शेषनाग के अवतार बलराम जी ने यदुवंश के उपसंहार के बाद यहाँ किया अपनी लीला का संवरण

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श्रीमद् भागवत की कथाएं शेषावतार बलराम जी के शौर्य की साक्षी है। यदुवंश के उपसंहार के बाद उन्होंने समुद्र तट पर आसन लगाकर अपनी लीला का संवरण किया। बलराम जी साक्षात शेषनाग के अवतार थे।

बलभद्र के नाम से भी जाना जाता है

जब कंस ने देवकी वासुदेव के छह पुत्रों को मार डाला, राम देवकी के गर्भ में भगवान बलराम पधारे। योग माया ने उन्हें आकर्षित करके नंद बाबा के यहां निवास कर रही श्री रोहिणी जी के गर्भ में पहुंचा दिया, इसलिए उनका एक नाम संकर्षण भी हुआ। बलवान ओं में बलवान और श्रेष्ठ होने के कारण उन्हें बलभद्र के नाम से भी जाना जाता है। श्री कृष्ण बलराम परस्पर अभिन्न है। उन की लीलाएं भी एक दूसरे से संयुक्त हैं। श्रीमद्भागवत में बहुत कम लीलाए ऐसी हैं, जहां भगवान श्री कृष्ण के साथ उनके अग्रज नहीं रहे, अग्रज यानी बलराम जी। गोकुल और वृंदावन में लीलाओं में प्रायः श्री कृष्ण बलराम साथ साथ ही रहे। एक दिन जब बलराम और श्रीकृष्ण ग्वाल बालों के साथ वन में गाय चरा रहे थे, तभी ग्वाल बालों के बीच में प्रलंब नाम का एक असुर आया। उसकी इच्छा श्री कृष्ण और बलराम का अपहरण करने की थी।

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उसने भगवान श्री कृष्ण और बलराम से मित्रता का प्रस्ताव रखा। भगवान ने उसे पहचान तो लिया, लेकिन फिर भी उसकी मित्रता को स्वीकार कर लिया। और फिर वह असुर भी खेलने लगा। प्रलंबासुर ने देखा कि श्रीकृष्ण को हराना कठिन है, इसलिए वह बलराम जी को अपनी पीठ पर बैठाकर भाग चला। उन्होंने देखा कि यह मुझे आकाश मार्ग से लिए जा रहा है। फिर उन्होंने उसके सिर पर एक घूंसा कसकर मारा। बलराम जी के वज्र के समान प्रहार से प्रलंबा सुर का सिर चूर-चूर हो गया।

वह अत्यंत भयंकर शब्द करते हुए पृथ्वी पर आ गया। असुर की मृत्यु से देवता प्रसन्न हो गए और बलराम जी पर पुष्पों की वर्षा करने लगे। यह घटना बलराम जी के अतुलित शौर्य की साक्षी बनी।बलराम जी बचपन से ही अत्यंत गंभीर और शांत स्वभाव के थे। भगवान श्रीकृष्ण उनका विशेष सम्मान करते थे। बलराम जी कृष्ण जी की इच्छा का सदैव ध्यान रखते थे। ब्रज लीला में शंख चूर्ण का वध करके श्री कृष्ण ने उसका शिरोंरत्न बलराम जी को उपहार स्वरूप दिया था। कंस की मल्लशाला में भगवान श्री कृष्ण ने चानुर को पछाड़ा तो मुष्टिक बलराम जी के मुष्टि के प्रहार से मारा गया। जरासंघ को बलराम जी ही अपने योग्य प्रतिद्बंदी जान पड़े थे। अगर भगवान श्री कृष्ण ने मना नहीं किया होता तो बलराम जी प्रथम आक्रमण में ही उसे यमलोक भेज देते। बलराम जी का विवाह रेवती से हुआ था। वह सत्ययुग काल की कन्या थीं और आकार में द्बापर के बलराम जी से काफी लम्बी थी। छोटे भाई श्री कृष्ण को परिहास करते देखकर उन्होंने रेवती जी को अपने अनुरुप बना लिया था। रुक्मिणी हरण मे शिशुपाल और उसके साथी बलराम से पराजित हुए।

भगवान श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब ने जब दुर्योधन की कन्या लक्ष्मणा का हरण किया तो छह महारथियों ने एक साथ मिलकर उन्हें बंदी बना लिया। उस समय बलराम जी अकेले ही हस्तिनापुर पहुंच गए। अगर दुर्योंधन लक्ष्मणा का विवाह साम्ब से विवाह करने को तैयार नहीं होता तो बलराम जी पूरे हस्तिनापुर को अपने हल से खींचकर यमुना में डुबो देते।

नैमिष क्षेत्र मे बलराम जी ने इल्व राक्षस के पुत्र बल्वल को मार कर ऋषियों की रक्षा की थी। महाभारत के युद्ध के में बलराम जी तटस्थ होकर तीर्थयात्रा के लिए चले गए।

 

 

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