रुद्राक्ष का शोधन- धारण करने की विधि और क्या है निषेध

3
2007
rudraaksh ka shodhan- dhaaran karane kee vidhi aur kya hai nishedh

रुद्राक्ष का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। रुद्राक्ष धारण करने से जीव को विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यह भगवान भोलेनाथ को परम प्रिय है, जो भी जीव रुद्राक्ष को धारण करना है और मन-वचन व कर्म से शुद्ध धर्मानुकूल आचरण करता है। उस पर भगवान शिव की विशेष कृपा होती है। रुद्राक्ष की महिमा गान हमारे सनातन धर्म के धर्म शास्त्रों में किया गया है।

रुद्राक्ष शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, रुद्र और अक्ष। रुद्र का अर्थ है भगवान भोलेनाथ शिव और अक्ष का अर्थ होता है आंख। इसका आशय हुआ भगवान शिव की आंख से प्रकट हुआ पदार्थ। विशेष बात यह है कि रुद्राक्ष को धारण करने वाले व्यक्ति को सभी तरह के तामसिक पदार्थों ( जैसे- माँस, अण्डा , शराब आदि नशीले पदार्थ गुटखा तम्बाकू इत्यादि ) का पूरी तरह से परित्याग कर देना चाहिये, तभी आपको रुद्राक्ष धारण करने का पूरा लाभ मिल पायेगा।

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जानकारी के लिये बता दें कि- भगवान शिवशंकर किसी भी प्रकार का कोई नशा नहीं करते हैं और वह तो केवल ‘ भक्ति के नशे ‘ ( सम्पूर्ण समाधि ) में ही मान रहते हैं । पुरातन काल में पाताल लोक में मय नामक एक बलशाली असुर का राज्य था।

वह अजेय था। परम शक्तिशाली था। एक समय उसके मन में इच्छा हुई कि पाताल लोक से निकल कर दूसरों लोकों पर विजय प्राप्त की जाए। यह विचार कर उसने घोर तप शुरू किया। उसने वर प्राप्त किया कि उसकी मृत्यु भगवान शिव के हाथों ही हो, किसी अन्य प्रकार से उसकी मृत्यु न हो। वरदान प्राप्त करने के बाद उसने धरती और स्वर्ग लोक पर आक्रमण किया और विजयश्री प्राप्त की। इसके बाद उसने अपने लिए तीन अगल-अलग पुरों यानी दुर्ग का निर्माण कराया। इसमें से एक पुर स्वर्ण, दूसरा रजत और तीसरा लौहे का था। इस तरह से तीन पुरों का निर्माण कराने के कारण व त्रिपुरासुर कहलाया। इसके उपरांत त्रिपुरासुर ने तीनों लोकों में हाहाकार मचाना शुरू कर दिया। शक्ति के मद में वह धर्म विरूद्ध आचरण करने लगा। देवताओं को स्वर्ग से निस्कासित कर दिया। सभी देवता व्यथित हो गए और भगवान विष्णु व ब्रह्मा के साथ भगवान शिव के पास पहुंचे। देवताओं ने भगवान आशुतोष से प्रार्थना की और अपनी व्यथा सुनाई। देवताओं की प्रार्थना सुनकर भगवान शंकर ने रौद्र रूप धारण कर त्रिपुरासुर से युद्ध किया और उसका वध किया। इसके साथ ही भगवान शंकर ने उसके बनाए गए तीनों पुरों को भी नष्ट कर दिया, उन अभेद्य पुरों में आश्रय पाकर अन्य असुर फिर से बलवान न बन सकें। इस तरह से त्रिपुरासुर का वध करके और उसके दुर्गों को नष्ट करके भगवान शिव हिमालय के शिखर पर थकान मिटाने लगे। थकान दूर होने पर वह अत्यन्त हर्षित हुए और उनके नेत्रों से जल की कुछ बूंदे छलकी। वह बूंदे पर्वत शिखर पर गिर पड़ी और उससे अंकुर निकल गए। फिर वृक्ष बनें। उनमें फल निकले, वही रुद्राक्ष कहलाए।

रुद्राक्ष का शोधन और धारण करने की विधि

‘रुद्राक्ष’ या ‘रुद्राक्ष की माला धारण करने से पहले उसका शोधन या शुद्धिकरण अवश्य करना चाहिये । आप किसी भी शुभ दिन या किसी भी सोमवार को यह विधि अपनायें, प्रात: काल स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ वस्त्र पहन लें । फिर ‘ रुद्राक्ष ‘ या ‘ रुद्राक्ष की माला ‘ को गंगाजल से धोयें, फिर उसे कच्चे दूध से धोयें , फिर अन्त में पुनः गंगाजल से धोकर किसी साफ कपड़े से पौंछ लें। यदि गंगाजल नहीं मिल पाये तो उसके स्थान पर साफ – ताजा पानी का प्रयोग कर सकते हैं। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान अपने मन में ‘ॐ नमः शिवाय ‘ भन का जाप करते रहना चाहिये। इसके बाद में ‘ रुद्राक्ष ‘ या ‘ रुद्राक्ष की माला ‘ को माला ‘ के ऊपर जरा – सा सफेद चन्दन लगा दें और उसे अपने घर के पूजा – स्थान पर रख दें। फिर धूप – दीप देकर उस पर कोई फूल अर्पित कर दें । इसके बाद में निम्न , मंत्र का पाठ कीजिये………

