कौन सी तिथि में किया गया कार्य दिलाएगा आपको सफलता और क्या न करें 

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मय बलवान होता है, यदि सही समय पर कार्य किया जाता है, तो उसके फलीभूत होने की सम्भवाना आधिक होती है। इसलिए मनुष्य की कोशिश होनी चाहिए की कि उचित मुहूर्त में कार्य किए या आरम्भ किए जाए।
इससे उनके सफलता की संभावना अधिक होती है। भगवान श्री राम, जो स्वयं भगवान विष्णु के अवतार थ्ो, उचित घड़ी को ध्यान में रखकर असुरराज का वध किया था। वैसे तो श्री राम इतने सामर्थवान थ्ो कि उनके लिए कुछ भी असंभव नहीं था, फिर भी लौकिकता का ध्यान में रखकर उन्होंने ऐसा किया था। 
जाने, प्रतिप्रदा तिथि में क्या करें?और क्या न करें?
प्रतिप्रदा की तिथि में गृह निर्माण, गृह प्रवेश, वास्तु कर्म, विवाह, यात्रा, प्रतिष्ठा, शांतिक, पौष्टिक कार्य आदि सभी मंगल कार्य किए जाते हैं। इससे उनके सफलता की सम्भावना अधिक होती है और मनुष्य को मनोकूल फल प्राप्त होता है। चूंकि कृष्ण पक्ष की प्रतिप्रदा में चंद्रमा बलि माना जाता है और शुक्ल पक्ष की प्रतिप्रदा में चंद्रमा निर्बल माना जाता है, इसलिए शुक्ल पक्ष की प्रतिप्रदा में गृह निर्माण, गृह प्रवेश, वास्तुकर्म, विवाह, यात्रा, प्रतिष्ठा, शांतिक व पौष्टिक कर्म आदि नहीं करने चाहिए। ऐसा शास्त्रों में विधान है। इसलिए मनुष्य को शास्त्रों को मानते हुए कर्मो का निर्धारण श्रेयस्कर होता है। 
जाने, द्बितीया तिथि में क्या करें? और क्या न करें
विवाह मुहूर्त, यात्रा, आभूषण खरीदना, देश या राज्य संबंधी वास्तुकर्म, शिलान्यास, उपनयन कार्य करना शुभ होता है। इन कार्यो को करने के लिए यह उचित मुहूर्त होता है, लेकिन इस तिथि में तेल लगाना पूरी तरह से वर्जित मना गया है। 
जाने, तृतीया तिथि में क्या करें? और क्या न करें?
तृतीय तिथि में शिल्पकला, शिल्प सम्बन्धी कर्मो में, सीमन्तोनयन, चूणाकर्म, अन्न प्राशन, गृह प्रवेश, विवाह, राज्य सम्बन्धी कार्य, उपनयन आदि शुभ कार्यो को किया जा सकता है। इन कार्यो को करने के लिए यह तिथि उचित मानी गई है। गृह प्रवेश विश्ोषकर इस तिथि में श्रेयस्कर माना जाता है। 
जाने, चतुर्थी तिथि में क्या करें? और क्या न करें?
क्रूर कर्मों के लिए इस तिथि को विश्ोष फलदायी माना गया है, इसलिए इस तिथि में फल को ध्यान में रखकर कर्म किए जाए तो श्रेयस्कर होता है। सभी तरह के बिजली के कार्य, शत्रुओं को रास्ते से हटाने का कार्य, अग्नि सम्बन्धी कार्य, शस्त्रों के प्रयोग के लिए यह तिथि अच्छी मानी गई है। क्रूर प्रवृत्ति के कार्यो के लिए यह तिथि अच्छी मानी गई है। 
जाने, ंपंचमी तिथि में क्या करें? और क्या न करें?
पंचमी तिथि सभी तरह के कार्यों के लिए सही मानी गई लेकिन इस तिथि को ऋण देना नहीं चाहिए। ऋण देने से इसका प्रतिकूल प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। 
 
जाने, षष्ठी तिथि में क्या करें? और क्या न करें?
षष्ठी तिथि में युद्ध में उपयोग में लाए जाने वाले शिल्पकार्यो को आरम्भ करना, वास्तुकर्म, गृह को आरम्भ, नवीन वस्त्र पहनने जैसे शुभ कार्य किए जा सकते हैं। इस तिथि में तैलाभ्यंग, अभ्यंग, पितृकर्म, दातुन, आवागमन, काष्ठकर्म आदि कार्य करना वर्जित है। तिथि शिल्पकर्म के लिए श्रेयस्कर होती है। 
 
