इस दिशा में करेंगे पूजा तो जल्द सुनेगा ईश्वर

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वैसे तो पूजा श्रद्धा भाव से कहीं भी की जाए तो फलीभूत होती है, लेकिन हम आज आपको वह दिशा बताने जा रहे हैं, जो पूजा-पाठ के लिए सर्वात्तम मानी जाती है। इस दिशा में पूजा की जाए तो सर्वात्तम फल की प्राप्ति होती है। भक्त पर ईश्वर शीघ्र प्रसन्न होता है। आइये, जानते हैं, वह कौन सी  दिशा है, जिस दिशा में घट या मूर्ति की स्थापना करना सवोत्तम होता है और किसी दिशा में पूजा का जल्द फल प्राप्त होता है।

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वास्तुशास्त्र के अनुसार मानसिक स्पष्टता और प्रज्ञा यानी ज्ञान का दिशा क्षेत्र ईशान कोण अर्थात उत्तर-पूर्व दिशा को पूजा-पाठ की लिए श्रेष्ठतम माना गया है। इस दिशा में पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। इस दिशा में पूजा करने से ईश्वर का मार्गदर्शन प्राप्त होता है। इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि पूजन कक्ष साफ-सुथरा हो। उसकी दीवारें हल्के पीले, गुलाबी, हरे या बैंगनी रंग की होना श्रेयस्कर होता है।

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ये रंग साधक की आध्यात्मिक उर्जा को बढ़ाते हैं। काले, नीले या भूरे जैसे तामसिक रंगों का प्रयोग पूजा कक्ष की दीवारों पर नहीं करना चाहिए। वास्तु के अनुसार ईशान कोण अर्थात उत्तर-पूर्व में सर्वाधिक सकारात्मक उर्जा रहती है, इसलिए देवी पूजा करते समय प्रतिमा या कलश का स्थापना इसी दिशा में करनी चाहिए।

हालांकि देवी पूजन के लिए देवी मां का क्षेत्र दक्षिण या दक्षिण पूर्व माना गया है, इसलिए देवी पूजन में इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पूजा के समय अराधक का मुख दक्षिण या पूर्व में रहे। शक्ति और समृद्धि की देवी पूजा-अनुष्ठान के दौरान मुख्य द्बार पर आम या अशोक के पत्ते लगाने चाहिए। इससे घर में नकारात्मक शक्तियों का प्रवेश नहीं होता है।

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