आर्यसमाज में युवाओं को प्रोत्साहन मिलना चाहियेः आशीष दर्शनाचार्य

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ओ३म्
-तपोवन आश्रम का शरदुत्सव सोल्लास आरम्भ-
आर्यसमाज में युवाओं को प्रोत्साहन मिलना चाहियेः आशीष दर्शनाचार्य
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आज वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून का पांच दिवसीय शरदुत्सव सोल्लास आरम्भ हुआ। आज प्रातः आश्रम में मुख्य यज्ञ वेदि सहित चार अन्य यज्ञ वेदियों में अथर्ववेद के मन्त्रों से यज्ञ किया गया। यज्ञ के ब्रह्मा स्वामी मुक्तानन्द सरस्वती, रोजड़ थे। यज्ञ में मन्त्र पाठ गुरुकुल पौंधा के दो ब्रह्मचारियों ने किया। यज्ञ में स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती, आचार्य आशीष दर्शनाचार्य, स्वामी आर्यवेश, ठाकुर विक्रम सिंह, आचार्य शैलेश मुनि सत्यार्थी, डा. आनन्द कुमार – आईपीएस, प्रसिद्ध भजनोपदेशक श्री दिनेश आर्य जी, पं. सूरतराम शर्मा आदि उपस्थित थे। यज्ञ की समाप्ति पर यज्ञ प्रार्थना पं. दिनेश पथिक जी ने सम्पन्न कराई। उन्होंने एक भजन भी सुनाया जिसके बोल थे ‘प्रभु तेरी शरण को तज कर हम कहां जायें, दिए दुःख दर्द दुनियां ने तो दीवाने कहां जायें।’ यज्ञ के ब्रह्मा स्वामी मुक्तानन्द सरस्वती जी ने यज्ञ के तीन अंग देवपूजा, संगतिकरण तथा दान पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हम अग्नि में जो आहुतियां देते हैं, अग्निदेव उन आहुतियों को सूक्ष्म करके वायु देवता को दे देते हैं। वायु देवता उन आहुतियों को जल देवता को वा बादलों को दे देते हैं जिससे वर्षा होती है तथा जिससे अन्न उत्पन्न होकर मनुष्य आदि प्राणियों के शरीर बनते व शक्तियों को प्राप्त होते हैं। स्वामी जी ने यज्ञ को श्रेष्ठतम कर्म की संज्ञा दी। यज्ञ की समाप्ति के बाद उत्सव का आज प्रथम दिवस होने के कारण ध्वजारोहण किया गया। ध्वजारोहण कार्यक्रम में उत्सव में पधारे सभी विद्वान और श्रोतागण उपस्थित हुए। विद्वानों ने इस अवसर पर अपने संक्षिप्त संबोधन दिए। स्वामी मुक्तानन्द जी ने कहा कि हमें यह ध्यान रखना चाहिये कि हम जीवात्मा हैं तथा चेतन पदार्थ है। हम जड़ नहीं है। हमारा शरीर जड़ है और यह ईश्वर की प्राप्ति का साधन है।

ध्वजारोहण के बाद का कार्यक्रम आश्रम के सभागार में हुआ। सभागार में प्रथम प्रस्तुति पं. दिनेश पथिक जी ने देते हुए एक भजन प्रस्तुत किया जिसके बोल थे ‘कौन कहे तेरी महिमा कौन कहे तेरी माया, किसी ने हे परमेश्वर तेरा अन्त कहीं न पाया’। पथिक जी ने दूसरा भजन प्रस्तुत किया जिसके बोल थे ‘मानव तू अगर चाहे दुनिया को दुनिया को हरा देना, बस ईश्वर के दर पर सिर अपना झुका देना।’ पथिक जी ने तीसरा भजन भी सुनाया जिसे हमारे मित्र श्री ललित मोहन पाण्डेय जी नोट नहीं कर सके। इसके बाद ऋषिभक्त डा. आनन्द कुमार जी ने श्रोताओं को सम्बोधित किया। डा. आनन्द कुमार जी ने धार्मिक जगत को आर्यसमाज के योगदान से परिचित कराया। उन्होंने कहा कि आर्यसमाज विद्या का प्रचार तथा अविद्या व उसके परिणामों अज्ञान, अन्धविश्वास तथा पाखण्डों आदि का खण्डन करता है। कार्यक्रम में डा. आनन्द कुमार जी को सम्मानित भी किया गया। इसके बाद ठाकुर विक्रम सिंह जी का सम्बोधन हुआ। उनका परिचय देते हुए ठाकुर साहब की आर्यसमाज की संस्थाओं को दान देने की प्रवृत्ति का उल्लेख कर उनकी सराहना की गई। ठाकुर विक्रम सिंह जी एक किसान परिवार से सम्बन्ध रखते हैं। उन्होंने अपना परिचय स्वयं दिया। श्री विक्रम सिंह जी ने बताया कि वह उपदेशक विद्यालय में पढ़े थे। यह विद्यालय तपोवन आश्रम में खोला गया था। विक्रम सिंह जी ने मेरठ में आरम्भ हुई सन् 1857 की क्रान्ति की भी चर्चा की और इसमें ऋषि दयानन्द की भूमिका पर प्रकाश डाला। स्वामी आदित्यवेश जी ने सभा को सम्बोधित करते हुए हैदराबाद के आर्य सत्याग्रह की चर्चा की। उन्होंने कहा कि आज हिन्दुओं में एकता की आवश्यकता है। एकता होने पर ही हिन्दू समाज उसके सम्मुख चुनौतियों का मुकाबला कर सकेगा।

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आचार्य आशीष दर्शनाचार्य जी ने भी श्रोताओं को सम्बोधित किया। आचार्य जी ने प्रश्नोत्तर शैली में युवक युवतियों से संवाद किया। उन्होंने कहा कि युवाओं को स्वस्थ एवं हृष्ट-पुष्ट होना चाहिये। उन्होंने कहा कि ऋषि दयानन्द ने स्त्री व शूद्रों को वेदाध्ययन का अधिकार दिया है। ऋषि दयानन्द के वेदाध्ययन का अधिकार देने से पूर्व उन्हें वेद पढ़ने का अधिकार नहीं था। उन्होंने कहा कि आर्यसमाज ने ही देश में शिक्षा की उन्नति की है। आचार्य जी ने कहा कि हमें आर्यसमाज के सत्संगों में कम संख्या में श्रोताओं के होने के कारण हतोत्साहित नहीं होना चाहिये। आचार्य जी ने कहा कि हमें वैदिक सिद्धान्तों के आचरण पर ध्यान देना चाहिये व उनका श्रद्धा व विश्वासपूर्वक पालन करना चाहिये। आचार्य जी ने रेल यात्रा में एक पौराणिक आचार्य से अपने संवाद को प्रस्तुत किया। पौराणिक आचार्य जी ने आशीष जी से आर्यसमाज का नाम सुनकर अपने शिष्यों को आर्यसमाज के महनीय कार्यों का उल्लेख किया। आचार्य आशीष जी ने यह भी कहा कि हमें युवा पीढ़ी को प्रोत्साहित करना चाहिये और उन्हें समाज में सम्मान व कार्य करने के अवसर देने चाहिये।

हमें उपर्युक्त वृतान्त हमारे मित्र एवं सहयोगी श्री ललित मोहन पाण्डेय जी ने दूरभाष पर बताया है। इसके लिए हम उनका धन्यवाद करते हैं तथा इस समाचार को अपने सभी मित्रों से साझा कर रहे हैं। ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य

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