जाने, सप्तमी तिथि में क्या करें? और क्या न करें?
विवाह मुहूर्त, संगीत सम्बन्धित कार्य, आभूषणों का निर्माण और नवीन आभूषणों को धारण किया जा सकता है। यात्रा, वधु प्रवेश, गृह प्रवेश, राज्य सम्बन्धित कार्य, वास्तुकर्म, चूणाकर्म, अन्नप्राशन, उपनयन आदि शुभ कार्य किए जा सकते हैं। यात्रा के लिए यह तिथि अच्छी मानी गई है। इस तिथि में यात्रा के सफल होने की सम्भावना अधिक होती है। 
जाने, अष्टमी तिथि में क्या करें? और क्या न करें?
इस तिथि में लेखन कार्य, युद्ध में उपयोग होने वाले कार्य, वास्तु कार्य, शिल्प सम्बन्धित कार्य, आमोद-प्रमोद से जुड़े कार्य, अस्त्र-शस्त्र धारण करने वाले कार्य इस तिथि में किए जा सकते हैं। लेखन कार्य के लिए यह तिथि उपयुक्त मानी गई है, इसलिए लेखन कर्म इस तिथि में करें तो बेहतर रहेंगा। 
जाने, नवमी तिथि में क्या करें? और क्या न करें?
नवमी तिथि को शिकार का शुरू करना, झगड़ा करना, जुआ ख्ोलना, शस्त्र निर्माण करना, मदिरापान, निर्माण कार्य व अन्य सभी प्रकार के क्रूर कर्म इस तिथि में किए जाते हैं। क्रूर कर्म की दृष्टि से यह तिथि उत्तम मानी गई है। इस तिथि में क्रूर कर्म करने का फल भी प्राप्त होता है। 
जाने, दशमी तिथि में क्या करें? और क्या न करें?
दशमी तिथि में राजकार्य या वर्तमान सरकार सम्बन्धित कार्य शुरू किए जा सकते हैं। हाथी, घोड़ों से सम्बन्धित कार्य, विवाह, वस्त्र, आभूषण, यात्रा आदि सम्बन्धित कार्य आरम्भ किए जा सकते हैं। गृह प्रवेश, वधु प्रवेश, शिल्प, अन्नप्राशन, चूणाकर्म, उपनयन आदि संस्कार आदि इस तिथि में किए जा सकते हैं। यह सभी कर्म यदि इस तिथि में किए जाए या आरम्भ किए जाए तो उनके सफलता की सम्भावना होती है। मनोरथ प्राप्ति होती है। 
जाने, एकादशी तिथि में क्या करें? और क्या न करें? 
एकादशी तिथि में व्रत, सभी तरह के धार्मिक कार्य, देवताओं के उत्सव, सभी तरह के उद्यापन, युद्ध से जुड़े कार्य, वास्तुकर्म, यज्ञोपवीत, गृह कार्य आरम्भ करना, यात्रा सम्बन्धित कार्य शुरू किए जा सकते हैं। 
जाने, द्बादशी तिथि में क्या करें? और क्या न करें?
विवाह आदि के लिए यह तिथि बेहद शुभ मानी जाती है। इस तिथि में विवाह व अन्य शुभ कर्म करना श्रेयस्कर होता हैं। इस तिथि में तैलमर्दन, नए घर का निर्माण करना, नए घर में प्रवेश और यात्रा का त्याग करना चाहिए। 
जाने, त्रयोदशी तिथि में क्या करें? और क्या न करें? 
यज्ञोपवीत कर्म इस दिन कतई नहीं करना चाहिए। यह उचित नहीं होता है। शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी में संग्राम के जुड़े कार्य, सेना के उपयोगी अस्त्र-शस्त्र, ध्वज, पताका का निर्माण, राज सम्बन्धित कार्य, वास्तु व संगीत विद्या से जुड़े कार्य इस दिन किए जा सकते हैं। इस दिन यात्रा, नवीन वस्त्राभूषण, गृह प्रवेश व यज्ञोपवीत आदि शुभ कार्यों का त्याग करना चाहिए। 
जाने, चतुर्दशीã तिथि में क्या करें? और क्या न करें?
चतुर्दशी तिथि में सभी तरह के क्रूर व उग्र कर्म किए जा सकते हैं। शस्त्र निर्माण आदि का प्रयोग किया जा सकता है। इस तिथि में यात्रा वर्जित होती है। चतुर्थी तिथि में किए जाने वाले कार्य इस तिथि में किए जा सकते हैं। यानी जो कर्म चतुर्थी तिथि में किए जा सकते है, वह इस तिथि में भी किए जा सकते हैं। 
जाने, पूर्णमासी तिथि व अमावस्या तिथि में क्या करें? और क्या न करें?
पूर्णमासी को पूर्णिमा भी कहते हैं। इस तिथि में शिल्प, आभूषणों से सम्बन्धित कार्य किए जा सकते हैं। इस तिथि में इन कम्रों का विश्ोष महत्व है। संग्राम, विवाह, यज्ञ, जलाशय, यात्रा, शांति व पोषण किए जाने वाले मांगलिक कार्य किए जा सकते है। अमवस्या इस तिथि में पितृकर्म मुख्य रूप से किए जाते हैं। महादान व उग्र कर्म किए जा सकते हैं। इस तिथि में शुभ कर्म व स्त्री का संग नहीं करना चाहिए।
अमावस्या तिथि में गुप्त साधनाएं, तंत्र-मंत्र व अनुष्ठान, कार्यपूतिã अनुष्ठान, जो एक दिन में पूर्ण हो, इनको छोड़कर सभी शुभकर्म वर्जित हैं। इसलिए अमावस्या में शुभ कर्म नहीं करने चाहिए।
वैसे अंत में एक बात स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि ईश्वर को स्मरण करने के लिए हर घड़ी व हर मुहूर्त शुभ होता है। 

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