वेद के प्रेरक विचार

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वेद के प्रेरक विचार

अनेक रोगों की नाशक सोम ओषधि पर्वतों के शीतल वातावरण में उत्पन्न होती है। इस ओषधि को जल के साथ मिलाकर व निचोड़ कर इसका सेवन किया जाता है। इसी प्रकार पर्वत के समान उन्नत परमेश्वर में स्थित और योग ध्यान साधना, शुभ कर्म व आचरणों से ईश्वर के आनंद रस को ग्रहण व धारण किया जाता है।

ईश्वर की उपासना से ईश्वर का आनंद-रस भक्त के हृदय व आत्मा में क्षरित होता है। आनंद-रसों के आगार हे परमात्मा! तुम मेरे हृदय में में निरंतर क्षरित होकर मुझे सुखी व आनंद विभोर कर दो। मेरे सभी क्लेश नष्ट हो जाएं और मैं आपका सच्चा योग्य उपासक बन जाऊं।

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– प्रस्तुतकर्ता मनमोहन आर्य।

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