श्रीमद्भागवत गीता के बारे में क्या सोचते थे अल्बर्ट आईंस्टीन व हेनरी

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द्बापरयुग में भगवान विष्णु भगवान श्रीकृष्ण के रूप में अवतरित हुए थे। उन्होंने जीवन के यथार्त से सृष्टि अवगत कराया। कलयुग में मनुष्यों के कल्याण के लिए गीता ज्ञान दिया। वह भी उस समय जब महाभारत का युद्ध चल रहा था। वही अमूल्यवान निधि श्रीमद्भागवत गीता हमारे लिए प्रेरणादायक है।

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भवसागर से पार कराने वाली है। पावनग्रंथ श्रीमद्भागवत गीता के बारे में दुनिया की जानीमानी हस्तियां क्या सोचती हैं और सोचती थीं, जानते हैं। शुरुआत वैज्ञानिक अल्बर्ट आईस्टीन से-
अल्बर्ट आईंस्टीन ने श्रीमद्भगवत गीता के बारे में कहा था कि
जब भी मैं श्रीमद्भगवत गीता को पढ़ता हूं और चिंतन करता हूं कि भगवान ने इस ब्रह्मांड को कैसे रचा, तो बाकी सब बेमानी लगता है।

अमेरिकी दार्शनिक हेनरी डेविड थोरो का कहना था कि-
प्राचीन युग की सर्वोत्तम वस्तुओं में गीता से श्रेष्ठ कोई वस्तु नहीं है। गीता में ऐसा उत्तम व सर्वव्यापी ज्ञान है कि उसकी रचना के असंख्य वर्ष हो गए, फिर भी ऐसा दूसरा एक भी ग्रन्थ नहीं लिखा गया है।
उन्होंने गीता के बारे में यह भी कहा-
प्रात:काल उठकर मैं अपने हृदय, मन और विवेक को गीता रूपी पवित्र गंगाजल से स्नान करवाता हूं

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