वेदज्ञान
परमात्मा के आंनद रस का समूह उच्च व विशाल है। सर्वव्यापक परमात्मा के सर्वत्र सुलभ उस आनंद रस को भूमि पर स्थित मनुष्य (योगाभ्यास व वेद ज्ञान आदि साधनों को प्राप्त होकर) ग्रहण करता है। परमात्मा के आनंद रस से मनुष्य तीव्र कल्याण और महान यश को प्राप्त होता है।
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जैसे ऊपर अंतरिक्ष में विद्यमान बादल के रस को अथवा चंद्रमा की चांदनी के रस को ग्रहण कर भूमि सस्यश्यामला हो जाती है, वैसे ही उच्च आनंदमय कोश में अभिषुत होते हुवे ब्रह्मानंद-रस का पान कर सामान्य मनुष्य कृतार्थ वा आनंद से परिपूर्ण हो जाता है।
प्रस्तुतकर्ता मनमोहन आर्य।