भीमशंकर द्वादश ज्योतिर्लिंग: दर्शन- पूजा- अर्चना करने से होता है कल्याण

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भारत में प्रकट हुए भगवान शंकर के बारह ज्योतिर्लिंगों में भीमशंकर ज्योतिलिंग का छठवां स्थान है। श्रीभीमेश्वर ज्योतिर्लिंग गोवाहटी के पास ब्रह्मपुत्र पहाड़ी पर अवस्थित है। इस ज्योतिर्लिंग की महिमा शास्त्रों में अमोघ बतायी गई है। इनके दर्शन-पूजन का फल कभी निष्फल नहीं जाता है। महादेव का यह स्वरूप भक्त की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करता है।

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इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना के विषय में शिवपुराण में विस्तृत रूप से कथा कही गई है। कथा के अनुसार प्राचीनकाल में भीम नामक एक महाप्रतापी राक्षस था। वह कामरूप प्रदेश में अपनी मां के साथ रहता था। वह महाबली राक्षस, राक्षसराज रावण के छोटे भाई कुम्भकर्ण का पुत्र था, लेकिन उसने अपने पिता कुम्भकर्ण को कभी भी नहीं देखा था।

उसके होश में आने से पूर्व ही भगवान राम ने कुम्भकर्ण का वध कर दिया था। जब वह युवा हुआ तो उसकी माता ने सारा वृत्तान्त उसे बताया। भगवान विष्णु के अवतार श्री राम के द्बारा उसके पिता के वध की बात सुनकर वह बहुत दुखी हुआ। इससे वह कुद्ध हो गया और भगवान श्री हरि के वध का उपाय सोचने लगा। उसने अभिष्ट वर की प्राप्ति के लिए एक हजार वर्ष तक कठोर तपस्या की तो उसके तप से प्रसन्न होकर परमपिता ब्रह्मा जी ने उसे लोक विजय होने का वर प्रदान किया। वर पाकर वह राक्षस प्राणियों को त्रास देने लगा। उसने इंद्रदेव और अन्य देवताओं को स्वर्ग से बाहर रहने को विवश कर दिया।

पूरे देवलोक पर भीम का अधिकार हो गया और उसने देवताओं की रक्षा के लिए आए श्री हरि को भी पराजित किया। इसके बाद असुर भीम ने कामरूप के परम शिवभक्त राजा सुदक्षिण पर आक्रमण किया और उन्हें मंत्रियों व अनुचरों के साथ बंदी बना लिया। इसके पश्चात उसने समस्त लोकों पर अपना अधिकार प्राप्त कर लिया। उसके अत्याचारों के चलते वेद, पुराण व स्मृतियों का लोप हो गया। वह किसी को कोई भी धार्मिक कृत्य नहीं करने देता था। इस तरह से दान, यज्ञ, तप , स्वाध्याय आदि सभी अच्छे कार्य प्रतिबंधित कर दिए गए। उसके अत्याचार से घबराकर ऋषि-मुनि भगवान शिव की शरण मंे आ गए। उनकी प्रार्थना सुनकर भगवान शंकर ने कहा कि मैं शीघ्र ही तुम्हारे कष्टों को दूर करूंगा। उस अत्याचारी भीम का संहार करूंगा।

उसने मेरे प्रिय भक्त कामरूप नरेश सुदक्षिण को भी बंदी बना लिया है । उसे अब जीवित रहने का अधिकार नहीं है। भगवान शिव से यह आश्वासन पाकर ऋषि-मुनि वापस लौट गए। इधर बंदीगृह में राजा सुदक्षिण अपने सामने पार्थिव शिवलिंग रखकर पूजन-अर्चन में लीन थे । उन्हें पूजन-अर्चन करते देखकर असुर भीम ने पार्थिव शिवलिंग पर प्रहार किया, लेकिन तलवार का स्पर्श लिंग से नहीं हो पाया था कि भगवान शंकर वहां प्रकट हो गए और हुंकारमात्र से असुर को वहीं जलाकर भस्म कर दिया। भगवान शंकर की यह अद्भुत लीला देखकर ऋषियों ने वहां उनकी अर्चना की। देवता स्तुतिगान करने लगे। उन्होंने भगवान शिव से प्रार्थना की कि हे भोलेनाथ, आप जगत के कल्याण के लिए यहां निवास करें। यह क्षेत्र शास्त्रों में अपवित्र बताया गया है, आपके निवास से यह परम पुण्य पवित्र क्षेत्र बन जाएगा। भगवान शिव ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की और भगवान भोलनाथ भीमेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में अवस्थित हो गए।

