज को कौन धारण करने की पात्रता रखता है
यदि बिना जन्मपत्री का अवलोकन व परीक्षण किए पुखराज धारण किया जाए तो अत्यधिक घातक सिद्ध होता है, इसलिए सभी को पुखराज नहीं धारण करना चाहिए।
1- धनु व मीन लग्न वाले जातकों को पुखराज आवश्य पहनना चाहिए।
2- अगर जन्म कुंडली में बृहस्पति पांचवे, छठें, आठवें और बारहवे भाव में स्थित हो तो पुखराज पहनना चाहिए।
3- अगर बृहस्पति मेष, वृष, सिंह, वृश्चिक, तुला, कुम्भ या मकर राशियों में स्थित हो तो पुखराज धारण करना श्रेयस्कर होता है।
4- अगर बृहस्पति मकर राशि में मौजूद हो तो पुखराज तुरन्त पहनना चाहिए।
5- अगर बृहस्पति धनेश होकर नवम भाव में, चतुर्थ्ोश होकर एकादश भाव में, सप्तमेश होकर द्बितीय भाव में, भाग्येश होर चतुर्थ भाव में या राज्येश सप्तमेश होकर पंचम भाव में स्थित हो तो पुखराज पहनना बहुत ही अच्छा होता है।
6- अगर बृहस्पति उत्तम भाव का स्वामी होकर अपनसे भाव से छठे या आठवें स्थान पर स्थित हो तो पुखराज जरूर पहनना चाहिए।
7- अबगर किसी ग्रह की महादशा में बृहस्पति का अंतर चल रहा हो तो पुखराज पहनना श्रेयस्कर होता है।
8- अगर किसी कन्या का विवाह किन्हीं कारणवश न हो रहा हो तो पुखराज पहनने से शीघ्र ही मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
9- पुखराज पहनने से गलत विचारों एवं कार्यों में कमी आती है। शुभ विचार उत्पन्न होते है और चित्त शांत रहता है।

राशि के अनुसार पुखराज का क्या व्यवहार होता है, आइये जानते है-
1- मेष राशि के जातकों को पुखराज पहनना विश्ोष तौर पर लाभकारी होता है। यदि मूंगे के साथ पहना जाए तो अत्यधिक लाभ होता है।
2- वृष लग्न में बृहस्पति अष्टम व एकादश भाव का स्वामी होता है। इसलिए यह इस लग्न वालों के लिए अशुभ माना जाता है। लेकिन वृष लग्न के स्वामी शक्र व बृहस्पति की महादशा में धारण करने से लाभ होता है।
3- मिथुन लग्न में बृहस्पति सप्तम व दशम भाव का स्वामी होने के कारण केंद्राधिपति दोष से दूषित होता है। फिर भी अगर बृहस्पति लग्न, द्बितीय, एकादश या किसी केंद्र त्रिकोण में स्थित हो तो उसकी महादशा में इस रत्न को धारण करने से धन व संतान सुख प्राप्त होता है। लेनिक इसके साथ यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि मिथुन लग्न का बृहस्पति प्रबल मारकेश होता है। यह सांसारिक व आर्थिक सुख देकर मारक बन जाता है।
4- कर्क लग्न में बृहस्पति षष्ठम व नवम त्रिकोण का स्वामी होता है। इसलिए यह इस लग्न के लिए शुभ माना गया है। अगर ऐसे जातक पुखराज के साथ मोती या मूंगे की अंगूठी धारण करें अति लाभकारी होता है।
5- सिंह लग्न में बृहस्पति पंचम त्रिकोण और अष्टम भाव का स्वामी होता है। यह शुभ फलदायक स्थिति है। अगर इस लग्न के जातक सूर्य रत्न माणिक्य के साथ पुखराज धारण करें तो अत्यधिक कल्याणकारी होता है।
6- कन्या लग्न में बृहस्पति चतुर्थ व सप्तम भाव का स्वामी है। इसलिए यह केंद्राधिपति दोष से दूषित होकर प्रबल मारकेश बन जाता है। इसके बावजूद अगर बृहस्पति लग्न, द्बितीय, पांचवें सातवें,नौवें, दसवें या एकादश भाव में स्थित हो तो उसकी महादशा में पुखराज धारण करने से धन, मान-सम्मान, विद्या और संतान सुख आदि प्राप्त होता है। लेनिक यह ध्यान रहे कि पुखराज सुख-सुविधाएं देकर प्रबल मारकेश बन जाता है। इसलिए जातक को इस सम्बन्ध में विश्ोष सतर्कता व सावधानी बरतनी चाहिए।
7- तुला लग्न में बृहस्पति तृतीय व षष्ठम भाव का स्वामी होता है। इसलिए इस लग्न के लिए बृहस्पति अत्यन्त अशुभ माना जाता है। इसके अलावा तुला लग्नके स्वामी शुक्र और बृहस्पति में अत्यधिक शत्रुता है। इसलिए इस लग्न के लिए व्यक्तियों को कभी भी पुखराजा नहीं पहनना चाहिए। यह सकारात्मक नहीं रहता है।
8- वृश्चिक लग्न मे बृहस्पति द्बितीय भाव और पंचम त्रिकोण का स्वामी है। इसलिए इस लग्न के लिए यह ग्रह शुभ माना गया है। क्योंकि वृश्चिक लग्न का स्वामी मंगल है और मंगल व गुरु में अत्यधिक मित्रता है। इस कारण वृश्चिक लग्न वाले जातकों के लिए पुखराज अत्यन्त लाभकारी होता है। बृहस्पति की महादशा में पुखराज धारण करना श्रेयस्कर होता है। यदि पुखराज के साथ मूंगे को भी पहना जाए तो यह अतिकल्याणकारी व शुभ फलदायक सिद्ध होता है।
9- धनु लग्न में बृहस्पति लग्न और चतुर्थ भाव का स्वामी होने के कारण अत्यन्त शुभ ग्रह बन जाता है। इसलिए इस लग्न के जातकों को हमेशा पुखराज धारण करना चाहिए। क्योंकि यह रक्षा कवच का काम करता है। यदि बृहस्पति की महादशा हो तो पुखराजा पहनना परम कल्याणकारी होता है।
11- कुम्भ लग्न में बृहस्पति द्बितीय यानी धन भाव और एकादश यानी लाभ भाव का स्वामी होता है। लेकिन कुम्भ लग्न के स्वामी शनि और बृहस्पति में शत्रुता है,इसलिए कुम्भ लग्न वाले जातकों को पुखराज नहीं पहनना चाहिए।
12- मीन लग्न में बृहस्पति लग्न और दशम भाव का स्वामी होने के कारण इसके लिए शुभ ग्रह है। अगर इस लग्न के व्यक्ति पुखराज धारण करें तो उनकी मनोकामनाएं पूरी होती है। बृहस्पति की महादशा में में पुखराज पहनना अति लाभकारी होता है। अगर मीन लग्न के व्यक्ति पुखराज के साथ मूंगा भी धारण करें तो उन्हें विश्ोष लाभ की प्राप्ति होगी।