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ॥
ॐ हौं अघोरे घोरे हुँ घोरतरे हुँ।
ॐ हीं श्री सर्वतः सवड़िग नमस्ते रुद्ररूपे हुम ॥
इसके बाद में आप उसे प्रणाम करें । फिर आपने जितने मुख का रुद्राक्ष लिया है, उसी से सम्बंधित मंत्र का जप करें, जिसका उल्लेख नीचे किया गया है। उसके अनुसार देवता हैं ।
एकमुखी रुद्राक्ष के देवता शिव हैं और मंत्र- ॐ ह्रीं नमः
दोमुखी  रुद्राक्ष के देवता  अर्द्धनारीश्वर हैं  और मंत्र-  ॐ नमः
तीनमुखी रुद्राक्ष के देवता त्रिदेव हैं  और मंत्र- ॐ क्लीं नमः
चारमुखी रुद्राक्ष के देवता ब्रह्मा हैं और मंत्र- ॐ ह्रीं नमः
पांचमुखी रुद्राक्ष के देवता कालाग्नि / शिव हैं और मंत्र- ॐ ह्रीं नमः
छहमुखी रुद्राक्ष के देवता कार्तिकेय हैं और मंत्र- ॐ ह्रीं हुँ नमः
सातमुखी रुद्राक्ष के देवता सप्तऋषि हैं और मंत्र-  ॐ हुँ नमः
आठमुखी रुद्राक्ष के देवता गणेश हैं और मंत्र- ॐ हुँ नमः
नौमुखी रुद्राक्ष के देवता दुर्गा हैं और मंत्र- ॐ ह्रीं हुँ नमः
दसमुखी रुद्राक्ष के देवता विष्णु हैं और मंत्र- ॐ ह्रीं नमः
ग्यारहमुखी रुद्राक्ष के देवता हनुमान हैं और मंत्र- ॐ ह्रीं हुँ नमः
बारहमुखी रुद्राक्ष के देवता 12 ज्योतिर्लिंग हैं और मंत्र- ॐ क्रौं क्षौं रौं नमः
तेरहमुखी रुद्राक्ष के देवता इंद्र हैं और मंत्र- ॐ ह्रीं नमः
चौदहमुखी रुद्राक्ष के देवता शिवजी हैं और मंत्र- ॐ नमः
मन्त्र का चयन करके उसी मन्त्र का 108 बार जाप करें। फिर भगवान शिवजी को प्रणाम करके उनसे प्रार्थना करें कि- ‘ हे भगवान भोलेनाथ आप इस रुद्राक्ष/ रुद्राक्ष की माला में निवास कीजिये इसे अपने दिव्य प्रभाव से शक्तिशाली बनाइये । मैं इस रुद्राक्ष माला को धारण करके सदैव आपका कृपा – पात्र बना रहूँ। आप सदैव मेरी रक्षा कीजिए और मेरे कार्यों को सफल बनाईये ।’
इस प्रकार से पूजा पाठ करने के बाद में आप उस ‘ रुद्राक्ष ‘ या ‘ रुद्राक्ष की माला ‘ को धारण कर सकते हैं । अगर  रुद्राक्ष की माला धारण नहीं करनी हो और रुद्राक्ष ‘ के केवल एक या एक से अधिक दाने ही धारण करने हों तो उनको किस प्रकार से धारण करना चाहिये,  इसका जवाब यह है कि- रुद्राक्ष ‘ के दाने/ दानों को लाल रंग के मजबूत धागे में पिरोकर आप अपने गले में धारण कर सकते हैं। अगर आपको ‘ रुद्राक्ष की माला ‘ धारण नहीं करनी है और उसका प्रयोग केवल मन्त्र जप ‘ के लिये ही करना है- तब भी उसको उपरोक्त विधि से अवश्य ही शोधित कर लेना चाहिये । फिर उस माला को मन्त्र – जप के लिये कपड़े की थैली ( गोमुखी ) में रखना चाहिये । अगर आपको ‘ रुद्राक्ष की माला धारण नहीं करनी है और उसके द्वारा किसी भी प्रकार का ‘ मन्त्र – जप ‘ नहीं करना है तो भी आप ‘ रुद्राक्ष ‘ या रुद्राक्ष की माला ‘ को खरीदकर उसे उपरोक्त विधि से शोधित कर लें । फिर उसे लाल रंग के किसी साफ कपड़े में लपेटकर अपने घर या दुकान के पूजाघर में रख दें । फिर उसकी प्रतिदिन पूजा करते रहें । ऐसा करने से भी अत्यंत लाभ प्राप्त होता है ।

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