  • शिवपुराण के अनुसार संक्षेप में तीर्थ भीमशंकर का मूल स्थल असम के कामरूप में है, जो गुवाहाटी के पास है। प्राचीन कथा है कि कुंभकर्ण का बेटा भीम ब्रह्मा के वर से बलशाली होकर इंद्र को भी हराकर कामरूप के राजा सुदक्षिण को कैद करने में समर्थ हो गया। सुदक्षिण शिवभक्त थे। वे कारागार में पार्थिवलिंग पूजने लगे। जब भीम ने उस लिंग को तोड़ना चाहा, तब साक्षात शिव प्रकट हुए और ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हुए। ऐसा भी उल्लेख है कि भीम नामक दैत्य ने वहां आतंक फैला रखा था तथा लोगों को पूजा – पाठ से वंचित रखता था। उस दानव ने शंकर की पूजा में लीन वहां के नरेश कामरूपेश्वर का वध करने के लिए तलवार से वार किया जो कि शिवलिंग पर जा गिरा। फलस्वरूप स्वयं महादेव प्रकट हुए और भीम का संहार करके लोगों का बचाया। तब देवता और ऋषिगण ने शिव से वहीं वास करने का निवेदन किया, जिसे शिव स्वीकार कर लिया।
  • इस स्थल का नामकरण भीमशंकर होने को एक और कथा भी मिलती है। स्थानीय लोग कहते हैं, भगवान शंकर त्रिपुरासुर के वध के पश्चात् इस स्थान पर विश्राम कर रहे थे। उस समय वहां अवध के सूर्यवंशी राजा भीम भी तपस्या कर रहे थे। उनके तप से प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें भी दर्शन दिए तभी से इस ज्योतिर्लिंग को भीमशंकर कहा जाता है और तभी से यह स्थल भीमशंकर तीर्थ बना है।

ज्योतिर्लिंग के संबंध में अन्य मत

इसके आलावा इस ज्योतिर्लिंग के संबंध में अन्य मत हैं। कुछ के अनुसार ये मुंबई से पूरब और पूना से उत्तर दिशा में भीमा नदी के तट पर अवस्थित है। कुछ लोग तो उत्तराखंड प्रदेश के नैनीताल जिले में उज्जनक स्थान पर स्थित भगवान शिव के विशाल मंदिर को भीमशंकर ज्योतिर्लिंग कहते हैं। इन सब मतभेदों के पश्चात् भी गोवाहटी के पास ब्रह्मपुत्र पहाड़ी पर अवस्थित ज्योतिर्लिंग सर्वमान्य है। हालाकि, पुराणों में भीमशंकर के उल्लेख के साथ ही डाकिनी स्थल का संदर्भ मिलता है, जिसके आधार पर नैनीताल के पास के क्षेत्र डाकिनी में स्थित भीमशंकर मंदिर को भी मान्यता मिली है। कथा प्रचलित है कि दानवी देवी हिडिंबा यहीं की थी, जिससे बलशाली पांडव भीमसेन ने विवाह किया था। फिर शिव की पूजा – अर्चना की थी। तभी से विशाल ज्योतिर्लिंग वाला स्थान भीमशंकर तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध है। यहां शिवगंगा नामक सुंदर सरोवर और भैरवनाथ का मंदिर भी है। महाशिवरात्रि पर्व के अवसर पर यहां बड़ा भारी मेला लगता है। जिनके अनुसार ये मुंबई से पूरब और पूना से उत्तर दिशा में भीमा नदी के तट पर अवस्थित है। यहाँ एक अन्य कथा है कि त्रिपुरासुर नामक दानव का वध करने के पश्चात् महादेव यहां बैठे थे, तभी वहा के राजा भीम ने प्रार्थना की थी कि इस क्षेत्र को संपन्न बनाने के लिए वे जलधारा प्रदान करें। प्रसन्न होकर भगवान शिव ने अपने पसीने की एक बूंद गिरा दी, जो भीमा नदी के रूप में प्रवाहित हुई।मुंबई से पूरब और पूना से उत्तर दिशा में भीमा नदी के तट पर अवस्थित है।

शिव पुराण में उल्लेख किया गया है कि भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग कामरूप (गुवाहाटी, असम) में स्थित है |

 

“श्रुत्वा पापं हरेत सर्वं नात्र कार्य विचारणा | अतः परं प्रवक्षामि माहात्य्मं भीमाशंकरे ||
कामरुपेश्वरे देशे शंकरो लोकमयया | अवतीर्ण: स्वयं साक्षात कल्याणगुण भाजन: ||”

 

प्रभु भीमाशंकर की उत्पत्ति त्रेता युग के मध्य भाग में हुआ था।उस समय राजर्षि दशानन मायापुर (मयोंग) के शासक थे। उनका जन्म​ दशानन के भाई  कुंभकर्ण के वीर्य से कर्कटी नामक महिला की कोख से हुआ था |

 

तीर्थस्थल का महत्व

यह कल्याणकारी ज्योतिर्लिंग है, जिसके दर्शन व पूजा अर्चना करने से मानव कल्याण होता है।

यात्रा मार्ग

सड़क मार्ग असाम के गुहावटी से सबसे अच्छा व सुविधाजन है । यहा से दूरी लगभग 15 से 20 किलोमीटर है।

हैं।

 

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