जानिए, पुखराज के विकल्प क्या है
जो व्यक्ति पुखराज या उसके उपरत्न नहीं खरीद सकता है। वह इसके विकल्प के तौर पर पीला मोती, पीला जिरकॉन या सुनैला पहन सकते हैं। ध्यान रहे कि पुखराज के साथ नीलम, गोमेद, हीरा या वैदूर्य कभी नहीं पहनना चाहिए।

जानिए, कैसे धारण करना चाहिए पुखराज
पुखराज को सोने की अंगूठी में धारण करना चाहिए। जिसका वजन तीन रत्तीस कम नहीं होना चाहिए। बेहतर तो यह होगा क सात या बारह रत्ती का पुखराज धारण किया जाए। इसे बृहस्पतिवार को ही अंगूठी में जड़वाना चाहिए। अंगूठी को विधिपूर्वक उपासना करने के बाद ऊॅँ बृहस्पतये नम:…………….. मंत्र का 19 हजार बार जप करके किसी शुक्ल पक्ष के गुरुवार को सूर्यास्त से एक घंटा पहले तर्जनी अंगुली में धारण करना चाहिए।

 

जानिए, किन रोगों के उपचार में कारगर है पुखराज
धर्म ग्रंथों के अनुसार पुखराज दीपन, पालन और हल्का होता है। यह शीत

अनुलोमन रसायन और विष के प्रभाव को दूर करने वाला है। उल्टी, मंदाग्नि, कुष्ठ, बवासीर, जलन, दस्त, कफ, वायु विकार और पीलिया में कारगर है। इन बीमारियों के लिए अत्यन्त लाभकारी दवा है। पुखराज को गुलाब जल और केवड़े के जल में 25 दिन तक रखने के बाद इसे कज्जल की तरह पीसकर छाया में सुखा लें। फिश्र उपरोक्त रोगों में इसका इस्तेमाल करें। वैद्य श्वेत पुखराज की भस्म बनाते हैं। इसके सेवन की मात्रा चौथाई रत्ती से आधी तक होती है। खुराक या दवा लेने से पूर्व किसी अच्छे वैद्य से सलाह जरूर लेनी चाहिए।
1- पीलिया और एकांतिक ज्वर में पुखराज शहद के साथ घिसकर दें। निश्चित रूप से लाभ मिलेगा।
2- गुर्दा व तिल्ली आदि रोगों में पुखराज को केवड़े के जल में घोंट कर दें। शीघ्र फायदा होगा।
3- अगर पुखराज को कुछ देर तक मुंह में रखा जाए तो मुंह की दुर्गन्ध दूर हो जाती है। दांत मजबूत होते हैं। मंुह से सुगंध आने लगती है।
4- हड्डी के दर्द, खांसी व बवासीर आदि रोगों में पुखराज की भस्म कारगर होती है।

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